चेरिया बरियारपुर विधानसभा क्षेत्र में सालों से निर्माणाधीन अनुमंडलीय अस्पताल नहीं है चुनावी मुद्दा

मंझौल / बेगूसराय : मंझौल रोसड़ा पथ पर एस एच 55 के बगल में अनुमंडल मुख्यालय स्थित निर्माणाधीन बहुमंजिला अनुमंडलीय अस्पताल उद्धारक की बाट जोह रहा है। बताते चलें कि एक दशक से भी पहले बिहार सरकार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री चंद्रमोहन राय ने इस अस्पताल का शिलान्यास किया था। स्वास्थ्य विभाग द्वारा करोड़ों की लागत से अनुमंडलीय अस्पताल का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। अर्धनिर्माण होने के बाद कितने बार रिस्तिमेट बनने के बाद भी संवेदक व विभागीय लापरवाही से निर्माण कार्य रुक गया।

जिसके बाद से ही अर्धनिर्मित भवन के भीतर असमाजिक तत्वों का जमावड़ा लगने लगा। अब आलम यह हो चुका है अर्धनिर्मित भवन का छरण शुरू हो गया और एकतरफ जहां भीतर में गंदगियों,मल मुत्रों का अंबार लग गया वही दूसरे तरफ से स्थानीय वासियों के द्वारा अतिक्रमन कर लिया गया। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग और लाख कोशिशों के बावजूद निर्माणाधीन अस्पताल के निर्माण कार्य पूरा करने की दिशा में विभाग व जनप्रतिनिधियों के द्वारा कोई भी सकारात्मक पहल धरातल पर नहीं देखा जा रहा है। यह अनुमंडलीय अस्पताल उत्तरी बेगूसराय के सबसे बड़े अस्पताल के रूप में बनाने की कोशिश थी। जिसकी आस क्षेत्रवासियों में अब टूटती हुई दिख रही है। मंझौल रेफरल अस्पताल का भवन भी पूर्णरुपेण जर्जर हो चुका है जिसके फलस्वरूप रेफरल अस्पताल किसी तरह पुराने भवन के पीछे नवनिर्मित चिकतसकीय आवास में संचालित हो रहा है। जिससे क्षेत्रवासियों के लिये स्वास्थ्य व्यवस्था की एक बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है। इमरजेंसी में लोगों को क्षेत्र में संचालित निजी अस्पताल का सहारा लेना पड़ता है।

निजी अस्पतालों में मरीजों का होता है आर्थिक दोहन अनुमंडलीय अस्पताल नहीं बन पाने से मंझौल अनुमंडल क्षेत्र की जनता इलाज मामूली ईलाज करवाने में मोटी रकम खर्च करने को बाध्य है। जबकि कई बार रोड एक्सीडेंट में घायल लोग भी बेगूसराय ले जाने के क्रम में रास्ते मे ही दम तोड़ दिए हैं। लगभग 30 साल पहले रेफरल अस्पताल मंझौल का उद्घाटित भवन पूर्णतः जर्जर होने के बाद दो साल पहले चिकित्सकीय आवास में अस्पताल को आसीयू पर जिंदा रखा गया है। अस्पताल के नाम पर इलाज कम और खानापूर्ति कर रेफरल अस्पताल प्रबंधन मौज उड़ाने में लिप्त है।

उक्त बाबत मरीजों को इसका खामियाजा यह भुगतना पड़ रहा है। कि निजी अस्पतालों की शरण मे जाकर अपनी मेहनत की कमाई का मोटी रकम खर्च करने को बाध्य हैं। विगत कुछ साल में मंझौल में प्राइवेट हॉस्पिटलों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। ज्यादातर निजी अस्पतालों की विश्वनीयता और डिग्री धारी चिकित्सकों की उपलब्धता पर कई बार सवाल भी उठते रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के निंद्रा में होने के कारण उक्त गोरखधंधा ख़ूब फलफूल रहा है। इसका एक विभत्स उदाहरण भी घटित हो चुका है जहां कुछ महीनों पहले मंझौल बखरी रोड स्थित एक प्राइवेट क्लिनिक में ऑपरेशन के दौरान एक महिला की मृत्यु भी हो गयी थी। वाबजूद किसी अधिकारी के कान पर जु तक नहीं रेगी ।