महागठबंधन में वाम दल के आने से मिनी मास्को कहे जानेवाले बेगूसराय में सीट शेयरिंग नहीं होगा आसान

पोलिटिकल डेस्क : बेगूसराय लालू कांग्रेस के महागठबंधन में इस बार वाम दल भी शामिल हो रहे हैं। कुशवाहा की पार्टी रालोसपा और मुकेश सहनी की पार्टी इसमें पहले से शामिल हैं।सबकुछ ठीकठाक रहा तो महगठबंधन में वाम के तीनों दल भाकपा,माकपा और माले को सीटें देकर एडजस्ट करने का काम किया जाएगा। यह सीटें कितनी होगी,उसका खुलासा अभी तक नहीं हुआ है। लेकिन,वाम के महागठबंधन में शामिल होने की सुनिश्चितता बन गई है और सीटों को लेकर बातचीत का सिलसिला भी आगे बढ़ गया है।

बिहार में वामदल के साथ लालू और कांग्रेस का रिश्ता कोई नया नहीं है। सीपीआई ने इंदिरा गांधी की सरकार और उनके द्वारा लायी गई इमरजेंसी का समर्थन किया था। लालू जब 1990 में सत्ता में आए तो सीपीआई, सीपीएम और माले तीनों का समर्थन था। जब उनकी सरकार अल्पमत में आयी तो माले के विधायक तोड़कर उन्होंने अपने साथ कर लिए थे। सीपीआई 1997 में चारा घोटाले में उनके अभियुक्त बनने के बाद उनसे अलग हुई। सीपीएम तो कुछ बरस तब भी साथ रही थी।

बेगूसराय वामपंथियों का है गढ़ , महागठबंधन में शीट शेयरिंग में फसेंगा पेंच बिहार में वामदलों का सबसे ज्यादा प्रभावशाली जिला बेगूसराय माना जाता है। आजादी के बाद से ही यहां सीपीआई का प्रभाव बढ़ने लगा था। वर्ष, 1956 में एक उपचुनाव में सीपीआई के चंद्रशेखर सिंह ने उत्तर भारत में पहली बार वामदल का खाता खोलकर रेकॉर्ड कायम किया। तब से वामदल का बेगूसराय की संसदीय राजनीति पर कमोबेश प्रभाव पड़ता रहा। 1962 से 2010 तक कोई भी चुनाव ऐसा नहीं था जिसमें वामदल के एक दो विधायक नहीं चुनाए हों।

वर्ष 1990,1995 में तो उसके पांच विधायक चुने गए। अलबत्ता ,2015 के विधानसभा चुनाव में वह जिले में नील यानि शून्य रह गया। सीपीआई के प्रभाव वाले बखरी, मटिहानी, तेघड़ा और बछवाड़ा से राजद कांग्रेस के उम्मीदवार चुने गए। पिछले 2015 में जिले की कुल सात सीटों में से राजद कांग्रेस जदयू के गठबंधन ने तीन ,दो और दो सीटें जीतीं। इस बार जद यू भाजपा के साथ है और राजद कांग्रेस, रालोसपा , मुकेश सहनी की पार्टी के साथ वामदल के भी आने की संभावना प्रबल है। बेगूसराय जिले की सात सीटों के लिए जगह तय करना एक टेढ़ी खीर है। तेघड़ा के राजद विधायक ने जदयू का दामन थाम लिया। बखरी और एसकमाल में राजद के विधायक हैं।

बेगूसराय सदर और बछवाड़ा से कांग्रेस के विधायक थे। बछवाड़ा के विधायक मर गए तो अब कांग्रेस टिकट के लिए देखना होगा किसपर दांव लगता है‌। वामदल अपने परंपरागत प्रभाव वाले सीट यथा बछवाड़ा, मटिहानी, तेघड़ा ,बखरी मांग सकते है। तेघड़ा पर बात बन सकती है। बखरी को लेकर बात फंस सकती है।राजद कांग्रेस शायद ही जीती हुई सीट देने पर सहमत हो। अब देखना है कि मास्को कहलाने वाले इस जिले में वामदल महागठबंधन में क्या हासिल कर पाती है।