“हमें अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था,
किश्ती वहीं डूबी, जहां पानी कम था…”
यह मशहूर कहावत इस बार चेरिया बरियारपुर विधानसभा क्षेत्र में राजद की हार पर पूरी तरह चरितार्थ होती दिखी बेगूसराय जिले की यह सीट, जो पिछले चुनाव में राजद की सेफ सीट मानी जाती थी, इस बार भीतरघात और टिकट वितरण विवाद की भेंट चढ़ गई।
राजद का गढ़ टूटा, जदयू ने छीनी सीट
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार राजवंशी महतो ने जदयू की कुमारी मंजू वर्मा को करीब 40 हजार मतों के अंतर से पराजित किया था। लेकिन 2025 के इस चुनाव में समीकरण पूरी तरह पलट गया।
इस बार जदयू उम्मीदवार अभिषेक आनंद ने जीत हासिल की, जबकि राजद के उम्मीदवार सुशील कुमार कुशवाहा को करीब 4 हजार मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
वोटों का गणित — बिखराव बना हार की वजह
| उम्मीदवार | पार्टी | प्राप्त मत |
|---|---|---|
| अभिषेक आनंद | जदयू | 75,081 |
| सुशील कुमार कुशवाहा | राजद | 70,962 |
| मृत्युंजय कुमार | जन सुराज | 24,595 |
| रामसखा महतो | निर्दलीय (राजद विद्रोही) | 7,537 |
राजद के वोट बैंक में भारी बिखराव देखने को मिला। विशेषकर रामसखा महतो, जो पार्टी से टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय मैदान में उतरे, उन्होंने करीब 7500 से अधिक वोट काटे — जो लगभग राजद की हार के अंतर के बराबर था।
टिकट वितरण बना अंदरूनी असंतोष की जड़
चेरिया बरियारपुर में इस बार राजद के टिकट को लेकर घमासान मचा रहा। करीब आधे दर्जन स्थानीय नेताओं ने टिकट की दावेदारी की थी। लेकिन पार्टी ने सीटिंग विधायक राजवंशी महतो को टिकट नहीं दिया और बाहरी उम्मीदवार, खगड़िया जिले के पूर्व मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद के बेटे सुशील कुशवाहा को उम्मीदवार बना दिया।
इस फैसले से स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं में नाराजगी फैल गई। राजद के कई पुराने कार्यकर्ताओं ने खुले तौर पर प्रचार से दूरी बना ली, जबकि कुछ ने भीतरघात किया — जिसका सीधा असर नतीजों पर पड़ा।
स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार — मुख्य मुद्दा
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, राजद की हार का सबसे बड़ा कारण था “बाहरी उम्मीदवार थोपना”। चेरिया बरियारपुर जैसे क्षेत्र में स्थानीय पहचान और जातीय समीकरण बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने स्थानीय चेहरे को नज़रअंदाज़ कर दिया।
रामसखा महतो जैसे नेताओं की नाराजगी और निर्दलीय मैदान में उतरना राजद के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा —
“अगर पार्टी ने पुराने उम्मीदवार या स्थानीय चेहरे को टिकट दिया होता,
तो आज यह सीट हाथ से नहीं जाती।”
राजद के भीतर आत्ममंथन की जरूरत
राजद ने जहां पिछले चुनाव में इस सीट पर रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी, वहीं इस बार उसे बिखराव, असंतोष और संगठनात्मक कमजोरी का सामना करना पड़ा। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगर पार्टी ने टिकट चयन में पारदर्शिता और स्थानीय समीकरण का ध्यान रखा होता, तो चेरिया बरियारपुर का नतीजा कुछ और होता।
जदयू के लिए नई उम्मीदें
जदयू उम्मीदवार अभिषेक आनंद की जीत ने सत्तारूढ़ दल को इस क्षेत्र में मजबूत आधार दिया है। स्थानीय जनता को उम्मीद है कि अब सरकार और विधायक दोनों एक ही पक्ष के होने के कारण काबर टाल, जयमंगलागढ़ और मंझौल क्षेत्र के विकास कार्यों में तेजी आएगी।

