न्यूज डेस्क : रुकावटें आती हैं सफ़लता की राहों में ये सभी मानते हैं , पर जो इसको समझ और जान पाते हैं वो ही मंजिल तक पहुँच पाते हैं। बचपन के खेल की वज़ह से ऐसा मुक़ाम पाना जो न सिर्फ देश बल्कि विदेश में भी एक पहचान बना दे। ऐसा सोच पाना एक सपना सा भले लगता हो पर आज मीरा बाई चानू ने यह मुकाम हासिल किया है। ईसकी शुरुआत मीराबाई के बचपन में भाई बहनों के साथ खेलते ही हो गई थी। घरेलू काम मे हाथ बटाते ही शायद आज का भविष्य लिखा जा रहा था। रियो की असफलता, एक गलती की वजह से पदक से दूर नाकामयाबी का दौर झेलना और देश में तानों का दंश झेलते हुए इन झंझावतों से निकल कर मीरा बाई न सफलता की एक नई मिशाल पेश की है।
मीराबाई चानू ने 20 वर्षों बाद वेटलिफ्टिंग में बदल दिया पदक का रंग : टोक्यो ओलंपिक के पहले ही दिन मीरा बाई चानू ने इतिहास दोहरा कर पदक का रंग बदल डाला। सिडनी ओलंपिक 2000 में कर्णम मलेश्वरी ने 69 किलो कैटेगरी में कांस्य पदक जीता था। वहीं 21 वर्षो बाद साई खोम मीरा बाई चानू ने 49 किलो कैटेगरी में सिल्वर पदक जीत कर देश का ध्वज सबसे ऊंचा कर गौरवान्वित किया।
छोटी उम्र के शौक ने बुलंदी के मुकाम पर पहुँचाया : 26 वर्ष की मीराबाई जो अब किसी पहचान की मोहताज नहीं का जन्म 8 अगस्त 1994 को मणिपुर के इम्फाल पूर्व के नोंगपोक काकचिंग में एक हिन्दू परिवार में हुआ। कम उम्र से ही पूत के पांव पालने में दिखने लगे थे। मीरा अपने भाई बहनों सब मे काफी ज्यादा काम काज करती। जो वजनी समान भाई से न उठाएं जाते मीरा वो खेल खेल में उठा लेती थी। हालांकि मीरा को बचपन मे तीरंदाजी का शौक था पर 10 वर्ष की होते होते इनकी दिलचस्पी वेटलिफ्टिंग में हो गयी। इम्फाल की कुंजरानी को अपना आदर्श मानकर मीरा ने अपने जीवन का लक्ष्य साध लिया।
हर कदम पर मिला परिवार का सहयोग इनके पिता साई खोम कृति और माता अगोबि तोम्बी लीमा है। चानू के परिवार में कुल छह भाई बहन हैं। एक माध्यम वर्गीय परिवार जिसकी आर्थिक हालात भी ठीक नहीं रहते तब भी चानू के पूरे परिवार ने हर कठिनाई का सामना करते हुए चीनू का हौसला बुलंद रखा। मानसिक स्तर पर सहयोग दिया तभी चीनू ने न सिर्फ परिवार बल्कि पूरे देश को भी गौरवान्वित किया।
कड़ी मेहनत से हासिल की उपलब्धि इस गौरव के पल को हासिल करने के लिए मीराबाई ने न सिर्फ मानसिक बल्कि शारीरिक रूप से भी कड़ी मेहनत की है। हर रोज 80 किलोमीटर साईकल चलना तो अपने वजन से चार गुना ज्यादा वजन उठाने जैसे काम किये। इसके अलावे घंटो प्रैक्टिस करना रेलवे की नौकरी करते हुए आसान नहीं। तब भी मीरा ने अपना फोकस कभी नहीं खोया और सफलता हासिल की।
पद्म श्री से हो चुकी हैं सम्मानित इस जीत के पहले भी 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर और 2017 के वर्ल्ड वेइलिफ्टिंग ने गोल्ड मेडल हीट था। इन्ही उपलब्धियों के वजह से 2018 में भारत का सर्वोच्च नागरिक खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न से तथा भारत सरकार ने पद्म श्री से सम्मानित किया था। देश की बेटी मीराबाई चानू आज सफलता के शिखर पर हैं। जो न सिर्फ उनके परिवार बल्कि देश के लिए भी गर्व की बात है ओलिंपिक में भारत का खाता पहले दिन खोल कर मीराबाई चानू ने सोहन लाल द्विवेदी जी की पंक्तियों को चरितार्थ कर दिया कि ” किए कुछ बिना जय जय कार नहीं होती ,कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती”।