27 वर्षीय सीमा की ‘एक रुपया मुहिम’ से बच्चों को मिली शिक्षा…

वायरल सन्देश : कहते हैं ना मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती और अगर दिल साफ हो और नियत नेक हो तो एक छोटा सा कदम भी बड़े बदलाव ला सकती है. यह उदाहरण एकदम सटीक साबित होता है एक 27 वर्षीय लड़की सीमा वर्मा के ऊपर.सीमा वर्मा छत्तीसगढ़ में बिलासपुर की रहने वाली हैं और वह अपनी ‘एक रुपया मुहिम’ से 33 बच्चों का जीवन संवार रही हैं. एक रुपए की कीमत भले ही कम ना हो लेकिन यह सच है कि आज के समय में एक रूपया ना कोई लेना चाहता है और ना कोई देना चाहता है लेकिन सीमा वर्मा ने एक रूपया को ताकत बनाकर समाज में एक बड़ा बदलाव लाने की कोशिश की है. मूल रूप से अंबिकापुर से आने वाली सीमा फिलहाल अभी कानून की पढ़ाई कर रही हैं साथ ही वह पिछले 3 सालों से समाज में बदलाव के कार्य में जुटी हुई हैं. उनकी 1रूपया मुहिम धीरे-धीरे ही सही पर अभियान का रूप ले रही है

द बेगूसराय से बात करते हुए उन्होंने अपने मुहिम का जिक्र करते हुए कहा, ‘इस मुहिम के अंतर्गत मैं अलग-अलग स्कूल, कॉलेज और अन्य कई संस्थानों में जाकर वहां पर छात्र-छात्राओं शिक्षकों और अन्य लोगों को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझाने के लिए जागृत करती हूं। मैं उन सब के लिए सिर्फ एक-एक रूपया किसी के भले के लिए दान करने के लिए कहती हूं। जहां से भी मुझे एक-एक रूपया करके जितने भी पैसा मिलते है उन्हें इकट्ठा् करके किसी न किसी जरूरतमंद की मदद की जाती है’

कब की शुरुआत : सीमा ने 10 अगस्त 2016 को दोपहर के 12:00 बजे सीएमडी कॉलेज से यह मुहिम शुरू की थी। उस दिन उन्होंने सिर्फ 395 रूपये इकट्ठा किए थे। यह राशि हमें और आपको भले ही छोटा लगे, लेकिन इस चंद राशि से सीमा ने एक सरकारी स्कूल की छात्रा की फीस भरी और उसे स्टेशनरी खरीद कर दिया।सीमा वर्मा की 1रुपया मुहिम सीमा वर्मा कहती है उस दिन उस छात्रा की मदद करके उन्हें एहसास हुआ कि कोई भी योगदान छोटा नहीं होता, क्योंकि जरूरी नहीं कि कुछ बड़ा करके अच्छा किया जाए कभी-कभी छोटी सी कोशिश भी काफी बड़ा हो जाता है।

कैसे हुई शुरुआत : वह कहती हैं मैं ग्रेजुएशन में थी जब मैंने अपनी एक दिव्यांग दोस्त के लिए ट्राईसाइकिल खरीदने में कॉलेज प्रशासन से मदद मांगी, कॉलेज ने कहा तो था की व्यवस्था कर देंगे लेकिन कई बार ऑफिस के चक्कर काटने पर भी यह नहीं हुआ,ऐसे में मैंने सोचा कि पहले जाकर देख आती हूं कि कितने पैसों में से खरीदा जा सकता है, इसलिए मैं बिलासपुर के साइकिल शॉप में गई और वहां मुझसे कहा गया कि यह खास मेडिसिनल साइकिल है जो सामान्य दुकानों में नहीं मिलेगी, इसके बाद सीमा ने एक-दो जगह पता किया कुछ पता नहीं चला,सीमा हर हाल में अपने दोस्त की मदद करना चाहती थी और इसीलिए उन्होंने हार नहीं मानी, किस्मत से एक दिन उनकी बात किसी कारणवश एक मैकेनिक से हुई और बातों बातों में उन्होंने साइकिल के बारे में पूछ लिया सीमा को पता चला कि सरकार की योजना के तहत दिव्यांगों को यह साइकिल मुफ्त में मिलती है इसके लिए उन्हें एक एप्लीकेशन फॉर्म भरना होगा, सीमा बताती हैं कि मैकेनिक ने उनसे कटाक्ष भरे शब्दों में कहा,’आप ग्रेजुएशन कर रही हैं और आपको इतना भी नहीं पता’?

