गुटों और खेमे में बंटे बेगूसराय जिला भाजपा की कमान RSS ने अपने हाथ में ले लिया

बेगूसराय : गुटों और खेमे के खानियों में बंटे बेगूसराय जिला भाजपा की कमान आर एस एस (RSS) ने अपने हाथ में ले लिया है. अमूमन भाजपा के राजनीतिक मंचों और कार्यक्रमों से दूर रहनेवाले राजकिशोर सिंह को बेगूसराय जिला भाजपा के अध्यक्ष बनने के अपने मायने हैं.ऐसी बात नहीं है कि पहली बार कोई आर एस एस खेमे का व्यक्ति इस पद पर बैठा है.जिले में पहले भी आर एस एस से जुडे लोग अध्यक्ष बनते रहे हैं।

इसी बीच देश में राम मंदिर आंदोलनों की वजह से आए नए उभार में जिला में आर एस एस से जुडे रामलखन सिंह को भाजपा ने जिलाध्यक्ष बना कर कम्युनिस्टओं को चुनौती देना शुरू किया.2000 ईं. आते आते जिले में भाजपा ने अपनी ताकत बढाई.असर हुआ कि कभी कम्युनिस्ट और कांग्रेसियों के लिए रणनीति बनाने वाले भोला सिंह बरास्ते जद और राजद भाजपा में पहुंच गए.

यहां से भाजपा ने नई पारी शुरू की.कई तरह के राजनैतिक वैचारिक जीव भाजपारूपी महासागर में गोते लगाने लगे.आने और निकलने का खेल भी होता रहा.भाजपा का जनाधार बढने लगा तो गुटबंदी और खेमेबाजी भी चरम पर पहुंचती गयी. पिछले 2012-13 का भाजपा जिलाध्यक्ष का चुनाव जिन्हें याद होगा तो तब पांच प्रत्याशी खडे हो गए. सबके खेमे के एक अध्यक्ष . जीत तो एक की ही हुई.लेकिन खानियां बनी रह गई. विभिन्न कार्यक्रमों में नेताओं की यह गुटबंदी स्पष्ट दिख जाती थी.

कई भाजपा संस्कृति से अलग के लोग सत्ता ,चुनावी लाभ,टिकट,पद के लिए रूख किए इस ओर भागते चले आए. 2014 का लोकसभा चुनाव भोला सिंह ने जीतकर कम्युनिस्ट और राजद काग्रेस को बैकफुट पर पहुंचा दिया.कम्युनिस्टों का लोप होने लगा और अंततः 2019 के लोकसभा चुनाव में जिले के आधे से अधिक मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में भाजपा सफल रही. चुनावी गणित की सफलता तो उसे मिली.

लेकिन,गुटबंदी और खेमेबंदी थमने का नाम नहीं लिया. बेगूसराय के चुनाव में कम्युनिस्ट प्रत्याशी को लेकर देशस्तर पर वैचारिक संघर्ष और बहस का केन्द्र बने बेगूसराय पर आर एस एस की नजर पैनी रही. भाजपा के नए अध्यक्ष नवसिखुआ तो नहीं आर एस एस के पृष्ठभूमि के तो हैं ही. जिले के टेढेमेढे राजनीतिक धरातल पर अपनी गाडी कैसे हांकते हैं.यह आनेवाला समय ही बतायेगा. चुनौतियां कई हैं.उसकी चर्चा बाद में.