बेगूसराय का दूसरा अनुमंडल मंझौल आज हुआ 30 साल का, नहीं हुआ है अबतक कायाकल्प

न्यूज डेस्क, बेगूसराय : बिहार राज्य का ऐसा अनुमंडल जहां ना तो प्रखण्ड कार्यालय है ना थाना है। सुनहरे अतीत और स्याह भविष्य के बीच मंझौल के अनुमंडल बने तीस साल पूरे हुए। बताते चलें कि एक अप्रैल 1991 को बेगूसराय सदर अनुमंडल से काटकर बखरी , चेरिया बरियारपुर और खोदाबन्दपुर प्रखण्ड के साथ मंझौल अनुमंडल बनाया गया । बिहार के तत्कालीन सीएम लालू यादव के कार्यकाल में बना मंझौल अनुमंडल का मुख्यालय मंझौल पंचायत को बनाया गया। बाद में मंझौल अनुमंडल से अलग होकर बखरी अनुमंडल का निर्माण हुआ ।

वर्तमान मंझौल में चेरिया बरियारपुर , खोदाबन्दपुर और छौड़ाही प्रखण्ड शामिल हैं। मंझौल के अनुमंडल बने 30 साल होने के बाद भी नगर निकाय , थाना , प्रखण्ड , अंचल , अग्नि शमन कार्यालय नसीब नहीं हो पाया है। वहीं बीते विस चुनाव से पहले ही रजिस्ट्री कार्यालय की घोषणा हुई परंतु अबतक धरातल पर रजिस्ट्री कार्यालय का भी कोई अता पता नहीं है। क्षेत्र युवाओं की असीमित प्रतिभा है जिसको निखारने के लिए खेल स्टेडियम की सख्त जरूरत है।

मंझौल अनुमंडल मुख्यालय में चौतरफा है अतिक्रमण : बताते चलें कि बढ़ते आबादी और सीमित संसाधनों में बेहतर शासन और प्रशासन के अभाव में 21 वीं सदी के शुरू से ही मंझौल में धीरे धीरे अतिक्रमण अपना पैर पसारना शुरू कर चुका था । लेकिन समय अंतराल में कार्रवाई के अभाव में अभी अनुमंडल मुख्यालय में चौतरफा अतिक्रमण के कारण एसएच 55 , बस स्टैंड , शहीद मेजर मुकेश भवन , अनुमंडलीय अस्पताल परिसर , रेफरल अस्पताल , मोइन , सत्यारा चौक स्थित बापू गोलंबर के अस्तित्व पर बना हुआ है।

किसान और सरकार के बीच फंस गया है पर्यटन का विकास : मंझौल अनुमंडल में बिहार का एक मात्र रामसर साइट कावर झील पक्षी बिहार स्थित है। कई दशक पहले ही इसे पक्षी बिहार का दर्जा दिया गया । आशा के अनुरूप अबतक इसके विकास की दिशा में सार्थक पहल नगण्य दिख रहे हैं। मंझौल में स्थित बौद्ध स्तूप , कावर झील पक्षी बिहार, जयमंगला गढ़ आदि के विकास की दिशा में कदम नहीं बढ़े हैं। मछुआरों के लिए मछली पालन की परियोजना अधर में लटका हुआ है।

स्वास्थ्य व्यवस्था की समस्या है सबसे बड़ी : मंझौल अनुमंडल उत्तरी बेगूसराय का जंक्शन है । उत्तरी बेगूसराय में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालात बहुत खराब है। कई बार तो मरीज बेगूसराय जाते जाते रास्ते में ही दम तोड़ देता है। अनुमंडल बनने के साथ ही मंझौल में रेफरल अस्पताल भी बनाया गया । जो अब पूर्णतः जर्जर हो चुका है। इधर डेढ़ दशक से निर्माणधीन अनुमंडलीय अस्पताल लोगों के लिए वरदान कम अभिशाप ज्यादा साबित हो रहा है। वर्तमान में अनुमंडल मुख्यालय की आबादी करीब एक लाख हो चुकी है। क्षेत्र में स्वछता और स्वास्थ्य की समस्या बड़ी समस्या का रूप धारण कर चुका है।

वर्तमान में मंझौल अनुमंडल में नहीं है रेल लाइन की पहुंच : बिहार सरकार के पूर्व मंत्री रामजीवन सिंह कहते हैं कि जनता की मांग और बहुत दिनों से इक्छा थी कि मंझौल अनुमंडल बने जब सरकार में गया तो मंझौल को अनुमंडल का दर्जा दिलवाया । रेल लाइन की बात पूछने पर उन्होंने कहा कि जब मंझौल अनुमंडल का निर्माण हुआ तब रेललाइन अनुमंडल में था । परन्तु बखरी के अलग होते ही मंझौल रेल के नक्शे से अलग हो गया । रेल मंत्री ललित बाबू , रामविलास पासवान, नीतीश कुमार , ममता बनर्जी सभी को बरौनी से हसनपुर के लिए रेललाइन बिछाने का पत्र भी लिखा । ललित बाबू ने अपने समय में क्षेत्र में रेललाइन के लिए विभाग को टोह लेने का आदेश दिया था । बाद में रामविलास पासवान के समय में विभाग से सर्वे कराने के लिए एक लाख रुपये भी जारी हुए । लंबे समय अंतराल के बाद अब बरौनी गढ़पुरा रेलखंड की चर्चा शुरू हुई है।

डिजिटल जमाना आने से पहले मंझौल हो चुका था डिजिटल : मंझौल के अनुमंडल बनने के बाद लगातार कई सारे विकास के कार्य हुए । इसी कड़ी में 2000 ई के लगभग मंझौल में बीएसएनएल का टेलीफोन एक्सचेंज बनाया गया । आसपड़ोस के दर्जनों गाँव तक लैंडलाइन फोन व इंटरनेट का पहुंच हो गया था । बाद में कुछ साल के बीएसएनएल का मोबाइल टॉवर भी लगाया गया । समय अंतराल अधिकारियों की सुस्ती से अब यह टेलीफोन एक्सचेंज भी जर्जर और मृतप्राय अवस्था में पहुंच गया है।

शिक्षा व्यवस्था में भी सुधार की है जरूरत है : मंझौल के अनुमंडल बनने से पहले ही यहां शिक्षा व्यवस्था काफी सुदृढ था । डिग्री कॉलेज , महिला कॉलेज , हाई स्कूल , इंटर कॉलेज आदि शिक्षण संस्थान मौजूद थे । अनुमंडल बनने के 30 साल बाद महिला कॉलेज का अस्तित्व खत्म हो चुका है। आरडीपी गर्ल्स और जयमंगला इंटर स्कूल जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। आरसीएस कॉलेज में भी पीजी की पढ़ाई शुरू नहीं हो सकी है। इस दिशा में भी पहल की जरूरत है।