बेगूसराय के बछवाड़ा सीट पर होगा सबसे बड़ा घमासान, एनडीए और महागठबंधन दोनों में टिकट को लेकर फंसा पेंच

बछवाड़ा / पोलिटिकल डेस्क : समस्याओं के बीच सूरमाओं की तैयारी विधानसभा चुनाव की आहट शुरू है। टिकट के लिए भागदौड़ प्रारंभ है। सीटों के गठबंधन की तस्वीर साफ नहीं हुई है। गठबंधन के दलों की सीट को अपने पाले में करने की होड़ जारी है। गठबंधन के तहत जिस भी दल के हिस्से सीट आवे उम्मीदवारों की संख्या देखते हुए दलीय नेताओं को टिकट देने में पसीने छूट जाएंगे।

हर दल के नेता यहां से जमीन तलाशने में लगे हैं। चुनावी परिदृश्य पर नजर डालें तो यह क्षेत्र आजादी के बाद से ही अपनी अलग पहचान बनाए हैं। 1952 के विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के मिटठन चौधरी जीते थे। लेकिन,1957 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के रामबहादुर शर्मा ने जीत हासिल कर ली। उसके बाद 1962 के चुनाव में यहां से कांग्रेस पार्टी की गिरीश कुमारी ने उन्हें पराजित कर फिर से कांग्रेस का झंडा गाड़ दिया। 1967 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के रामबहादुर शर्मा ने इस सीट पर फिर जीत हासिल कर ली। लेकिन,1969 के विधानसभा चुनाव में वे भुवनेश्वर राय से पराजित हो गए।

1972 में अभी के सिटिंग विधायक स्व रामदेव राय जीते थे इस सीट से पहली बार चुनाव 1972 में कांग्रेस पार्टी ने यहां से युवा रामदेव राय को उतारा और वे जीत गए। तब से लगातार 1977,1980 में भी वे जीते। 1985 में रामदेव राय को कांग्रेस पार्टी ने समस्तीपुर लोकसभा से एमपी का टिकट दिया और वे जीत गए। उसी वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में बछवाड़ा से सीपीआई के अयोध्या प्रसाद महतो ने चुनाव जीतकर यहां से सीपीआई की नई पारी की शुरुआत की। तबसे रामदेव राय पराजित होते रहे और सीपीआई जीतती रही। वर्ष 1990,1995 में सीपीआई के अवधेश राय ने यहां से परचम लहराया। लेकिन,वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद की पार्टी राजद के उत्तम यादव ने यहां से जीत हासिल की। वर्ष 2005 में फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में रामदेव राय ने बतौर निर्दलीय भाजपा की मदद से जीत हासिल कर ली। लेकिन, सरकार नहीं बन पाने और नवंबर में दुबारा चुनाव होने पर वे फिर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने में सफल रहे। उनकी चुनौती को स्वीकार करते हुए सीपीआई के अवधेश राय ने उन्हें 2010 के चुनाव में पराजित कर सीपीआई की खोयी जमीन वापस कर ली । वर्ष 2015 के चुनाव में कांग्रेस टिकट पर रामदेव राय फिर चुनाव जीत गए। एम एल ए रहते ही पिछले महीने उनका देहांत हो गया।

एनडीए में लोजपा की दावेदारी है मजबूत इस वर्ष बछवाड़ा का परिदृश्य बदला बदला है। लगभग 50 बरस से बछवाड़ा की राजनीति को प्रभावित करने वाले और एक ध्रुव रहे रामदेव राय इसबार नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी से उनके पुत्र को टिकट देने की चर्चा है। कांग्रेस के कई पुराने नेता भी टिकट की लाइन में हैं। कांग्रेस की सीटिंग सीट होने की वजह से महागठबंधन में इस सीट का कांग्रेस कोटे में जाना तय माना जा रहा है। यूं राजद यह सीट कांग्रेस से ले भी सकती है। उसके भी कई नेताओं की नजर इसपर है। इधर पिछले दो चुनावों से यहां से लोजपा से अरविंद सिंह चुनाव लड रहे थे। इस बार वे जेल में हैं। लोजपा से उनकी भावज और बेगूसराय जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष इंदिरा देवी और दूसरे में विनय सिंह के नाम की चर्चा है।

महागठबंधन में सीपीआई की दावेदारी दिख रही प्रबल सबसे अजीबोगरीब स्थिति महागठबंधन को लेकर सीपीआई की है। पिछले 35 बरसों में सीपीआई का इस क्षेत्र पर 20 बरस तक कब्जा रहा है। कांग्रेस राजद के महागठबंधन में उसके जाने का अर्थ सीटिंग सीट के आधार पर कांग्रेस को यह सीट छोड़ना होगा। सीपीआई इसके लिए शायद ही तैयार हो। बछवाड़ा उसके जनाधार का क्षेत्र है‌ और वह इसे गंवाना नहीं चाहेगी। क्षेत्र में गंगा कटाव,सडक, आदि की समस्या है। विकास के मुद्दे से अलग पार्टी गत मतदाताओं को लेकर यह क्षेत्र चर्चित रहा है।