Breast Tax : कभी महिलाओं को स्तन ढंकने के लिए चुकाने होते थे टैक्स! पढ़ें- पुरानी कुप्रथा की कहानी…

Breast Tax: आज देश का हर एक नागरिक को टैक्स चुकाना पड़ता है. चाहे वो दूध, कपड़ा, सड़क, पेट्रोल, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ही क्यू ना हो. हालांकि ये कोई बड़ी बात नहीं है. लोग इस कर को आसानी से पे कर देते है. लेकिन यही कर 19 वीं शताब्दी में कैसे लिया जाता है और किस किस पर टैक्स लिया जाता था.

अगर आप इन टैक्स के बारे में जान लेंगे तो यह बात साफ है. आप को जरूर इस से धक्का लगेगा की उस समय महिलाएं और पुरुष कैसे अपना जीवन जीते थे. तो चलिए आज से 150 से 200 साल पीछे चलते है और उस समय टैक्स के रूल्स के बारे में जानते है.

यह बात आज से 150 से 200 साल पहले की है. जब केरल मे त्रावणकोर का शासन चलता था. उस समय समाज में जातियां खानों की तरह अलग-अलग बटी हुई थी. और त्रावणकोर का राजा चली जाति के लोगों पर बड़ी क्रूरता से टैक्स लादकर वसूल था.

यहां लोगों को मूछ रखने पर टैक्स, आभूषण पहनने पर टैक्स, मछली का जाल रखने पर टैक्स, नौकर या दास रखने पर टैक्स और तो और स्तन ढकने पर भी टैक्स (Breast Tax) वसूला जाता था. यह बात सुनने में भले ही ताज उसी लगे लेकिन आज से 2 साल पहले भारत में गरीब और निचली जातियों के महिलाओं को अपना स्तन ढकने के लिए टैक्स चुकाना पड़ता था.

स्तन का आकार और फुट के हिसाब से वसूला जाता था टैक्स

बता दें कि यह टैक्स महिलाओं के स्तन के आकार और उसके आकर्षकता का फुट के आधार पर तय किया जाता था. इस कर को मलयालम में मुल्क्करम रखा गया था. जिसे राजा द्वारा नियुक्त कलेक्टर बकाया धार दलितों के घर जाकर इसे वसूलता था.

हालांकि भारत में 1882 में एक क्रांति आई जब महिलाओं ने इस टैक्स के खिलाफ बगावत कर दिया. क्रांति के बाद लगातार एक के बाद एक यानी कुल 3 विद्रोह किया गया जिसमें पहला 1822 से 1823 वहीं दूसरा 1827 से 1829 और तीसरा 1858 से लेकर 1859 तक. इस क्रांति को बढ़ावा देने और महिलाओं की सुरक्षा के लिए नांगेली नाम की एक साधारण महिला सामने आई.

नांगेली ने अपना ही स्तन काट कर दे दिया टैक्स में

दरअसल, नांगेली ने विद्रोह तो शुरू कर दिया. लेकिन इस क्रांतिकारी महिला को विद्रोह का हर्जाना कुछ इस प्रकार चुकाना पड़ेगा शायद उसने सोचा नहीं था. क्रोध में तब रही इस क्रांतिकारी महिला से जब राजा द्वारा नियुक्त कलेक्टर कर वसूलने पहुंचा तो नांगेली ने अपना ही स्तन काटकर केले के हरे पत्ते में अधिकारी को सौंप दिया. लेकिन खून के फव्वारे से लथपथ हरे केले के पत्ते पर छटपटाते स्तन देखकर अधिकारी को सांप सूंघ गया.

शरीर के ऊपरी हिस्से पर कपड़े पहनने को लेकर अधिकार

यह बात 18वीं और 19वीं सदी की है जब नायर, वेल्लार और नंबूदरी जातियों को उच्च जाति की श्रेणी में गिना जाता था. वही पुलस्य और एडवा जैसी जातियों को निचली जातियों में गिना जाता था. इस दौरान यहां महिला हो या फिर पुरुष निम्न वर्ग के हो या उच्च वर्ग के सभी को मुंडू यानी धोती पहनने का प्रावधान था. इस चलन में धोती कमर के नीचे ही पहनी जाती थी जबकि महिलाओं को शरीर के ऊपर का हिसार ढकने का अधिकार नहीं था.

रानिया और राजकुमारी अभी नहीं पहनती थी कमर के ऊपर कोई कपड़ा

केरल के इतिहासकार मनु एस पिल्लै के अनुसार 16वीं सदी में जब केरल में व्यापार करने पुर्तगाली आए. तो उन्होंने कमर से ऊपर बिना कपड़े की राजकुमारियों को व्यापार और युद्ध करते हुए देखा. वही 17 वी सदी में जब इटली के व्यापारी के एक राज्यसभा में साहिब महिलाओं को कमर के नीचे कपड़ों में देखा गया तो वो आश्चर्यचकित हो गए. जबकि तत्कालीन राजा 2 राजकुमारियों को इटली के व्यापार में पूरे कपड़े में देखा तो हैरान होकर बोले कि इतनी गर्मी में मनुष्य इतने कपड़े क्यों पहनता है?