सरकार की उदासीनता से दम तोड़ रहा द्वितीय राजभाषा वाणी विलास संस्कृत उच्च विद्यालय तेघरा

तेघरा (बेगूसराय) गुप्त काल तक व्यक्तियों की बोलचाल की भाषा वेद पुराणों उपनिषदों में जन-जन की भाषा रही देव भाषा संस्कृत आज विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है।संस्कृत के प्रति सरकारों की उपेक्षा पूर्ण नीति के कारण धीरे-धीरे इसके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हें। देव भाषा मानी जाने वाली संस्कृत भाषा का उपयोग केवल पूजा – पाठ शादी – श्राद्ध आदि कार्यो तक ही सिमट कर रह गया है।

जबकि संस्कृत भाषा को हिंदी भाषा की जननी माना गया है। पठन-पाठन के घटते संसाधन व सरकारी इच्छाशक्ति के अभाव में वाणी विलास संस्कृत उच्च विद्यालय तेघड़ा का छत विहिन लावारिस भवन दिन प्रतिदिन अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। भारतीय संस्कृति के संरक्षणार्थ व जन-जन की भाषा संस्कृत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से तेघरा बरौनी के मुख्य मार्ग अनुमंडल पदाधिकारी आवास व तेघरा की ऐतिहासिक गौशाला के निकट स्थानीय बाजार की व्यवसायी व बरौनी के भूमि दाताओं ने आजादी के पूर्व इस विद्यालय की स्थापना किया था।

इस विद्यालय में दसवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। जर्जर भवन में ही आशंकाओं के बीच बच्चों की पढ़ाई हो रही है।इस विद्यालय के छात्रों को किसी भी प्रकार की सरकारी सुविधा उपलब्ध नहीं है। शिक्षकों को नियमित वेतन भुगतान हो रहा है। 7 शिक्षकों के स्वीकृत पदों में 2 रिक्त है। आदेशपाल का पद रिक्त। पुरानी खपरैल भवन जर्जर। एमडीएम, साईकिल, पोशाक, पुस्तक एवं छात्रवृत्ति के लाभ से वंचित हें छात्र।

भवन निर्माण आवश्यक है। कुल मिलाकर संस्कृत की दुर्दशा सियासत के कारण हुई है। यह संस्कृत विद्यालय की दुर्दशा गलत शिक्षा नीति की पोल खोल रहा है। सियासत को चाहिए धर्म और जाति के नाम पर राजनीति के बदले अपने सांस्कृतिक धरोहर संस्कृत जैसे देव भाषा को बचाने की मुहिम में शामिल होने की।