Begusarai News : बिहार का बेगूसराय जिला अब चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना चुका है। खासकर, पूर्वोत्तर बिहार के कई जिलों से गंभीर मरीज अब पटना या दिल्ली का रुख नहीं करते, बल्कि सीधे बेगूसराय आते हैं। इलाज की सुविधा सुलभ होने से न सिर्फ मरीजों को राहत मिल रही है, बल्कि जिले में स्वास्थ्य क्षेत्र ने रोजगार के नए दरवाजे भी खोल दिए हैं।
लेकिन इस प्रगति के बीच बेगूसराय के निजी नर्सिंग होम और क्लीनिकों की अनियमितताएं भी बड़ी चिंता का विषय बन गई हैं। जिले में वर्तमान में 70 से अधिक नर्सिंग होम और 200 से ज्यादा निजी क्लीनिक संचालित हो रहे हैं, जिनमें करीब 400 चिकित्सक पंजीकृत हैं। मगर इन संस्थानों की वास्तविक तस्वीर स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलती है।
सुविधाओं का अभाव, मरीजों की जेब पर वार
अधिकतर निजी नर्सिंग होम या तो आयुष्मान भारत योजना के नाम पर या फिर नगद राशि लेकर इलाज करते हैं। मगर इसके बदले जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वो जमीन पर नदारद हैं। कई नर्सिंग होम न तो न्यूनतम मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर रखते हैं और न ही प्रशिक्षित स्टाफ। पैथोलॉजी, एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड जैसे विभागों को प्रशिक्षित विशेषज्ञों की बजाय कंपाउंडर और नर्स चला रहे हैं, जो मरीजों की सेहत के साथ खिलवाड़ जैसा है।
स्वास्थ्य मानकों की उड़ रही धज्जियां
एक सर्वे के मुताबिक, 150 से अधिक निजी क्लीनिक शहरी क्षेत्र में महज एक-दो कमरों में संचालित हो रहे हैं। कचहरी रोड, पावर हाउस रोड, डाकबंगला रोड, NH-31 से लेकर अंग्रेजी ढाला तक हर तरफ झोलाछाप डॉक्टरों और अधकचरे क्लीनिकों की भरमार है। खास बात यह है कि अधिकांश नर्सिंग होम ने पार्किंग की भी कोई व्यवस्था नहीं की है, जिससे आसपास के इलाकों में जाम लगना आम बात हो गई है। वहीं स्वच्छता के मानकों की भी घोर अनदेखी की जा रही है।
मरीजों से मनमानी वसूली
बेगूसराय के नर्सिंग होम में इलाज करवाना अब किसी फाइव स्टार होटल में ठहरने जैसा महंगा हो चला है। एक सामान्य कमरे का दैनिक किराया ₹2000 से ₹2500 तक लिया जा रहा है, जबकि एसी कमरे के लिए ₹3000 प्रतिदिन तक वसूले जा रहे हैं। मरीजों के परिजनों को कंपाउंडर द्वारा चेतावनी दी जाती है कि “जल्दी बुक कीजिए वरना जनरल वार्ड में रहना होगा।”
नियमों को ताक पर रख संचालन
जिला भूकंपरोधी जोन-3 में आता है, इसके बावजूद अधिकतर नर्सिंग होम की इमारतें भूकंप सुरक्षा मानकों पर खरी नहीं उतरतीं। कुछ नर्सिंग होम के खिलाफ नगर निगम में मुकदमा भी दर्ज है, लेकिन कार्रवाई नाममात्र की हुई है। स्वास्थ्य विभाग को इन सब की जानकारी है, फिर भी वह कार्रवाई से परहेज कर रहा है। आखिर क्यों? यह सवाल अब जिले के हर जागरूक नागरिक के मन में उठने लगा है।
आखिर कब जागेगा सिस्टम?
बेगूसराय की छवि भले ही ‘मेडिकल हब’ के रूप में बन रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि अधिकतर स्वास्थ्य संस्थान सिर्फ नाम के अस्पताल हैं। मरीजों की मजबूरी और उनकी जेब को निशाना बनाकर चल रहे इस धंधे पर अगर समय रहते नकेल नहीं कसी गई, तो यह मेडिकल हब जल्द ही ‘मेडिकल माफिया का गढ़’ बन जाएगा।
अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इन अनियमितताओं पर सख्ती से कदम उठाएगा या फिर मरीज यूं ही लुटते रहेंगे?