Bharat Bandh 2025 : बुधवार को भारत बंद को लेकर जहां एक ओर महागठबंधन और एनडीए के बीच “बंद सफल या असफल” को लेकर बयानबाज़ी जारी रही, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हकीकत ने यह साफ कर दिया कि यह बंद, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एक तरह का राजनीतिक रिहर्सल बन चुका है।
बंद से ज़्यादा दिखा टिकट का ‘प्रदर्शन’ : भारत बंद के आह्वान पर महागठबंधन से जुड़े दलों राजद, कांग्रेस, माकपा, सीपीआई आदि ने जोरदार भागीदारी दिखाई। लेकिन खास बात यह रही कि कई नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह विरोध का नहीं, बल्कि टिकट की दावेदारी दिखाने का मौका बन गया।
महागठबंधन के टिकट के दावेदारों ने अपने समर्थकों के साथ सड़क पर उतर कर न केवल प्रदर्शन किया, बल्कि इसे कैमरे में भी भरपूर कैद करवाया। मोबाइल से बनाए गए वीडियो, फोटोज़, फेसबुक लाइव और यूट्यूब कंटेंट के ज़रिए खुद को ‘फील्ड में एक्टिव’ दिखाने की होड़ साफ़ देखी गई।
भाड़े पर आए यूट्यूबर और कैमरा टीम
सूत्रों के अनुसार, कुछ स्थानीय नेता बंद के दौरान अपने निजी वीडियो शूट करवाने के लिए यूट्यूबरों और वीडियोग्राफरों को पैसे देकर लाए थे। उन्होंने पोस्टर, झंडा, नारे और भीड़ के साथ अपने-अपने इलाके में शक्ति प्रदर्शन किया , मानो टिकट तय करने वाली कोई ऑडिशन चल रही हो।
राजद के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया,
“कई लोग बंद के असल मुद्दे को पीछे छोड़ सिर्फ ये दिखाने में लगे रहे कि वे कितने समर्थक जुटा सकते हैं। उन्हें चिंता प्रदर्शन की नहीं, टिकट की थी।”
सत्ताधारी गठबंधन की प्रतिक्रिया : एनडीए से जुड़े नेताओं ने इस बंद को “राजनीतिक नौटंकी” करार दिया। उनका कहना है कि जनता ने बंद को पूरी तरह खारिज कर दिया और महागठबंधन के नेता इसे विधानसभा चुनाव का प्रचार बना बैठे हैं।
क्या था बंद का असली मुद्दा?
महागठबंधन का दावा था कि यह बंद केंद्र सरकार की नीतियों, निजीकरण, बेरोज़गारी और महंगाई के खिलाफ था। सीपीआई से जुड़े एक नेता ने कहा कि यह बंद एनडीए द्वारा मतदाता सूची में की जा रही छेड़छाड़ के खिलाफ भी था। उन्होंने बताया कि “हम जनता को बता रहे हैं कि लोकतंत्र और संविधान पर खतरा मंडरा रहा है।”
लेकिन पब्लिक को क्या दिखा?
सड़क पर जो तस्वीरें दिखीं, उनमें से ज़्यादातर राजनीतिक दलों के PR स्टंट जैसी थीं। पोस्टर, सोशल मीडिया शूट, कैमरा के आगे नारेबाज़ी, और बाद में वीडियो वायरल करवाना — यह सब इस बात की ओर इशारा करता है कि कई नेताओं के लिए मुद्दा सिर्फ माध्यम था, असली मक़सद टिकट की दावेदारी दिखाना था।