बेगुसराय में मुर्तिकारों पर पड़ा कोरोना का कहर, मूर्तिकार ने कहा मदद कीजिये सरकार नहीं तो छोड़ना पड़ेगा मूर्तिकारी

वीरपुर, बेगुसराय : कोरोना जैसे वैश्विक महामारी से उत्पन्न आर्थिक संकट ने लोगों के सामने जीने के लिए बहुत बड़ी समस्याएँ खड़ी कर दी है। बेगूसराय जिले के वीरपुर प्रखंड के मूर्तिकार की जो इन बातों से बेखबर होकर अपने जीवन को पटरी पर लौटने कि उम्मीद में आश लगाए बैठे हैं। इन मूर्तिकारों को क्या पता था कि उनका व्यापार पर भी कोरोना का असर बुरी तरह से प्रभावित करने वाला है।

बेगुसराय जिले के प्रसिद्ध मूर्तिकार लक्ष्मण पंडित ने अपने आप बीती सुनाते हुए कहा हैं, कि पिछले 40 वर्षों से मैं परिवार के सभी सदस्यों के सहयोग से लगातार मूर्ति बनाने का काम करता आ रहा हूँ ।इन चालीस वर्षों में कभी भी इस तरह की आर्थिक संकट का सामना मुझे नहीं करना पड़ा था। कर्जदारों से ब्याज पर पैसा लेकर मूर्ति बनाने की सारी व्यवस्था का इंतजाम किए हैं, लेकिन मूर्ति के खरीददार बहुत कम आ रहे हैं। मुझे इस बात कि चिंता हो रही कि सालों भर परिवार का गुजारा कैसे होगा। सरकार भी कभी हमलोगों के बारे में कुछ नहीं सोचती है।वहीं मूर्तिकार रंजीत साह विगत 20 वर्षों से इस पेशा से जुड़ें हैं। उनका 10 सदस्यों का सयुक्त परिवार है,बच्चों की पढाई लिखाई के साथ ही साथ पूरे परिवार के भरण पोषण की सारी जिम्मेवारी इन्हीं के कंधों पर है।इतनी बड़ी जिम्मेदारी के साथ ही अपने व्यापार को लेकर इनदिनों वे बहुत चिंतित व दुःखी रहते हैं।

सरकार हमलोगों पर कुछ विचार करे अपनी आपबीती सुनाते हुए वे कहते हैं, हर साल दिन रात की परवाह किये बिना करीब तीन महीना पूरे परिवार की मदद से मूर्ति का निर्माण करते हैं लेकिन इस बार मूर्ति का न तो उचित दाम मिल रहा है और न ही खरीदार भी पिछले और साल की तरह आ रहें हैं।हमारे परिवार की दिनचर्या पुरी तरह से प्रभावित हो गया है। सरकार हमलोगों के बारे में भी कुछ विचार करे।

पुश्तैनी कला को छोड़कर जीवनयापन के लिये करना होगा काम : मूर्तिकार मनोज पंडित की पत्नी जो मूर्ति बनाने में पति की मदद करती है, व्यथित मन से बताती हैं कि इस व्यापार से घर परिवार का चलना अब मुश्किल है, ससुर नरसिंह पंडित से परिवार को यह कला प्राप्त हुआ था अब लगता है जीवन गुजारने के लिए इस पुश्तैनी कला को छोड़कर कोई और काम को ढूढ़ना होगा। वहीं एक और कलाकार रामसेवक पंडित अपने तीन बेटियों एवं दो बेटों के भविष्य को लेकर काफी चिंतित हैं।

उनकी बड़ी लड़की पीजी, एक स्नातक तथा छोटी लड़की इंटरमीडिएट में पढाई करते हुए पिता के इस काम में सहायता करती है। उनकी बिटिया बताती है पिता दादा जी से इस हुनर को सीखकर किसी तरह परिवार का भरण पोषण करते हैं। परिवार पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता चला जा रहा है। इस कोरोना ने तो हमलोगों के परिवार की कमर ही तोड़ दी है।मूर्तिकार प्रेमचंद पंडित, दिलीप पंडित व विक्रम कुमार तांती आदि की आपबीती भी इन्हीं सब समस्याओं के इर्द गिर्द घूमती नजर आ रही है।

यह युवा मूर्तिकार पढाई के साथ साथ बनाते हैं मूर्ति, कहा इस काम को छोड़ना पड़ेगा 22 वर्षीय कलाकार विक्रम कुमार तांती बीए पार्ट वन में पढाई करते हैं, परिवार के आवास के लिए बस थोड़ा जमीन हैं, जिसपर खपरा एवं एस्वेस्टस का घर बना हुआ है।इनपर खुद की पढ़ाई के साथ ही परिवार को चलाने की दोहरी जिम्मेवारी है। उन्हें लगता था कि इस कला को सीखकर वे अपने परिवार के लोगों के साथ ही अपनी जीवन में खुशियां ला सकते थे। वे दुःखी मन से बताते हैं इस काम को अब छोड़ना पड़ेगा। इस हुनर से परिवार का जीवन यापन संभव नहीं है।

भाड़े पर जमीन लेकर व्यापार शुरू किये थे, परिवार पर कर्ज है। इन मूर्तिकारों के जीवन में खुशियां कब लौटेगी, आखिर कब महाजनों के चंगुल से ये मुक्ति पाएँगे, सरकार की नजर इन सबों पर कब पड़ेगी। इनके कला को संरक्षित एवं परिमार्जित कर सरकार कब इनका सम्मान करेगी। इन कलाकारों के ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिसका समाधान कर सरकार इन कलाकारों के चेहरों पर मुस्कान लाकर इन परिवारों में खुशियाँ बिखेर सकती है। इन मूर्तिकारों ने अपनी मदद के लिए सरकार से मांग की है।