क्या आप भी घर किराए पर लगातें हैं? तो जान लीजिए House Property Tax से जुड़े सभी नियम, वरना…

House Property Tax : भारत में इनकम टैक्स एक ऐसा पेचीदा मामला है जिसको समझने में अच्छे से अच्छे लोग पसीना से लथपथ हो जाते हैं। इससे जुड़ा नियम भी समय दर समय बदलते रहता है। एक नया वित्तीय वर्ष (New financial year) फिर से शुरू हो गया है। और इस वित्तीय वर्ष (New Financial Year) में इनकम टैक्स (income tax) का झमेला एक बार फिर से आपके सर आ टपका है। अगर आप भी परेशान हैं इनकम टैक्स (income tax) में टैक्स कैसे बचाएं तो आपको माहिनी से इस नियम को समझने की जरूरत है।

खैर आज इस आर्टिकल में हम आपको रेंट (Home Rent) से होने वाली आय या किसी भी घर को बेचकर अगर आप पैसे कमा रहे हैं तो उस पर आपको कितना टैक्स देना होगा और आप अपने इस कमाई से टैक्स कैसे बचा सकते हैं यह बताने जा रहा हूं।

किसी भी अन्य आय स्रोत ( Income source) की तरह, एक गृह संपत्ति/घर (Income From House Property) से आय भी आयकर अधिनियम 1961 (Income Tax Act) के तहत आता है। इसके एक भाग के रूप में, संपत्ति का वार्षिक मूल्य ( Annual Income) इसका टैक्स वैल्यू है, मालिक जो आय से प्राप्त करता है। अगर आप संपति से पैसा कमा रहे हैं तो फिर आपको उसपे वर्तमान टैक्स दर के हिसाब से टैक्स देना होगा।

भारत में टैक्स

विशेष रूप से, कराधान (Taxation) जो कि भारत सरकार (Indian Government) के लिए एक प्रमुख राजस्व सृजन ( Revenue Generation) का साधन है, विभिन्न प्रकार की वस्तुओं, सेवाओं, आय के स्रोतों और उपयोगिताओं पर टैक्स लागू होता है।

संपत्ति से आय (Income From House Property) भी उनमें से एक है जिस पर आपको टैक्स देना होता है। जैसे कि यदि आपके पास एक घर है और इसे किरायेदारों को किराए पर दिया है, तो आपको गृह संपत्ति (Income From House Property) से आय पर टैक्सों के बारे में अधिक जानने की आवश्यकता हो सकती है।

जब घर की संपत्ति से आय (Income From House Property) की बात आती है, तो इसे आईटीआर-1 (ITR 1), आईटीआर-2 (ITR 2), आईटीआर-3 (ITR 3) और आईटीआर-4 (ITR 4) जैसे विभिन्न आयकर रिटर्न (Income Tax Return) फॉर्म का उपयोग करके भवन या भूमि दोनों से अर्जित किया जा सकता है।

विभिन्न मामलों के लिए, करदाताओं (Income Tax Payers) को उल्लिखित रूपों में से विभिन्न रूपों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।

गृह संपत्ति से आय के बारे में (Income from House Property)

संपत्ति का कानूनी मालिक अपनी गृह संपत्ति से प्राप्त होने वाली आय पर कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी रहता है। स्व-अधिकृत (House Owner) और किराये की संपत्ति (Rent From Tenants) दोनों को आय (Income) के रूप में माना जा सकता है और हाउस प्रॉपर्टी से आय के अंतर्गत आता है।

गृह संपत्ति (Income From House Property) से आय की गणना (Income Calculation) करने से पहले, किसी को अपनी संपत्तियों की श्रेणी निर्धारित (Income Tax Slab) करने की आवश्यकता होती है क्योंकि इससे टैक्स उपचार और गणना को ठीक से निर्धारित करने में मदद मिलेगी। घरेलू संपत्तियों को आमतौर पर तीन श्रेणियों में बांटा जाता है:

  • एक संपत्ति स्व-अधिकृत तब होती है जब घर पर मालिक का कब्जा होता है या भले ही वह नियोजित होने या किसी अन्य स्थान पर काम करने के कारण उस पर कब्जा करने में असमर्थ हो।
  • किराए पर दी गई संपत्ति मूल रूप से तब होती है जब मकान किरायेदारों को किराए पर दिया जाता है और कर मालिक को इससे किराये की आय प्राप्त होती है।
  • यदि टैक्स पेयर के पास व्यक्तिगत उपयोग के लिए दो से अधिक आवासीय संपत्तियां हैं, तो इस केस में करदाता के पास विकल्प यह है कि वे किसी भी दो आवासीय संपत्ति को अपने मालिकाना हक में मानें, तथा बाकी जो शेष है उसको लीज पर दी गई संपत्ति के रूप में मान लें।

गृह संपत्ति से आय की गणना कैसे की जाती है? (How to calculate income from House Property)

गृह संपत्ति से किसी की आय की गणना करने के लिए, करदाताओं को दो-चरणीय प्रक्रिया का पालन करने की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया के तहत पहले संपत्ति के वार्षिक मूल्य की गणना करना होता है और उसके बाद उसके वार्षिक मूल्य से कुछ कटौती की जाती है तब जा कर किसी भी संपति से कितना आय हुआ यह निकाला जाता है।

  • वार्षिक मूल्य की गणना : घर की संपत्ति से आय को केवल प्राप्त होने वाली किराये की आय पर कर (टैक्स) के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। यह मूल रूप से वह टैक्स है जो संपत्ति की कमाई क्षमता पर लगाया जाता है। सबसे पहले इस संपत्ति का जो आय उत्पन्न करने की क्षमता है और इसका मूल्यांकन हर वर्ष किया जाता है। किसी भी घर का वार्षिक मूल्यांकन कई चीजों पर निर्भर होता है जैसे कि नगरपालिका का मूल्यांकन, उस इलाके का रेंट, इन सब को आधार मान कर किया जाता है।
  • कुछ कटौती : वार्षिक मूल्य या जिसे सकल वार्षिक मूल्य (जीएवी) माना जाता है, का निर्धारण करने के बाद, मालिकों को शुद्ध वार्षिक मूल्य (एनएवी) की गणना करने की आवश्यकता होती है, जो कि जीएवी से नगरपालिका करों सहित आवश्यक कटौती घटाकर निर्धारित किया जाता है। ऐसे मामलों में मेंटेनेंस और होम लोन पर चुकाए गए ब्याज से होने वाले खर्च को भी काट लिया जाता है।