इस बात से उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया कि वाकई हमारे समाज में, हमारे देश में, यहां तक कि हमारे घर में जागरूकता की कितनी कमी है। ‘मैंने दूसरे ही दिन इस बारे में सभी जानकारी इकट्ठा की और प्रक्रिया पूरी की। चंद दिनों में मेरे दोस्त को ट्राईसाइकिल मिल गई, लेकिन उस आदमी की बात मेरे मन में घर कर गई बिल्कुल सही कहा उन्होंने। सरकारी योजना हो तो क्या हमें तो हमारे अधिकार और कर्तव्य के बारे में ढंग से पता नहीं है।

सीमा को मिली नई दिशा : अपने शिक्षकों के सपोर्ट से उन्होंने जगह-जगह जाकर खासकर की शिक्षक संस्थानों में अलग-अलग विषयों पर बात करके युवाओं को सजग बनाने की योजना पर काम किया. सबसे पहले इस तरह का सेमिनार उन्होंने अपने खुद के ही कॉलेज में किया उन्होंने कहा कि, ‘मैंने अपने साथी विद्यार्थियों से अपनी सोच और नजरिया थोड़ा बदलने के बारे में बात की, उनसे पूछा कि उनमें से कितनों के परिवार को उनके प्रोफेशनल कोर्स के बारे में अच्छे से पता है, कितनी बार हम अपने घर में बैठकर समाजिक मुद्दों पर बात करते हैं उस डिस्कशन में और भी कई ऐसे मुद्दे सामने आए हैं, जिन पर बात होना जरूरी है’। आगे सीमा ने कहा इस इवेंट में आने वाले सारे बच्चों से उन्होंने 1-1रुपए दान देने के लिए कहा वैसे तो यह सिर्फ एक विचार था कि इस तरह सभी छात्रों को यह सेमिनार याद रहेगा कि उन्होंने ₹1 यहां दान दिया है। लेकिन एक छोटे सुविचार को सीमा ने मुहिम बना दिया।

33 बच्चों की मदद जब सीमा ने यह पहल की तब उन्हें नहीं पता था कि वह किस तरह से इस पैसों का इस्तेमाल करेंगी? बस एक बात उनके जेहन में थी कि इन पैसों से किसी जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए. उसी साल सितंबर में उन्हें जब एक छात्रा की फीस भरने का मौका मिला तो उन्हें लगा कि उनके जीवन का मकसद मिल गया. इसके बाद उन्होंने अपने कॉलेज से अलग कॉलेज में जाकर वहां पर शिक्षकों से छात्र-छात्राओं से बात की. कहीं पर विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध सरकारी योजना,तो कहीं पोक्सो एक्ट पर बात हुई।हर जगह उनकी कोशिश यही रहती कि युवाओं में एक जिज्ञासा जगाएं, अपने समाज को अपने, कानून को, अपनी शिक्षा को जानने की।

अटेंशन सीकर का टैग सीमा कहती है कि अपने कॉलेज में जब उन्होंने सेमिनार किया तो अपने ही क्लास के छात्र-छात्राओं ने उन्हें आलोचना सुनानी शुरू कर दी,वह बताती हैं कि शुरू में ही सबने उन्हे अटेंशन सीकर का टाइगर दे दिया। कोई भी उनकी अच्छी नियत को नहीं देखता था बस उन्हें लग रहा था कि वह पॉपुलरिटी के लिए यह सब कर रही हैं। वह कहती हैं कि मैंने अपने कानों से लोगों को मुझे “भिखारी” कहते हुए भी सुना है, कोई कहता कि देखते हैं कितने दिन तक यह मुहिम चलती है भला एक रुपए में ऐसा क्या है जो यह दुनिया बदल देगी? इस तरह की बातों से मैं बहुत परेशान भी हुआ करती थी लेकिन फिर मैं उन बच्चों के बारे में सोचती जिनकी उम्मीद मुझसे बन रही थी,उनकी पढ़ाई नहीं छूटेगी बस इसी एक मोटिवेशन ने मुझे यहां तक पहुंचा दिया।

देशभर में पहुंची यह मुहिम सीमा कहती हैं कि जैसे-जैसे उन्होंने सोशल मीडिया पर इस मुहिम के बारे में लिखना शुरू किया तो खुद ब खुद नेक नियत के लोग उनसे जुड़ने लगे, मदद मांगने वालों से लेकर मदद करने वालो तक, उन्हें सभी तरह के लोग एप्रोच करते हैं। आगे वह कहती है, “मैं लोगों को यही कहती हूं कि मुझे पैसे भेजने की जरूरत नहीं है. आप जहां हैं वहीं किसी जरूरतमंद की मदद करें. थोड़ा सा, बस थोड़ा सा अपने आसपास के लोगों पर ध्यान दें। आपको हर दिन कोई न कोई जरूरतमंद मिलेगा जिसकी किसी न किसी तरह आप मदद कर सकते हैं। तो बस बिना हिचकिचाहट उनकी मदद करें यही सच्ची सेवा है।