डेस्क : जिस तरह धरती का वायुमंडल होता है, उसी प्रकार सूरज का सौर्य मंडल होता है। सूरज पर अनेकों प्रकार की गैस बनती हैं और खत्म होती हैं। सूरज की सतह पर न्यूक्लियर धमाकों से भी 10 गुना तेज धमाके हर घंटे होते हैं, बता दें की कुछ इसी प्रकार का धमाका इस बार होने जा रहा है, जिसका सीधा असर धरती के चुंबकीय क्षेत्र पर पड़ेगा। वर्ष 1989 में कुछ इसी प्रकार की घटना हुई थी, तब कैनेडा की बिजली 12 घंटे के लिए चली गई थी। वैज्ञानिकों का मानना है , की आने वाले 24 घंटे में सौर तूफ़ान धरती को प्रभावित करेगा।
यह सौर तूफ़ान धरती पर मौजूदा चुंबकीय क्षेत्र तरंगों को प्रभावित करेगा जिसके चलते सिग्नल जाम हो सकते हैं और नेटवर्क कनेक्शन में प्रॉब्लम आ सकती है। बता दें कि जब सूरज की तरफ से यह धमाका होता है तो अनेकों प्रकार की रोशनी धरती के वायुमंडल में आती है और अलग-अलग रंग दिखाती हैं, जिसको अरोरा कहा जाता है। यह अरोरा नाम की रौशनी देखने में बहुत अच्छी लगती है लेकिन यह खूबसूरती आम जनमानस के लिए मुसीबत लेकर आती है। नासा जो कि अमेरिका की स्पेस एजेंसी है उसका कहना है कि यह तूफान 16 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से धरती की ओर बढ़ रहा है।
जैसे ही यह धरती के करीब आएगा तो सारी सेटेलाइट के सिग्नल प्रभावित हो जाएंगे, जिसकी वजह से टीवी, मोबाइल नेटवर्क और जीपीएस में दिक्कत आ सकती हैं। ऐसे में जिस भी टेक्नोलॉजी में जीपीएस का उपयोग होता है चाहे वह सेटेलाइट, मोबाइल, जहाज, विमान या अन्य उपकरण हो वह सबसे पहले प्रभावित होंगे। इससे कई देशों की बिजली भी जा सकती है बता दें कि इस घटना से उन देशों को ज्यादा खतरा है जो उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के करीब रहते हैं। जब सूरज में मौजूद चार्ज पार्टिकल धरती की तरफ आते हैं तो वह धरती के चुंबकीय क्षेत्र और गुरुत्वाकर्षण को प्रभावित करते हैं ऐसे में धरती का लाटीट्यूड और लोंगिट्यूड जानने में सेटेलाइट को परेशानी आती है और कुछ देर के लिए वह काम नहीं करते।
बता दें कि जो सौर तूफान कनाडा को प्रभावित करके गया था वह इतना प्रभावित नहीं था जितना 1 सितंबर 1849 तूफान आया था। लेकिन 18 सो 59 में इतनी सैटेलाइट और जीपीएस तकनीक नहीं थी इसलिए भारी तबाही नहीं मुझे बता दें कि कई देश के पावर ग्रिड इस और तूफान की वजह से बंद हो जाते हैं और रेडियो कम्युनिकेशन खराब हो जाता है