बिहार के किसानों को अब रसीद की जरूरत नहीं पड़ेगी धान बेचने के लिए, नीतीश सरकार ने की पहल

डेस्क : बिहार के किसानों को धान बेचने में एलपीसी (भूमि स्वामित्व प्रमाण पत्र) की तो जरूरत ही नहीं है, रसीद भी नहीं है तो चलेगा। केवल खेत का रकबा और खाता- खेसरा साइट पर डाल दीजिये, आप धान बेचने को अधिकृत हो जाएंगे। प्रक्रिया को सरल कर दिया गया है – अब से सरकार ने नई व्यवस्था के तहत एलपीसी की अनिवार्यता खत्म कर दी है। साथ ही, क्रय केन्द्रों पर सादे कागज पर लिखकर देना होगा रकबा, खाता, खेसरा , इसके अलावा किसानों को केवल खेत का खाता, खेसरा और रकबा देना होगा।गैर रैयत किसानों को शपथ पत्र देने से मुक्ति मिल गयी ।धान बेचने के नये नियम में दोनों को आप्शनल कर दिया गया है।

साथ ही ख़ुशी की बात ये है की नई व्यवस्था से 15 हजार किसानों ने आवेदन भी कर दिया है।गैर रैयतों को भी शपथ पत्र (एफीडेविट) साइट पर डालने की जरूरत नहीं है, लेकिन अगर गलत किया तो जांच में फंसेंगे किसान ही। राज्य सरकार धान की सरकारी खरीद की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए रोज बेहतर उपाय कर रही है। एलपीसी की बाध्यता खत्म करने के बाद रसीद को लेकर समस्या आई तो सरकार ने इसे भी आप्शनल में डाल दिया। यानी रसीद या एलपीसी है तो दे दीजिए, नहीं है तब भी कोई बात नहीं।

नई व्यवस्था में किसानों को ऑनलाइन आवेदन में अपने खेत का रकबा और खाता-खेसरा नम्बर डालना होगा। इसी के साथ सरकार ने गैर रैयत किसानों को भी काफी सहूलियत दी है। उन्हें अब इसका शपथ पत्र देने की कोई जरूरत नहीं है कि वह किसकी जमीन के कितने रकबे में खेती कर रहे हैं। बस, धान बेचते समय क्रय केन्द्र पर ही रकबे की जानकारी सादे कागज पर खुद के हस्ताक्षर से एजेन्सी को दे देनी है। सरकार की इस नई व्यवस्था का संभव है कुछ दुरुपयोग होगा लेकिन किसानों को बड़ी राहत भी मिलेगी। दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार ने बाद में जांच की भी व्यवस्था की है। अगर कोई दूसरे का खाता-खेसरा नम्बर दे दिया तो उसपर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

दरअसल एलपीसी की बाध्यता खत्म होने के बाद रसीद को लेकर समस्या होने लगी थी। अधिसंख्य किसानों की जमीन उनके पूर्वजों के नाम है। ऐसे में जिसके नाम रसीद है वह अब जिंदा नहीं हैं तो उनके वंशज से धान खरीद का प्रावधान ही नहीं है। पहले रसीद देखकर किसान की परिवारिक सूची के आधार पर एलपीसी बन जाता था। इसी परेशानी को देखते हुए सरकार ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि किसान खुद अपना डिक्लरेशन साइट पर देंगे कि उन्होंने अमुक खेसरा नम्बर के इतने रकबे में खेती की है। उसी आधार पर एजेन्सियां उनका धान खरीद सकेंगी।