Harsai Buddhist Stupa

संरक्षण की दरकार : कटते जा रहे हरसाई बौद्ध स्तूप को बचाना अब जन- संकल्प की पुकार…

गढ़पुरा (बेगूसराय) : बेगूसराय जिले की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान बन चुके हरसाई बौद्ध स्तूप का अस्तित्व लगातार खतरे में है। गढ़पुरा अंचल के सकड़ा मौजा में स्थित यह पुरातात्विक धरोहर आज भीषण उपेक्षा, अतिक्रमण और कटाई का शिकार हो रही है।

8 जुलाई को जब स्थानीय लोगों ने स्तूप स्थल का मुआयना किया, तो हालात देख दिल दहल गया। 65 फीट ऊंचे और 360 फीट व्यास वाले इस स्तूप के शेष तीन प्रमुख टीले अब भी तेज़ी से काटे जा रहे हैं। मिट्टी की अवैध खुदाई और व्यवसायरूपी दोहन के कारण बेगूसराय की सबसे प्राचीन धरोहर अपने अस्तित्व की अंतिम सांसें गिन रही है।

सरकार की वादाखिलाफी और उपेक्षा : वर्ष 2012 में तत्कालीन डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने लाव-लश्कर के साथ स्तूप स्थल का दौरा किया था और संरक्षण का वादा किया था। मगर एक दशक बीतने के बाद भी न तो कोई विकास कार्य हुआ और न ही स्तूप को सड़क से जोड़ने की प्रक्रिया पूरी हो सकी। 2014 में सड़क संपर्क के लिए जमीन की मापी की गई थी, प्रतिवेदन भी भेजा गया, लेकिन विभागीय सुस्ती के कारण स्थिति जस की तस बनी हुई है।

बौद्धकालीन धरोहर, बुद्ध के अस्थिकलश से जुड़ा संदर्भ : इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, यह स्थल भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के उपरांत बने आठ महास्तूपों में से एक का हिस्सा हो सकता है। जाने-माने साहित्यकार और पत्रकार महेश भारती बताते हैं कि “ऐसा माना जाता है कि बुद्ध का आठवां अस्थिकलश इन चार प्रमुख स्तूपों के भीतर कहीं दबा हुआ है।”

स्थानीय लोग इसे इसकी भयावह आकृति के कारण ‘दैत्य का छिट्टा’ कहते हैं, लेकिन यह वास्तव में एक महत्वपूर्ण बौद्ध स्तूप समूह है, जिसकी पहचान पालकालीन साहित्य में भी मिलती है। जयमंगलागढ़ महाविहार और बुद्ध के अंगुत्तराप भ्रमण के भी कई पुरातात्विक संकेत यहां से मिलते हैं।

पुरातत्वविदों का भ्रम, युवाओं का अज्ञान : 2003 में जिला पुरातत्व धरोहर एवं संरक्षण परिषद की टीम ने यहां 11 स्तूपों की पहचान की थी, जिनकी ऐतिहासिक महत्ता अलग-अलग बताई गई। परंतु आज की युवा पीढ़ी जब पूछती है — “क्या और कहां है हरसाई स्तूप?” — तो यह सवाल समाज की ऐतिहासिक चेतना पर भी सवाल उठाता है।

काबर की तरह मिल सकता है वैश्विक मान्यता : यह स्तूप समूह जयमंगलागढ़ शक्तिपीठ और काबर झील रामसर साइट के उत्तर-पूर्व कोने में स्थित है। जिस प्रकार राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा के प्रयास से काबर पक्षी विहार को रामसर साइट का दर्जा मिला, उसी तरह यदि जनदबाव और प्रशासनिक इच्छाशक्ति हो, तो हरसाई स्तूप को भी राष्ट्रीय और वैश्विक मान्यता दिलाई जा सकती है। इसके लिए संरक्षण, सीमांकन, सड़क संपर्क और प्रचार-प्रसार की ठोस योजना बनानी होगी।

बेगूसराय की यह अनमोल धरोहर अब हमसे पुकार रही है। मिट्टी के इस स्तूप में केवल इतिहास नहीं, हमारी पहचान, संस्कृति और सामूहिक चेतना भी दफ्न होती जा रही है। अब वक्त है कि जिलेवासी जागें, प्रशासन को जगाएं और इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण की मुहिम को जन-आंदोलन बनाएं।

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