पारसियों की ‘टावर ऑफ साइलेंस’ की प्रक्रिया क्या है, जिसका विरोध सुप्रीम कोर्ट तक किया जा चुका है

हाल ही में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार उनकी मृत्यु के बाद किया गया ।जिसके बाद से एक शब्द टावर ऑफ साइलेंस काफी ज्यादा सुना जाने लगा। साइरस मिस्त्री पारसी धर्म के अनुयायी थे और पारसी धर्म में अंतिम संस्कार को टावर ऑफ साइलेंस पर किया जाता है।

जिस तरह सनातनी धर्म को मानने वाले लोग शवों को अग्नि में ,जल में डालकर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी करते हैं। वही इस्लाम व ईसाई धर्म में शव को धरती को सौंप दिया जाता है। इसी तरह से हर धर्म में कोई ना कोई अलग तरीका शवों के अंतिम संस्कार का जरूर रहता है।इसी तरह पारसी संप्रदाय के लोग जल और अग्नि को देवता मानते हैं और प्रकृति को अशुद्ध करना सही नहीं समझते हैं ।इसीलिए किसी भी शव को आसमान के हवाले कर दिया जाता है ताकि गिद्ध और चील उसे खा ले।

3000 वर्ष पुरानी है शवो के अंतिम संस्कार की परंपरा पारसी धर्म में टावर ऑफ साइलेंस अंतिम संस्कार करने की जगह होती है। इसे दखमा भी कहा जाता है। यह दिखने में काफी बड़ा कुवे जैसा है जहां शव को लटका दिया जाता है और माना जाता है कि शव को आसमान के हवाले कर दिया गया है। जिसे गिद्ध और चील उसे खा लेंगे। पारसी धर्म में अंतिम संस्कार करने की यह परंपरा लगभग 3000 वर्ष से भी ज्यादा वक़्त से चली आ रही है। लेकिन अब यह परंपरा अपने आप कम होती जा रही है ।गिद्धों और चीलों का शवों को खाना पारसी समुदाय के रिवाज का एक हिस्सा है। हालांकि इस मामले में काफी विवाद हो चुका है और मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच चुका है।

पारसी समुदाय मानने लगे है अब सनातनी प्रक्रिया शवो के अंतिम संस्कार के लिए हालांकि पिछले कुछ समय से पारसी समुदाय के लोगों ने इस परंपरा को मारना काफी कम कर दिया है। पारसी परंपरा भी अब पुरातन रिवाजों को छोड़कर शव को जलाकर इसका अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी कर रहे है। यह शव को टावर ऑफ साइलेंस पर न रखकर विद्युत शवदाह गृह, श्मशान घाट ले जाकर उनका संस्कार करते हैं। साइरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार भी हिन्दू शमशान घाट में किया गया है।