तेघड़ा विधायक के जदयू जाने की इनसाइड स्टोरी जानिये, वरिष्ठ पत्रकार की कलम से

पोलिटिकल डेस्क : तेघड़ा के राजद विधायक जनता दल यू में चले गए।यह कोई राजनीतिक आश्चर्य की बात नहीं है। वे तो वास्तविक रूप में जनता दल यू के थे ही। वे बिहार के वर्ष 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश जी के जद यू के द्वारा लालू के राजद को दिया हथपैंचा थे। जिनके हाथ के थे उनके हाथ चले गए। यह हथपैंचा कितना दिन रहता। राजद वालों को भी ये बात पता था।

जब वर्ष 2015 में तेघड़ा के वे उम्मीदवार बनाए गए थे तो जद यू के एक जिलाध्यक्ष रहे नेता ने हमें फोन कर ये पहले पहल जानकारी दी और कहा था ,सर ये तो नीतीश जी का हथपैंचा लालू जी को मिला है। आदमी तो नीतीश जी के ही हैं। सच आदमी जदयू के और खड़ा हो गए राजद से। बरौनी तेघड़ा के वामपंथी दुर्ग को जातीय समीकरण के नारे ने ध्वस्त कर दिया। नीतीश के कुर्मी और लालू के माय समीकरण के गठजोड़ के सामने भाजपा का दक्षिण पंथ और वामपंथ दोनों ठिठुर गए।

बिहार में जगजाहिर जाति की पार्टी है। नेता भी उसी जाति के होते हैं। जाति के मतदाताओं का गौरव भी होता है कि हमारे जात के मुख्यमंत्री हैं। हमारे जात के मंत्री हैं हमारे जात के नेता हैं। अधिकांश मंत्री के बाडीगार्ड, सेक्रेटरी, ड्राईवर, आफिस स्टाफ उसकी जात के होते हैं। जाति के ही बीच उनके प्रभाव को लेकर उन्हें नेता माना भी जाता है। जाति बहुल क्षेत्र को प्रसाद की तरह उस जाति के नेता के बीच बांटा भी जाता है। राजनीतिक दल समझौता में यह मानकर चलते हैं कि उस जाति के नेता हमारे गठबंधन में हैं तो उस जाति का वोट हमें ही मिलेगा। थोड़ा जातिगत वोट भी मिल जाता है। जाति वाले नेता अपने जाति के अपराधी,अफसर,धनवाले सबकी गिनती करके रखते हैं।

तेघड़ा के ये हथपैंचा राजद के सिम्बाल पर जीते तो जरूर पर कभी राजद के रहे नहीं। अब इनकी मन वापसी के बाद तेघड़ा का समीकरण कैसा बनता है। जदयू भाजपा लोजपा के एनडीए गठबंधन से जद यू को यह सीट मिलने पर ये फिर जदयू के सिम्बाल से उतर सकते हैं । यह सीट दूसरे को मिलने पर जदयू फिर इन्हें कहीं और एडजस्ट कर सकती है। तेघड़ा में मामला फंस गया है।