सिमरिया से दिनकर जयंती विशेष : उम्मीद की देहरी पर दम तोड़ रहीं राष्ट्रकवि की स्मृतियां, संरक्षण की दरकार

न्यूज डेस्क : दिनकर जी हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय और पढ़े जाने वाले कवि है। आज उनकी 117 वी जन्म दिवस पूरे देश में मनाई जा रही है। गंभीर विषय, अच्छी कविताएं और लोकप्रियता तीनों क्षेत्रों को संभालना उनकी महानता रही। पर जितनी पहचान और मान सम्मान दिनकर जी की रचनाओ को मिलता है उतना ही उस जगह को मिलता है जहाँ पर ये रचनायें रचित की गई। दिनकर जी का घर ग्राम सिमरिया आज भी उम्मीद की राह देख रहा है कि कब उसका सर्वागीण विकास हो यो यहाँ की आने वाली पीढ़ी जिसके दिल व जुबां पर दिनकर जी रचित कविताएं बसी है वो भी अपनी प्रतिभा दिखा पाएं।

वर्ष 1983 में पूर्व मुख्यमंत्री विन्देश्वरी दूबे ने इस गांव को आदर्श गांव बनाने की घोषणा की उसके बाद 2014 में तत्कालीन सांसद भोला सिंह ने सिमरिया को आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत गोद लिया। ग्रामवासियों को लगा कि अब तो उनके दिन बहुरेंगे पर इसका भी कुछ खास फायदा न हुआ। यहाँ तक कि जिस दालान पर बैठकर दिनकर जी ने रश्मिरथी, कुरुक्षेत्र, परशुराम की प्रतीक्षा, उर्बशी जैसे रचनायें लिखी वो आज खंडहर बन चुका है। किसी की नज़र इस ओर नही की उनकी धरोहर को आने वाली पीढ़ियों के लिए सहेज सके। राष्ट्रकवि की उपाधि तो दिनकर जी को दे दी गई पर उनके गांव,घर, दालान की सुध किसी ने न ली। इनकी स्मृतियों का धरोहर जीर्ण शीर्ण होता जा रहा है। हज़ारो बार घोषणाओं के बाद भी दिनकर जी का पैतृक गांव सिमरिया आज तक साहित्यिक तीर्थ स्थल नहीं बन पाया है न ही दिनकर विश्विद्यालय जिसके लिए कितने छात्र आंदोलन अब तक हो चुके है वो ही सम्भव हो पाया। ये सब सिर्फ लुभावने प्रलोभन ही बन कर रह गए हैं। हालांकि कुछ वक्त पहले शिक्षा विभाग की तंद्रा टूटी तो उसने दिनकर जी के प्रारंभिक बारो स्कूल को धरोहर के रूप में विकसित करने के प्रयास में है।

साथ ही इनके गांव का नाम अब इन्हीं के नाम पर दिनकर ग्राम सिमरिया कर दिया गया है और एक इंजीनियरिंग कॉलेज भी खोल दिया गया है। पर क्या इतना किसी राष्ट्रकवि के लिए काफी है? एक तरफ दिनकर जी के लिए ‘भारत रत्न’ की मांग करना उनके यश को बढ़ाता है वहीं दूसरी तरफ उनसे जुड़ी स्मृतियों की अवहेलना करने कहाँ तक उचित है? दिनकर जी के नाम को राजनीति के दल दल में खीचना कहाँ तक उचित है? चुनावी राजनीति में दिनकर जी को सिर्फ़ बिरादरी के तौर पर उपयोग करना कहा तक उचित है? सब अनुचित है। उचित है तो सिर्फ दिनकर जी की रचनाओं को सहेज कर जो सम्मान व पहचान उन्हें दी जाती है। वही पहचान उनसे जुड़ी हर चीज को दी जाए। तभी राष्ट्रकवि का सम्मान उचित तरीक़े से होगा