श्रम कानून हटने से मजदूरों की बढ़ी मुश्किलें

डेस्क : कहते हैं कि मई मजदूरों का महीना होता है। लेकिन लगता है इसी मई महीने में उनके हक पर खतरा मंडरा रहा है। करीब डेढ़ महीने से उद्दोग-धंधा पूरी तरह ठप है।बाजार में मांग कम होने से उत्पादन कम हो रहा है। फैक्टरियों से मजदूरों की या तो नौकरी जा रही है या फिर उनकी सैलरी में कटौती हो रही है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई राज्यों की सरकार ने श्रम कानून में कई अहम बदलाव कर दिए हैं। उद्दोग धंधे को इस मंदी से उबारने के लिए योगी सरकार ने अगले तीन सालों तक श्रम कानून निरस्त करने का फैसला किया है। बता दें कि इस फैसले का विरोध विपक्ष के साथ-साथ आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने भी किया है।

नए नियम के मुताबिक भवन निर्माण, अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, कर्मचारी मुआवजा अधिनियम बंधुआ मजदूरी , प्रणाली उन्मूलन अधिनियम को निरस्त कर दिया गया है। बता दें कि गुजरात, राजस्थान जैसे राज्यों ने बस काम के घंटों को बढ़ाने का निर्णय लिया है। लेकिन वहीं यूपी और एमपी की सरकार ने मजदूरों के हक के खिलाफ जाकर कई ऐसे कानून को निरस्त कर दिया है जो मजदूरों के हक के थे। मध्यप्रदेश में 100 कर्मचारियों से अधिक इस्टैबलिशमेंट्स अपनी जरूरत के हिसाब से कर्मचारियों को रख या हटा सकते हैं। साथ ही 50 मजदूरों वाले कॉन्ट्रैक्टरर्स को अब रजिस्ट्रेशन की जरूरत भी नहीं है।

मजदूरों के काम करने की अवधि भी 8 घंटे से बढ़ा कर 12 घंटे कर दी गई है। नए नियम के मुताबिक चार घंटे अतिरिक्त काम करने पर सरकार को कोई ओवरटाइम नहीं देना होगा। बल्कि काम के नियमित घंटो की दर के हिसाब से मेहनताना चुकाया जाएगा। नए नियम के मुताबिक 12 घंटे की शिफ्ट के दौरान 6 घंटे के बाद 30 मिनट का ब्रेक दिया जाएगा। साथ ही मजदूरों को 12 घंटे के हिसाब से 120 रूपये दिए जाएगें। इस नियम के आने के बाद देश के दस बड़े श्रमिक संगठन ने इसके खिलाफ राष्ट्रव्यापी मुहीम की तैयारी में है। इन संगठनों ने इंटरनेशनल लेबर ऑरगेनाइजेशन में भी जाने की चेतावनी भी दी है।