स्त्रियों के सौभाग्य का प्रतीक हरितालिका तीज व्रत 30 अगस्त 2022 मंगलवार को होगा

बेगूसराय भारतीय सभ्यता संस्कृति में विवाह सबसे उत्तम एवं पवित्र संस्कार माना गया है। स्त्रियों के लिए सौभाग्यवती होना पूर्व जन्म के अर्जित पुण्य का प्रभाव माना जाता है इसलिए स्त्रियां अपने अखंड सौभाग्य की रक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के व्रतों को करती हैं। अखंड सौभाग्य की कामना के लिए हरितालिका तीज व्रत सौभाग्य का प्रतीक माना गया है।

संयोगवश इस वर्ष हरितालिका तीज व्रत एवं चतुर्थी चंद्र पूजन एक ही दिन 30 अगस्त मंगलवार को मनाया जाएगा। इस संदर्भ में ज्योतिष आचार्य अविनाश शास्त्री ने बताया कि 30 अगस्त मंगलवार को तृतीय प्रातः सूर्योदय के पश्चात दिन के 2:40 तक रहेगा उसके बाद चतुर्थी तिथि का प्रवेश होगा इसलिए तीज एवं चतुर्थी चंद्र पूजन दोनों एक ही दिन 30 अगस्त को ही मनाया जाएगा।

उन्होंने बताया कि हरितालिका तीज व्रत उदय कालिक बतृतीया तिथि में किया जाता है एवं चतुर्थी चंद्र पूजन जिसे मिथिला के क्षेत्र में चरचंदा भी कहते है। वह चतुर्थी तिथि में जब चंद्रमा का उदय उस समय चंद्रमा का पूजन किया जाता है। इस वर्ष 30 अगस्त को दिन के 2:40 के बाद चतुर्थी तिथि का प्रवेश हो जाएगा यानी सायं 6:20 सूर्यास्त के बाद जब चंद्रमा का उदय होगा उस समय चतुर्थी तिथि बीतेगी और शास्त्र में चतुर्थी तिथि ने जब चंद्रमा का उदय हो तो उस समय चंद्र पूजन का विधान कहा गया है इसलिए 30 अगस्त मंगलवार को होगी हरितालिका तीज एवं चतुर्थी चंद्र पूजन शास्त्र सम्मत माना गया है।

31 अगस्त को प्रातः सूर्योदय चतुर्थी तिथि में हुआ है लेकिन दिन के 2:04 में ही चतुर्थी तिथि समाप्त हो गई है एवं सूर्यास्त काल में चंद्रमा के उदय होने के समय पंचमी तिथि का प्रवेश हो गया है इसलिए तीज एवं चरचंदा 30 अगस्त को ही मनाना शास्त्र सम्मत उचित होगा।

क्या है तीज व्रत का महत्व एवं क्या है शास्त्रीय कथा तीज व्रत के संदर्भ में ऐसी कथा प्राप्त हुई है कि इसका प्रारंभ पर्वतराज हिमालय की पुत्री गिरिजा अर्थात पार्वती से गिरा हुआ है पर्वतराज हिमालय की पुत्री जब विवाह के योग्य हुई तब पर्वतराज बहुत ही चिंतित हुए ऐसे में एक समय नारद ऋषि भगवान विष्णु का विवाह प्रस्ताव लेकर पर्वतराज हिमालय को दिया जिस पर हिमालय तुरंत तैयार हो गए परंतु इससे विपरीत पार्वती जी फिर से विवाह करना चाहते थे और अपने इच्छा के विपरीत अपने विवाह के संदर्भ में जानकर बन में चली गई और अपने आत्मीय बर शिव की बालू मिट्टी की बनी प्रतिमा का पूजन करते हुए बिना कुछ खाए पिए नदी तट पर पूरी रात जगी रहे और ऐसे में शिव का आसन डोला और पार्वती से आकर पूछा देवी तुम क्या चाहती हो ऐसे में पार्वती ने कहा कि हे शिव अगर आप मुझ पर प्रसन्न हो तो आप हमारे स्वामी अर्थात पति हो और मैं आपकी पत्नी हो ऐसा वरदान चाहती हूं और ऐसा कहने पर शिव तथास्तु का कर अंतर्ध्यान हो गए।

उधर पर्वतराज हिमालय इधर उधर अपनी पुत्री को खोजते हुए उसी स्थान पर पहुंचे जहां उनकी पुत्री बिना कुछ खाए पिए पूरे दिन शिव की उपासना करते हुए पूरी रात जागरण करते हुए सो रही थी तब पर्वतराज ने अपनी पुत्री को उठाया और महल छोड़ने का कारण पूछा तब पार्वती ने कहा कि मैं मन ही मन शिव को अपना पति मान चुकी थी लेकिन आप इसके विपरीत मेरा विवाह विष्णु के साथ करना चाहते थे इसलिए मैंने घर छोड़ दिया और यह सुन पर्वतराज ने अपनी पुत्री को उठाया और कहा कि है पुत्री जैसी तुम्हारी इच्छा है वैसा ही होगा और इस प्रकार शिव का विवाह पार्वती से हुआ।

शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि जिस दिन पार्वती ने घर छोड़कर नदी के किनारे वालू एवं मिट्टी की शिव प्रतिमा बनाकर पूजन किया और निराहार रहे वह भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि और हस्त नक्षत्र था यह अखंड सौभाग्य को देने वाला योग है इस स्थिति में जो सौभाग्यवती स्त्री व्रत करती है वह आजीवन अखंड सौभाग्यवती रहती है धन धन सुख समृद्धि और चिरंजीवी पति एवं पुत्र मिलते हें परंतु जो प्रमाद लोभ में आकर भोजन करते हें वह सात जन्मों तक उन पर ईश्वर की कृपा से वंचित रहते हें।

केसे करें व्रत व्रत से 1 दिन पूर्व शुद्ध सात्विक आहार विहार करते हुए व्रत के योग्य अपने आप को तैयार करें एवं तीज व्रत के दिन प्रातः नदी तालाब अथवा घर में स्नान कर स्थान की मिट्टी से शिव की प्रतिमा निर्मित करें गंगा जल दूध दही आधी पंचामृत से शिव का अभिषेक करें पार्वती जी का पूजन करते हुए वस्त्र सिंगार की वस्तु आदि अर्पित करें धूप दीप नैवेद्य आदि से शिव एवं पार्वती को संतुष्ट करते हुए बांस के पात्र में देशकाल उत्पन्न फल नींबू पकवान आदि अर्पित करते हुए ब्राह्मण को दान करें।