Train के इंजन में क्यों नहीं होते हैं शौचालय? जानें – महिला ड्राइवर को क्या-क्या झेलना पड़ता है!

Train Engines : वैसे तो अधिकतर लोग ट्रेन में ही सफर करना पसंद करते हैं क्योंकि उनकी यात्रा काफी सहज और सरल हो जाती है और उन्हें लंबे सफर के दौरान खाने-पीने और शौचालय जैसी सुविधाएं भी ट्रेन में ही मिल जाती हैं। लेकिन जब ट्रेन के इंजन की बात आती है तो इसमें लोको पायलट को ना तो खाने-पीने की सुविधा मिलती है और ना ही शौचालय जाने की। लेकिन जब बात महिला लोको पायलट की आ जाए तो परेशानी और भी बढ़ जाती है।

महिला लोको पायलट शौचालय न होने के कारण काफी परेशान होती है और इंजन में उन्हें 10 से 12 घंटे का समय बिताना होता है। इतने लंबे समय तक पुरुष लोको पायलट भी नहीं रह सकते है। लेकिन देश की 14000 ट्रेन में से सिर्फ 97 ट्रेनों में ही बायो टॉयलेट की सुविधा उपलब्ध है। ट्रेन के इंजन में शौचालय की सुविधा न होने के कारण कई महिला लोको पायलट या तो ऑफिस में ही काम करना पसंद करती हैं या फिर माहवारी के दिन या अन्य दिन सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करते हैं।

हालांकि ये महिला लोको पायलट के साथ ही पुरुष लोको पायलट के लिए भी अमानवीय व्यवहार है। इसलिए रेलवे में भर्ती हुई महिला लोको पायलट या सहायक लोको पायलट को ट्रेन इंजन में शौचालय की सुविधा न होने के कारण ऑफिस रूम में ही बैठकर काम करना पड़ता है।

मालगाड़ी की स्थिति और भी खराब

एक अन्य महिला लोको पायलट ने बताया कि इसमें यार्ड में इंतजार करना, यात्रा की तैयारी करना और फिर वास्तव में मालगाड़ी को 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पांच से सात घंटे के बीच कहीं भी चलाना शामिल है। लेकिन कहीं पर भी महिलाओं के लिए कोई सुविधा मौजूद नहीं है। इसलिए मुश्किल घड़ी में वह सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। दूसरी सहयोगी महिला ने बताया कि मालगाड़ी में हालत खराब होती है इसके अलावा यात्री गाड़ी में भी उन्हें दूसरे डिब्बे में चढ़कर शौचालय जाने जितना टाइम नहीं मिल पाता है।

रनिंग रूम में नहीं है महिला शौचालय

एक अधिकारी की जानकारी के अनुसार ट्रेन इंजनों में शौचालय बनवाने की लड़ाई लंबे समय से चल रही है लेकिन अब तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यह सभी के लिए एक बुरा अनुभव है, खासकर की महिलाओं के लिए। इसके अलावा आप पुरुषों के लिए रनिंग रूम में शौचालय होते हैं लेकिन महिलाओं के लिए अलग से शौचालय नहीं बनवाए गए हैं।

विदेशों में है क्या व्यवस्था

वहीं अमेरिका ब्रिटेन और यूरोप जैसे देश में हर चार-पांच घंटे में 20-25 मिनट ब्रेक देने का नियम है। इन क्षेत्रों में, लोको पायलट प्रति सप्ताह 48 घंटे ड्यूटी करते हैं। भारत में यह संख्या 54 घंटे तक बढ़ जाती है।