शहीद दिवस : भगत सिंह को पाकिस्तान में जिस जगह दी गई थी फांसी, वहां बन गई मस्जिद

नई दिल्ली : लाहौर की सेंट्रल जेल में जहां भगत सिंह को फांसी दी गई थी, उस जगह के सामने मस्जिद बना दी गई है. लाहौर से लौटने के बाद पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब में इसके बारे में लिखा.

लाहौर की सेंट्रल जेल में अंग्रेजी हुकूमत ने 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी पर लटका दिया था. अब इस जगह की हालत बहुत खराब है. इस जगह के सामने पाकिस्तान में एक मस्जिद बना दी गई है.


लेखक कुलदीप सिंह नैयर ने अपनी किताब में किया था. कुलदीप नैयर ने “शहीद भगत सिंह पर शहीद भगत सिंह, क्रांति के प्रयोग (The Martyr Bhagat Singh Experiments in revolution) नाम किताब लिखी है. इस किताब की भूमिका में ही उन्होंने यह साफ किया है कि जिस जगह पर भगत सिंह को फांसी हुई, उस जगह की स्थिति अब क्या है.


लेखक के अनुसार, “भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को जिस जगह पर फांसी दी गई थी, वह जगह अब ध्वस्त हो चुकी है. उनकी कोठरियों की दीवारें ध्वस्त होकर मैदान का रूप ले चुकी हैं. क्योंकि वहां की व्यवस्‍था नहीं चाहती कि भगत सिंह की कोई निशानी वहां ठीक स्थित में रहे.”कुलदीप नैयर की किताब के अनुसार अब पाकिस्तान में लहौर सेंट्रल जेल के उस स्‍थान पर अधिकारियों ने शादमा नाम की एक कॉलोनी बसाने की अनुमति दे दी थी. जबकि भगत सिंह व उनके दोस्तों को जिन कोठरियों में रखा गया था उसके सामने एक शानदार मस्जिद के गुंबद खड़े हैं.कुलदीप नैयर बताते हैं, “हम जब यहां पहुंचे तो इस जगह पर कुछ पुलिस हेडक्वॉर्ट्स बचे थे. लेकिन कॉलोनी के निर्माण के लिए जेल को गिराया जा रहा था. मैंने कुछ शादमा के बाशिंदों से पूछा, क्या वे भगत सिंह से वाक‌िफ हैं? तो ज्यादातर के पा अस्पष्ट जानकारी थी.”पत्रकार कुलदीप नैय्यर की वो किताब, जिसमें उन्होंने विस्तार से भगत सिंह की फांसी के बारे में लिखा और लाहौर की उस सेंट्रल जेल का भी विस्तार से वर्णन किया है, जहां क्रांतिकारी भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई थी.पाकिस्तानी हुकूमत शायद भगत सिंह की फांसी से संबंधित स्मरकों व निशानियों को मिटा देना चाहती है. किताब के अनुसार जिन जगहों पर भगत सिंह व उनके दोस्तों को फांसी देने संबंधित तख्ता था, वहां अब चौहारा बन गया है. वहां आती-गाड़ियों के धूल में तख्ता कब कहां खो गया किसी को नहीं पता.

आजादी के आंदोलन में बस एक पंजाबी मरा था!

पाकिस्तान में एक बेहद अजीब धारणा बना दी गई है. कुलदीप नैयर लिखते हैं कि अस्सी के दशक में लाहौर में एक विश्व पंजाबी सम्मेलन आयोजित किया गया है. जिस हॉल में यह आयोजित किया गया, उसमें बस एक तस्वीर भगत सिंह की लगाई गई थी. जबकि आजादी के आंदोलन में अगणित पंजाबियों ने महती भूमिका अदा की थी. लेखक के अनुसार जब उन्होंने वहां बस एक तस्‍वीर लगने का कारण जानना चाहा तो बताया गया कि आजादी के आंदोलन में बस एक ही पंजाबी की जान गई.