आज से महादेव का प्रिय महीना हुआ शुरू, इस तारीख को है सावन का पहला सोमवार

न्यूज डेस्क : साल भर के सभी मास में सावन मास भगवान शिव का प्रिय मास है। इस साल श्रावण मास का प्रारंभ 25 जुलाई दिन रविवार से होने जा रहा है। सनातन धर्म में सावन का हर दिन भगवान शिव की आराधना के लिए उत्तम और श्रेष्ठ होता है। इस प्रवित्र माह में भक्तजन विधि विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावन माह में सावन सोमवार व्रत हो या फिर मंगला गौरी व्रत दोनों ही शिव और शक्ति का आशीष प्राप्त करने का साधन है। हरीशयना एकादशी के पश्चात जब भगवान विष्णु अर्थात इस जगत के पालन कर्ता भगवान नारायण क्षीर सागर समुद्र में शयन करने हेतु चातुर्मास में चले जाते हैं तब चार दिनों के बाद अर्थात आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा गुरुपूर्णिमा के पश्चात श्रावण मास का प्रारंभ होता है। इस श्रावण मास को शिव मास के नाम से भी जाना जाता है।

क्या है श्रावण सोमवारी और इसका महत्व आचार्य अविनाश शास्त्री कहते है कि पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव के माथे पर चंद्रमा विराजते हैं, इसलिए भगवान महादेव को चंद्रशेखर भी कहा जाता है। सोमवार का दिन जिसे ज्योतिष शास्त्र में चंद्रवार भी कहा गया है। वह चंद्रमा का विशेष दिन होता है। सावन महीने के सोमवार का महत्व शिव पूजन व्रत के लिए विशेष रुप से अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सावन महीने के सोमवार को शिव के ऊपर किया गया। अभिषेक मनुष्य को दुख दरिद्र का नाश करने वाला सुख समृद्धि को देने वाला दैहिक दैविक एवं भौतिक इन तीनों तापों से मुक्ति देने वाला होता है।

देवों के देव महादेव की होती है पार्थिव पूजा महादेव देवों के देव कहे जाते है। भगवान विष्णु के अवतार भगवान रामचंद्र लंका विजय के लिए निकले थे । और हरिशयनी एकादशी आने पर अपने युद्ध विजय की यात्रा को भगवान रामचंद्र ने चार महीने रोक दिया था। उस समय समुद्र के तट पर शक्ति संचय तथा पुरुषार्थ की वृद्धि की कामना से मिट्टी के शिवलिंग का निर्माण करके भगवान रामचंद्र शिव की उपासना की थी। उस समय से ही गंगा के तट की मिट्टी अथवा शुद्ध स्थान की मिट्टी से शिवलिंग बना करके पूजने की प्रथा है, जिसे मिथिला में परंपरागत रुप से पार्थिव शिवलिंग का पूजन होता है। अतः पार्थिव पूजा की शुरुआत इसी चातुर्मास में सर्वप्रथम भगवान राम के द्वारा समुद्र तट पर किया गया जहां अभी द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग विराजमान है।

भाव के भूखे होते हैं भगवान शिव वैसे तो यह दंतकथा प्रचलित है कि भगवान भाव के भूखे होते हैं परंतु शास्त्र सम्मत यह निर्णय है कि मंत्राधीनम तु देवता अर्थात देवता मंत्र के अधीन हैं, ॐ नमः शिवाय ये पंचाक्षर मन्त्र है। ॐ त्रयम्बकम यजामहे सुगंधिम पुस्तिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात यह चमत्कारी मृत्युंजय मन्त्र है।

भगवान शिव रुद्राभिषेक पूजा का है विशेष महत्व भगवान शिव के पर्याय नाम के रूप में रुद्र शब्द का भी वर्णन आया है जिसका अर्थ होता है दुख का नाश करने वाला। इसीलिए रुद्र के अभिषेक को रुद्राभिषेक कहा जाता है। भगवान महादेव अग्नि तत्व के अधिष्ठात है। इसलिए उनके ऊपर फूल , वस्त्र , बेलपत्र , धूप – दीप , नैवेद्य आदि विभिन्न प्रकार के पदार्थों से शुक्लयजुर्वेद के अष्टाध्यायी से अभिषेक कल्याणकारी होता है।

सावन मास के इन तिथियों में है शिववास मंदिरों में प्रतिष्ठित अथवा ज्योतिर्लिंग के ऊपर रुद्राभिषेक के लिए सावन महीने में विशेष तिथि का विचार नहीं है परंतु अगर मिट्टी के पार्थिव शिवलिंग की पूजा करनी हो तो इसके लिए शिववास का विचार करना चाहिए।

कृष्ण पक्ष

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शुक्लपक्ष

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