Begusarai News : बेगूसराय के बलिया थाना क्षेत्र अंतर्गत NH-31 के बगल में स्थित बलिया इमरजेंसी हॉस्पिटल में इलाज के दौरान एक 40 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई। मृतक की पहचान साहेबपुरकमाल थाना क्षेत्र के मोहनपुर गांव निवासी जितेन्द्र साह के रूप में हुई है। परिजनों ने अस्पताल पर गंभीर लापरवाही और मौत की जानकारी छुपाने का आरोप लगाया है।
घटना बुधवार की रात की है जब जितेन्द्र साह को अचानक दस्त की शिकायत के बाद परिजन आनन-फानन में बलिया इमरजेंसी हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। अस्पताल में उन्हें भर्ती किया गया और इलाज के नाम पर गुरुवार की सुबह तक करीब 40 हजार रुपये भी वसूल लिए गए।
मृतक की पत्नी किरण देवी ने बताया कि- रात भर इलाज चलता रहा, लेकिन तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ। हमलोग लगातार कह रहे थे कि मरीज को बेगूसराय के बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया जाए, लेकिन डॉक्टर और स्टाफ लगातार ‘अभी ठीक हो जाएगा’ कहकर रोकते रहे। गुरुवार की दोपहर तक जब पति की हालत बिगड़ती चली गई और अचानक हमें बताया गया कि उन्हें बेगूसराय भेजा जा रहा है, तब जाकर संदेह हुआ।”
किरण देवी का दावा है कि अस्पताल वालों ने पति की मौत की सूचना तक नहीं दी। शव को एम्बुलेंस में लादकर चुपचाप बेगूसराय भेजने की तैयारी की जा रही थी। जब उन्होंने जोर देकर पूछा तब जाकर सच्चाई सामने आई। पत्नी किरण देवी बेसुध होकर रो पड़ीं-“अगर समय रहते इलाज सही होता या बेगूसराय रेफर कर दिया जाता, तो शायद मेरे पति की जान बच जाती।” मृतक जितेन्द्र साह कुरहा बाजार में मोबाइल की दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। उनके दो बच्चे हैं बेटी कंचन कुमारी (18 वर्ष) और बेटा आनंद कुमार (14 वर्ष) का है।
पहले भी जांच में पकड़ा गया था यह अस्पताल
यह पहला मामला नहीं है जब बलिया इमरजेंसी हॉस्पिटल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हुए हों। कुछ सप्ताह पहले ही डीएम के निर्देश पर गठित विशेष टीम ने बलिया स्थित कई क्लीनिकों की जांच की थी। उस जांच में यह सामने आया था कि बलिया इमरजेंसी हॉस्पिटल समेत कुल 12 क्लीनिक बिना पंजीकरण के संचालित हो रहे हैं। टीम ने अस्पताल को सील करने की अनुशंसा भी की थी, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रशासनिक अनदेखी और मिलीभगत के कारण ये फर्जी अस्पताल चल रहे हैं।
प्रशासनिक कार्रवाई पर उठे सवाल
अब जब एक व्यक्ति की जान इलाज में लापरवाही के चलते चली गई, तो प्रशासन की निष्क्रियता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। यदि समय रहते कार्रवाई होती और बिना पंजीकरण चल रहे अस्पतालों को सील किया गया होता, तो शायद यह मौत टाली जा सकती थी। पीड़ित परिवार ने जिला प्रशासन से न्याय और संबंधित डॉक्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।