गर्व! ट्रक ड्राइवर का बेटा बना IAS अफसर, कभी कोचिंग के फीस भरने तक नही थे पैसे..

IAS Pawan Kumar :कहा जाता हैं कि कुछ करने का जज्बा और मन में विश्वास हो तो आप कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सफलता के शिखर तक पहुच भी जाते हैं। कुछ ऐसा ही राजस्थान के एक ट्रक ड्राइवर के बेटे ने असंभव को संभव कर दिखाया है, जिसने कड़ी मेहनत करके देश की सबसे बड़ी परीक्षा UPSC पास कर ली है। यानि ट्रक ड्राइवर का बेटा अब IAS अधिकारी बन गया है। देशभर में 551वीं रैंक में चयन भी हुआ है। आपको बता दें कि संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा 2021 का फाइनल रिजल्ट सोमवार को जारी भी कर दिया है।

पिता ट्रक ड्राइवर से पहले मिट्टी के बर्तन भी बनाते थे : दरअसल, कामयाबी के झंडे गाड़ने वाला यह होनहार छात्र पवन कुमार कुमावत हैं। जिनका देशभर में 551वीं रैंक में चयन भी हुआ है। पवन कुमार मूल रूप से नागौर जिले के सोमणा के रहने वाले हैं। उनके पिता रामेश्वरलाल ने ट्रक की ड्राइवरिंग करके अपने बेटे को पढ़ाया और लिखाया है। पवन कुमार की शुरुआत शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में हुई थी। पिता ट्रक ड्राइवर से पहले गांव में ही मिट्टी के बर्तन बनाने का काम भी करते थे। उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए गांव छोड़ दिया और नागौर में आकर रहने भी लगे। जब कोई काम नहीं मिला तो वह ड्राइविंग भी करने लगे। यहीं से पवन कुमार ने अपनी आग की पढ़ाई पूरी की। हालांकि आगे की पढ़ाई के लिए वो राजधानी जयपुर भी गए थे।

दादी के एक मूलमंत्र ने दिला दी पवन को सफलता : पवन कुमार ने बताया कि मैं बहुत ही भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे माता और पिता मिले। जिन्होंने मेरे करियर को बनाने के लिए दिन रात तक एक कर दिया। उन्होंने ही मेरी कामयाबी का सपना भी देखा था। जिसे अब मैंने पूरा भी कर दिया है। घर पर लाइट का कोई कनेक्शन नहीं था। कभी पड़ोस से कनेक्शन लेते थे। कभी लालटेन या चिमनी से पढ़ते भी थे। मेरे परिवार के सपोर्ट से मैंने मेरी पढ़ाई को प्रायोरिटी भी दी थी। दादी यह कहती थी कि भगवान के घर में देर होती है अंधेरे नहीं होती है। आप कर्म करों और फिर फल की चिंता नहीं करो। मैंने इसी को मूलमंत्र बनाकर निरंतर प्रयास भी जारी रखा।

झोपड़ी में रहता था पूरा परिवार, जहां नहीं रहती थी लाइट तक : पवन कुमार ने बताया कि जब हम गांव से नागौर आए थे तो उस समय पिता को 4 हजार सैलरी मिलती थी। जिसमें मेरी पढ़ाई और घर का खर्चा भी चलता था। लेकिन मैंने कभी पिता को इस बात के लिए टेंशन में भी नहीं देखा कि वह मुझे कैसे पढाएंगे। वह कहते थे कि तुम मन लगाकर खूब पढ़ो, जो चाहिए वो मिल जाएगा। तुम हमारी चिंता मत करना। हम एक ही झोंपड़ी में रहते थे, जहां कभी लाइट रहती तो कभी नहीं रहती थी। घर पर लाइट का कोई कनेक्शन नहीं था। कभी पड़ोस से कनेक्शन लेते थे। कभी लालटेन या चिमनी से पढ़ते भी थे। पवन कुमार ने बताया कि पिता जी 8वीं तक पढ़ें हैं, लेकिन मुझे पढ़ाने में कोई कसर तक नहीं छोड़ी।