Begusarai News : करीब 23 साल पुराने एक प्राणघातक हमले के मामले में बेगूसराय की अदालत ने शुक्रवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सप्तम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश नवीन कुमार श्रीवास्तव की अदालत ने सबूतों और गवाहों के आधार पर एक आरोपी को सात वर्ष की कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही अदालत ने आर्थिक दंड भी लगाया है।
सजा पाने वाला आरोपी साहेबपुरकमाल थाना क्षेत्र के सबलपुर गांव निवासी सिकंदर यादव है। उस पर 4 नवंबर 2002 को गांव के ही अरुण यादव पर गोली चलाकर जानलेवा हमला करने का आरोप था। घटना उस वक्त की है जब अरुण यादव अपने खेत में जुताई कर रहे थे। उसी दौरान सिकंदर यादव और उसके साथ अन्य आरोपी हरबे हथियार के साथ पहुंचे और हमला कर दिया। घटना को लेकर पीड़ित अरुण यादव ने उसी दिन स्थानीय थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। पुलिस ने घटना की जांच कर आरोप पत्र अदालत में दायर किया, जिसके बाद यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में गया।
23 साल तक चला मुकदमा, सात गवाहों ने दिया बयान
मामले के विचारण के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से सात गवाहों को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया, जिन्होंने घटना की पुष्टि की। उनके बयानों को अदालत ने विश्वसनीय माना और उसी के आधार पर मुख्य आरोपी सिकंदर यादव को दोषी करार दिया गया। वहीं, अन्य सह-आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।
न्याय तो मिला, पर समय और संसाधनों की भारी कीमत
निर्णय के बाद पीड़ित पक्ष ने संतोष जताते हुए कहा कि “न्यायालय ने अंततः न्याय दिया, पर इसके लिए दो दशक से अधिक इंतजार और संघर्ष करना पड़ा। मुकदमे की लंबी अवधि में न केवल आर्थिक नुकसान हुआ, बल्कि मानसिक रूप से भी पूरे परिवार को परेशानियों का सामना करना पड़ा।”
सजा और दंड
अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं के तहत 7 वर्ष की सजा के साथ आर्थिक दंड भी लगाया है। निर्धारित समय पर जुर्माना नहीं देने की स्थिति में अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।
यह मामला बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति की एक मिसाल भी है, जहां दशकों तक पीड़ित पक्ष न्याय की आस में अदालतों के चक्कर काटता रहता है। हालांकि, फैसला पीड़ित के हक में आया है, लेकिन 23 साल की देरी कई सवाल भी छोड़ जाती है – क्या इतनी देर से मिला न्याय, सच में ‘न्याय’ कहलाएगा?