बेगूसराय में कांग्रेस को मिली मात्र एक सीट, गठबन्धन की राजनीति में वजूद पर बनी है बात

पोलिटिकल डेस्क : बिहार में ढलते मानसून के साथ बढ़ गयी है चुनावी तपिश बढ़ गयी है। देश और बिहार में बरसों तक राज करनेवाली और बेगूसराय जिले में कभी कम्युनिस्ट कांग्रेस के संघर्ष का गवाह बनी कांग्रेस पार्टी बेगूसराय जिले में अपना वजूद खोने की स्थिति में पहुंचती जा रही है। तभी तो आजादी के बाद पहली बार वर्तमान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी बेगूसराय जिले में मात्र एक सीट से चुनाव लड रही है। पहली बार बेगूसराय जिले में गठबंधन राजनीति में वह एक क्षेत्र में सिमट कर चुनाव लड रही है।

बेगूसराय में एक मात्र सीट पर चुनाव लड़ रही है कांग्रेस पार्टी इस बार बने महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी को एकमात्र सिटिंग सीट बेगूसराय ही नसीब हो सका। वहां से कांग्रेस ने अपने सिटिंग विधायक अमिता भूषण को मैदान में दुबारा उतारा है।उससे ज्यादा सीटें वामपंथी दलों को मिला। जिनके चार उम्मीदवार मैदान में हैं। कांग्रेस को उसकी सिटिंग सीट बछवाड़ा भी गठबंधन में नहीं मिल सका। जबकि, वहां से सिटिंग एमएलए रामदेव राय की मौत के बाद उनके पुत्र उम्मीदवार बनने वाले थे। महागठबंधन में यह सीट सीपीआई के हिस्से में गयी। जबकि,1972 से सीपीआई से ही लड़कर रामदेव राय लगातार की टर्म यहां से कांग्रेस पार्टी के विधायक चुने जाते रहे।

विधायक स्व रामदेव राय के पुत्र ने बछवाड़ा से निर्दलीय ताल ठोका सिटिंग सीट के कांग्रेस को न देने से आहत दिवंगत विधायक के पुत्र निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं।अब वे अपने पिता के वोट-बैंक को बचाए रखते हैं या फिर चुनाव हार कर मैदान से बाहर हो जाते हैं। जिले में कांग्रेस तीसरी सीट मटिहानी से चुनाव लडती रही है। वहां से अभय कुमार सिंह सारजन चुनाव लड़ते रहे थे। पिछले दो चुनावों से यह सीट गठबंधन में चली जाती है। इसबार यह सीट सीपीएम को मिली है। कांग्रेस के अभय कुमार सिंह सारजन ने यहां चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी थी। लेकिन,एन वक्त पर सीट छोड़ देने से सारजन सिंह चुनाव लडने से वंचित रह गए। कांग्रेस पार्टी के एक सीट पर सिमटने से कार्यकर्ताओं में निराशा है। कांग्रेस पार्टी के नेता और अधिवक्ता डाक्टर रजनीश कुमार कहते हैं कि पार्टी नेतृत्व बिना जमीनी सच्चाई को जाने सीटों का एडजस्टमेंट कर लेते हैं इसका खामियाजा उम्मीदवार और संगठन को भुगतना पड़ता है।