आखिरी सांसे गिन रहा मेहमान :कावर झील पर आने वाले विदेशी पक्षियों नहीं है सुरक्षित

बेगूसराय जयमंगलागढ़ : एशिया में ताजे पानी की सबसे बड़ी झील ‘कावर झील पक्षी विहार’ अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है। जिले में एशिया की मीठे पानी के सबसे बड़ी कावर झील में पानी भले ही कम है लेकिन सर्दी की आहट होते ही विदेशी मेहमानों की चहल कदमी काफी बढ़ गई है।

हजारों किमी दूर उड़कर आने वाले इन पक्षियों की जान यहां भी सुरक्षित नहीं है। पक्षियों के आने के साथ हीशिकारी भी सक्रिय हो जाते हैं। प्रतिबंध के बाद भी वन विभाग औ पुलिस की साठगांठ से झील के किनारे पक्षी पकड़ने और खरीदने वाले सक्रिय है।

दूर देशों से आने वाले पक्षियों का बसेरा रही इस झील से लगे बड़े भूक्षेत्र पर स्थानीय लोग खेती, मछली पकड़ने एवं अन्य तरीकों से कब्जा कर रहे हैं। पानी की कमी और शिकार की वजह से यहां आने वाले पक्षियों की संख्या भी घट गई है।

लगभग 42 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मेंं फैली इस झील में हर वर्ष सर्दी शुरू होते हीसाइबेरिया समेत सात समुद्र पार कर अन्य देशों से आने वाले मेहमान पक्षी आते हैं। इस वर्ष भी कावर झील पर हजारों विदेशी पक्षी आ चुके हैं। खास करके अधिक पानी वाले महालय, कोचालय, रजौड़ा डोव एवं बहोरा डोव में विदेशी मेहमानों की संख्या ज्यादा दिख रही है।

वहीं, जरल्का, धरारी, मेशहा, धनफर, पटमारा, पइनपीवा, भरहा, दशरथरही, लरही, धनफर, भिलखरा, गुआवारी, सतावय डोव, सखीया डेरा एवं बोटमारा आदि बहियार इलाकों में भी पक्षियों की चहल पहल तेज है। झील क्षेत्र में साइबेरियाई देशों, रूस, मंगोलिया व चीन आदि देशों से करीब 57 प्रजाति के पक्षी आते हैं।

इन विदेशी पक्षियों को मारने अथवा पकड़ने पर प्रतिबंध होने के बाद भी शिकारियों का धंधा खूब चलने लगा है। कावर झील के चारों ओर के एक सौ से अधिक शिकारी रोज विदेशी पक्षियों को पकड़कर ऊंचे दामों में बेच रहे हैं।जगह-जगहशिकारियों ने फानी (पक्षियों के फंंसाने वाला जाल) लगा कर तैयार हैं।वन विभाग और स्थानीय पुलिस की इन शिकारियों से साठगांठ होने की भी चर्चा खूब रहती है।

इस संबंध में वन विभाग के रेंजर उमाशंकर सिंह ने बताया कि पक्षियों के शिकार पर कड़ी नजर रखी जा रही है। शुक्रवार की शाम को भी कार्रवाई कर शिकार करने के सामान बरामद किए गए हैं। उन्होंने बताया कि कर्मचारियों की कमी के कारण गस्ती में बाधा आ रही है, जिसके लिए विभाग को लिखा गया है।विभागीय दावों के बाद भी पक्षियों के शिकारी और खरीदारों का समूह झील के किनारे दिख रहे हैं।

कावर के मालिक कहे जाने वाले मछुआरे भी पक्षियों का शिकार कर पांच सौ से 25 सौ तक में बेच रहे हैं। अलग-अलग पक्षियों के अलग-अलग दाम तय हैं। कावर के विदेशी पक्षियों की डिमांड इतनी ज्यादा है कि वर्तमान में लालसर पन्द्रह सौ से दो हजार रुपये तक में बिक रहा है।

कांवर झील दुनिया का सबसे बड़ा वेटलैंड एरिया माना जाता है। इसे पक्षीविहार का दर्जा 1986 में बिहार सरकार ने दिया था । वन्य संरक्षण अधिनियम 1927 तथा वन्य जीव संरक्षण आश्रय स्थल अधिनियम 1972 के अंतर्गत चेरिया बरियारपुर प्रखंड में मंझौल, जयमंगलपुर, जयमंगलागढ़, गढ़पुरा, रजौड़, कनौसी और छौड़ाही, परोड़ा, नारायणपीपर तथा मणिकपुर क्षेत्र में कुल 6311.63 हेक्टेयर इलाके को संरक्षित किया गया है।

शिकार की वजह से यहां आने वाले पक्षियों की संख्या घट रही है। पानी कम होने के बाद स्थानीय लोग आसपास के क्षेत्र में गन्ना, गेहूं, धान की फसल लगा रहे हैं। अवैध रूप से मछली भी पकड़ी जा रही है।

हालांकि वन्य जीव संरक्षण और स्थानीय लोगों का एक बड़ा तबका इस विरासत को बचाने के लिये बेगूसराय के सांसद सह भारत सरकार के मंत्री माननीय गिरिराज सिंह जी एवं पूर्व सांसद सह बिहार सरकार के पूर्व मंत्री माननीय रामजीवन सिंह, दोनों नेताओं के द्वारा काबर के विकास पे हाल में ही बातचीत हुई है।