बिहार विधानसभा चुनाव 2020 : रघुवंश बाबू का यूँ जाना, राजद की समाजवादी छवि के लिए नुकसानदेह

डेस्क : रघुवंश बाबु की गिनती देश के बड़े समाजवादियों में थी , जमीं पर रहकर कैसे काम किया जाता है कोई उनसे सीखे। जमीं पर रहकर आम जनता से न सिर्फ जुड़ना बल्कि उनकी समस्याओं को सुलझाना भी उनकी फितरत में शामिल था। जहाँ राजद के नेता अपनी गुंडागर्दी के लिए मशहूर थे वही रघुवंश बाबु पर मजाल है की कोई कभी किसी भी तरह के की गुंडागर्दी का आरोप लगा दे। उनकी छवि कुछ वैसी ही थी जैसे कीचड़ में कमल की होती है।

राजद को जातिवाद की राजनीति से ऊपर उठाकर जनता के दिलों में कैसे पहुंचना था ये काम रघुवंश बाबु बखूबी जानते थे।खेर अब बात ये उठती है की उनके जाने के बाद क्या – एक तो उन्होंने जाने से पहले इस्तीफा दे दिया था हालाँकि राजद सुप्रीमो लालू यादव उनको मनाने में जुटे थे पर —उनका यूँ चले जाना कहीं न कहीं तेजस्वी की मुश्किलें बढ़ाता नज़र आ रहा है।

चलिए देखते है कुछ बातें जो अब राजद को नुकसान पहुंचाएंगी :

  1. राजद परिवार ने अभिभावक खोयाः वोट के लिहाज से रघुवंश बाबू का भले ही प्रतीकात्मक महत्व था, लेकिन वे राजद में लालू के बाद वे सबसे बड़ा चेहरा थे।लालू उन्हें प्यार से ‘ब्रह्म बाबा’ बुलाते थे और उनके बगैर अपने को अकेला महसूस भी करते थे।
  2. राजनीतिक मसले ही नहीं, बल्कि लालू परिवार के पारिवारिक मसलों को भी वे अपनी समस्या मानते थे।इस कारण उन्होंने कई बार पहल भी की और कभी भी लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव और बहू ऐश्वर्या राय के तलाक प्रकरण को हमेशा परिवार का ही मसला कहा।
  3. राजद ने एक निर्भीक नेता खो दियाः रघुवंश प्रसाद सिंह अपनी बोली में बेबाक थे, तो विचारों में भी उतने ही निर्भीक थे। राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टी में होते हुए भी उन्होंने सवर्ण आरक्षण का जब विरोध किया गया तो वे उठ खड़े हुए और तेजस्वी यादव को नसीहत दे डाली।
  4. दीगर है तब तेजस्वी ने इस बात को नहीं समझा, लेकिन उनके अनुभव की बात को राजद के नए नेतृत्व ने भी आखिरकार समझ ही लिया और अपनी गलती सुधारने के लिए ही जगदानंद सिंह और अमरेंद्र धारी सिंह जैसे चेहरे को आगे किया और सर्वसमाज की बात करने लगे।
  5. राजद ने एक इंटेलेक्चुअल फेस खोयाः लालू प्रसाद यादव जब भी कहीं होते तो रघुवंश प्रसाद सिंह की मौजूदगी भर से ही उनका मंच और भी दमदार लगता था। जब भी कहीं लालू न रहे हों वहां अगर रघुवंश प्रसाद सिंह मौजूद रहते थे तो कोई भी राजद की आवाज को कमजोर नहीं कर सकता था।
  6. भले ही लालू के जेल जाने के बाद नए नेतृत्व को उनकी अहमियत नहीं समझ आई, लेकिन उनके गुजरने के बाद राजद को उनका महत्व समझ आएगा ही।
  7. राजद ने कई दागों के बीच बेदाग छवि खोयाः वे राष्ट्रीय जनता दल के एक ऐसे नेता थे जो बेदाग और निष्पक्ष छवि के थे।
  8. रघुवंश प्रसाद सिंह राजद जैसी पार्टी के लिए इस मायने में एक एसेट थे।वे एक तरह से राजनीतिक संत कहे जा सकते हैं जो राजद की मान्य छवि के बिल्कुल ही विपरीत था। वे बनावटविहीन और बिल्कुल ही सहज नेता थे। उनसे जब चाहे कोई भी कभी भी मिल सकता था।
  9. कायदे से विपक्ष के निशाने पर आ गया राजदः लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने हाल में ही जब उनकी तुलना समुद्र में एक लोटा पानी से की तो वे बेहद आहत हो गए। शायद उनके निधन के पीछे की वजह ये कचोटती हुई बातें भी रही हों।

बहरहाल उनके आखिरी क्षणों में जब राजद ने अपमानित किया तो जाहिर है विरोधी दल इसे भुनाएंगे ही। विरोधी पार्टियां ये तो जरूर कहेंगी कि राजद ने जब इतने बड़े कद्दावर नेता को मान नहीं दिया, तो ये देश, राज्य या समाज को क्या दिशा देंगे? विपक्ष के लिए चुनावी मुद्दा तो बनेगा ही रघुवंश बाबू का यूँ जाना और जाने से पहले उनका इस्तीफा देना।