इलाज कम लूट ज्यादा : कोरोनाकाल का काला अध्याय, आपदा में अवसर की दुःखद कहानी

स्पेशल डेस्क : बहुत दुःखद और भयावह स्थिति है । एक तरफ कोरोना के कारण लोगों की मौत हो रही है तो दूसरी तरफ कालाबाजारी अपने चरम है। रेमिडसिवर एक ऐसा इंजेक्शन है जिससे कोरोना ठीक होने की गारंटी कतई नहीं है। रेमडेसिवीर एक न्यूक्लियोसाइड राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) पोलीमरेज़ इनहिबिटर इंजेक्शन है।इसका निर्माण सबसे पहले वायरल रक्तस्रावी बुखार इबोला के इलाज के लिए किया गया था।इसे अमेरिकी फार्मास्युटिकल गिलियड साइंसेज द्वारा बनाया गया है।

फरवरी 2020 में US नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शस डिजीज (NIAID) ने SARS-CoV-2 के खिलाफ जांच के लिए रेमडेसिवीर का ट्रायल करने की घोषणा की थी। यह इंजेक्शन कोरोना वायरस के कारण लंग इंफेक्शन की प्रारंभिक स्थिति में ही कारगर है । हरेक कोरोना पीड़ित व्यक्ति को इसकी कतई आवश्यकता नहीं है । 85 % कोरोना पीड़ित व्यक्ति बिना की विशेष चिकित्सा के होम आइसोलेशन और अजिथ्रोमाइसिन , सिफएक्सिम , पैरासिटामोल , विटामिन सी , जिंक युक्त मल्टीविटामिन , मोन्टीलुकास्ट – लिवोसिट्रीजन जैसे दवाओं के सेवन और काढ़ा तथा स्टीम इंहेलेशन से स्वस्थ हो रहे हैं । 10 – 15 प्रतिशत मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता होती है ।

जबकि बमुश्किल 5 % मरीजों को जो दूसरी गंभीर बीमारी से भी ग्रसित होते हैं को ही वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है । फिर रेमिडसिवर पर इतनी हाय – तौबा क्योँ मची है ? उत्तर बेहद संक्षिप्त है ” कॉरपोरेट हॉस्पिटल और ड्रग माफिया का गठजोड़ । ” एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया कहते हैं कि ये कोई जादुई दवा नहीं है । वहीं मेदांता के चेयरमैन नरेश त्रेहान का कहना है कि ये कोई ‘रामबाण’ नहीं है । ये दवा सिर्फ जरूरतमंद बीमार लोगों में वायरल लोड को कम करती है । एक हेल्थ केयर प्रोफेशनलिस्ट होने के नाते मैं खुद यह सोच रखता हूँ कि अगर कोरोना का कोई सिंगल की ट्रीटमेंट है तो वह है ऑक्सीजन की उपलब्धता । अतः सरकार , स्थानीय प्रशासन और हॉस्पिटल प्रबंधन को ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित रखनी चाहिए ।

अब समझते हैं कॉरपोरेट हॉस्पिटल और ड्रग माफिया गठजोड़ को आम तौर पर रेमिडसिवर दवा की कीमत 2800 से 5400 रुपये होती है । लेकिन जब अस्पताल प्रबंधन के द्वारा कोरोना के इलाज के लिए भर्ती मरीज के परिजनों को यह बताया जाता है कि मरीज के जीवन की रक्षा के लिए यह इंजेक्शन बेहद जरूरी है , आप कहीं से भी इसे खरीद कर लाइये तभी मरीज की जान बच सकती है । ऐसा सुनकर मरीज के परिजन पहले शहर में स्थित तमाम दवा की दुकानों की खाक छानते हैं फिर निराश होकर पुनः हॉस्पिटल पहुँचते हैं और हॉस्पिटल प्रबंधन के आगे गिरगिराते हैं । किसी भी कीमत अदा कर रेमिडसिवर इंजेक्शन दिलवाने की बात करते हैं , तो मरीज के परिजनों को इंजेक्शन प्राप्ति का पहला सूत्र हॉस्पिटल प्रबंधन से मिलता है । फिर तीन – चार भाया – मीडिया से गुजरने के बाद आखिरकार मरीज के परिजन के नजरों के सामने रेमिडसिवर इंजेक्शन का वाइल आता है । फिर शुरू होता है कीमत में वारगेन का खेल 40000 – 45000 पर वाइल से शुरू हुआ सौदा अंततः 20000 – 25000 पर वाइल पर पटता है ।

ये तो रेमिडसिवर इंजेक्शन की बात हुई, अब जरा एम्बुलेंस सर्विस की बात कर ली जाय शहरों के अंदर एंबुलेंस सर्विस एयर एम्बुलेंस से भी महंगी हो गयी है । अगर आपको कोविड मरीज को लेकर 10 – 15 किलोमीटर का भी फासला तय करना है तो सामान्य एम्बुलेंस के लिए आपको तीन से चार हजार वसूला जाता है वो भी सेनिटाइजेशन और पीपीई किट के नाम पर । अगर एम्बुलेंस ऑक्सीजन युक्त है तो फिर तो आपको इतनी दूरी के लिए ही सात – दस हजार रुपिया तक देना पर सकता है । यह है आपदा में अवसर की एक तस्वीर।

लेखक : डॉ अभिषेक कुमार , नेत्र रोग विशेषज्ञ , बलिया ( बेगूसराय )