अगर मनुष्य चाहे तो अपने कर्मों के बल पर भगवान भी बन सकता : असंग महाराज

एसकमाल, बेगूसराय : बेगूसराय जिले के साहेबपुर कमाल प्रखंड क्षेत्र के सनहा पूर्व पंचायत के परोरा गांव में पिछले 2 दिनों से आयोजित सत्संग में अमृत वाणी से लोग सत्संग के संगम में सराबोर हो रहे है। कथा के आयोजक सिटी फैशन के प्रोपराइटर सियाराम साहू के नेतृत्व में किया जा रहा हैैै। इसी कड़ी में शुक्रवार को कथा के अंतिम दिन असंग महाराज ने अपने मधुर वाणी से श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए बताया की अगर मनुष्य चाहे तो अपने कर्मों के बल पर भगवान भी बन सकता हैं।

आगे कथा का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि एक शिष्य अपने गुरु जी के साथ खेतों के मेढ़ से होकर कहीं जा रहे थे। इसी दौरान उन्होंने देखा कि कुछ मजदूर खेतों में काम कर रहे हैं, खेतों में काम कर रहे मजदूरों का खाना खेतों में रखा हुआ था। खाना रखा हुआ देख शिष्य के मन में एक‌ बात आया कि इस खाना को चुरा लिया जाए। जिसके बाद उसके मन की बातों को समझ कर गुरुदेव ने कहा की इस खाना को चुराने से पहले तुम इससे खाने की पोटली में सौ-सौ के नोट डाल दो। और फिर झारी के पीछे जाकर देखो कि क्या होता है, इसके बाद संत और उसके शिष्य धारी के पीछे जाकर छुप गए, काम कर वापस आए तो मजदूरो ने देखा कि उनके खाने की सभी पोटली में सोै-सौ के नोट परे हुए हैं।

तो वह कहने लगे कि आज हमें मालिक ने एक भी रुपया नहीं दिया था। आज मेरा घर का खाना कैसे बनता, जरूर भगवान ने मेरी सुन ली। इस कथा को आगे कहते हुए उन्होंने बताया कि अगर वह शिष्य खाना को चुरा लिया होता तो कहता चोर ले भागा, लेकिन उन्होंने सौ-सौ के नोट डालकर अपने कर्म से भगवान हो गए, इसलिए मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्म करना चाहिए, हमेशा कुछ न कुछ नया सीखना चाहिए। हमेशा अच्छे लोगों की संगत में रहना चाहिए। लोगो को हमेशा भजन सत्संग सुनना चाहिए। हर आदमी कोगीता ,महाभारत ,रामायण ,वेद इत्यादि। का थोड़ा सा भी जान जरूर होना चाहिए। क्योंकि इस संसार में हमलोग हमेशा के लिए जीने नहीं आये। हर मनुष्य का मृत्यु तय है।

अगर आपको जिंदगी मिली है। तो इस दुख भरी संसार में इतिहास बना कर जाइए भजन सत्संग सुनने से मनुष्य का आचार विचारों में बदलाव अवश्य होता है। आगे उन्होंने स्वामी विवेकानंद के विचारधारा प्रकट करते हुए बताया जब विवेकानंद जी ने अमेरिका एक सम्मेलन में शून्य शब्द पर इतना भाषण दिया कि लोग सहमे की ‌सहमे रह गये। विवेकानंद जी ने बताया अगर शुन्य नहीं होता तो इस दुनिया का विस्तार नहीं होता। क्योंकि शुन्य ही इस दुनिया का विस्तार रूप है। कथा सुनने के लिए कड़ी धूप में भी कई श्रद्धालु दूर-दूर से आए थे। कथा इतना आनंद था कि लोग एक दूसरे के आस्था में झूम उठे।