आस्था और निष्ठा का महापर्व छठ मनाने की परंपरा और अपरंपार महिमा के बारे में पढ़ें

धार्मिक डेस्क / बेगूसराय (शहनवाज खान) : कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानी छठ सूर्योपासना का व्रत है जिसमें मुख्यता संतान प्राप्ति रोग मुक्ति और सुख सौभाग्य की कामना से किया जाता है आस्था की दृष्टि से यह पर्व कई मायने में खास है । धर्म शास्त्रों और पुराणों के अनुसार ईश्वर की उपासना के लिए प्रायः अलग-अलग दिनों एवं तिथियों का निर्धारण किया गया है। इनमें सूर्य नारायण के साथ सप्तमी तिथि की संगति है यथा सूर्य सप्तमी रथसप्तमी अचला सप्तमी इत्यादि इसके साथ ही छठ पर्व भी सूर्य देवताओं को समर्पित है।

इस सुचिता शुद्धता आस्था और विश्वास के महापर्व में स्वयं में विनम्रता और सहनशीलता की भावना जागृत किए जाने का भाव प्रमुख परिवारिक उन्नति एवं आत्मिक उन्नति की कामना का उत्तम साधन काल है छठ पर्व सूर्य देव के इस महापर्व में सबसे पहले सूर्य देवता को संध्याकालीन अर्घ्य दिए जाने का विधान है अर्घ्य के उपरांत दूसरे दिन ब्रह्ममुहूर्त में अर्घ्य समाज के साथ सभी प्रति जल में खड़े होकर भगवान सूर्य के उदय होने की प्रतीक्षा करते हैं जैसे ही क्षितिज पर अरुणिमा दिखाई देती है मंत्रों के साथ सूर्य देव को आराध्य समर्पित किया जाता है।

श्वेताश्वतरोपनिषद मैं परमात्मा की माया को प्रकृति व माया के स्वामी को मायी कहा गया है या प्रकृति ब्रह्मास्वरूपा मायामयी और सनातनी है प्रकृति देवी स्वयं को पांच भागों में विभक्त करती है- दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सती और सावित्री. प्रकृति देवी के प्रधान अंश को देवसेना कहते हैं जो सबसे श्रेष्ठ मातृका मानी जाती है यस समस्त लोगों की बालों को की रक्षिका एवं दीर्घायु प्रदान करने वाली देवी है प्रकृति का अंश होने के कारण इस देवी का नाम शशि देवी भी है षष्ठी देवी की छठ पूजा का प्रचार प्रसार पृथ्वी पर कब से हुआ इस संदर्भ में पौराणिक कथा इस प्रकार है प्रथम तनु स्वयंभू के पुत्र प्रियव्रत के कोई संतान न थी उन्होंने महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा तो महर्षि ने महाराज को पुत्रेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया जिसके फलस्वरूप राजा के यहां यथावसर नाम की एक बालक का जन्म हुआ लेकिन वह शिशु जीवित नहीं था ।

इससे पूरे नगर में शोक व्याप्त हो गया तभी आकाश से एक ज्योर्तिर्मय विमान प्रकट हुआ जिसमें एक दिव्यकृति नारी विराजमान थी राजा के स्तुति करने पर देवी ने कहा मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं मैं विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं व संतानहीनो को संतान प्रदान करती हूं इतना कहकर देवी ने शिशु के शरीर का स्पर्श किया जिससे वह जीवित हो उठा महाराज के प्रसन्नता की सीमा ना रही तब से उनके राज्य में प्रति मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी को षष्ठी महोत्सव मनाया जाने लगा तभी से बालक के जन्म नामकरण अन्नाप्राशन आदि सभी शुभ अवसरों पर षष्ठी पूजन भी प्रचलित हुआ माना जाता है।

रूनकी झुनकी बेटी मांगीला,पड़ल पंडितवा दमाद हे छठी मईया… छठ पर्व पर एक गीत इस बार भी गूंज रहा है -रूनकी झुनकी बेटी मांगीला, पडल पंडितवा दामाद हे छठी मैया. … यह लोग जीवन का गीत है जो प्राचीन काल से बेटियों की कामना को ध्वनित करता आया है आज हम और हमारी सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का जो नारा दे रही है उसका उत्स इस पर्व में है. यह मानना सत्य के काफी समीप होगा कि छठ एक प्राग्वैदिक पर्व है जिसके केंद्र में नारी है प्राग्वैदिक व्रतो की विशेषता रही है वे समूह में किए जाते थे छठ भी समूह पर्व है और उसकी यह विशेषता आधुनिकता के इस दौर में भी कायम है लोग जीवन में नारी की महत्ता बाद में उपनिषदों में भी व्यक्त हुई- यत्र नार्यास्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता … हालांकि वेदों में छठ व्रत का जिक्र नहीं आता लेकिन जिस सूर्य की उपासना इस व्रत में की जाती है वह अग्नि और प्रकाश के रूप में अन्य पंचमहाभूतो के साथ वैदिक रचनाओं और प्रमुखता के साथ वक्त हुआ है छठ चार दिवसीय अनुष्ठान है जो नहाए खाए से शुरू होकर करना डूबते सूर्य और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पूरा होता है यह सभी अनुष्ठान महिलाएं करती है हालांकि इधर कुछ पुरुष भी इस पर करने लगे हैं लेकिन इसकी संख्या अंगुलिगण्य ही होती है 18 नवंबर को नहाए खाए हैं 19 को खरना 20 को डूबते सूरज व 21 को उगते सुरज को अर्घ्यदान है

छठ पंचमहाभूते से जुड़ी प्रकृति पर्व भी है छठ व्रत की पूरी संरचना प्रकृति के ताने-बाने से जुड़ी है पृथ्वी पर चलकर और नदियों या अन्य जलाशयों में खड़े होकर आकाश में डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य देने का विधान है पृथ्वी आकाश और जल भी अग्नि प्रकाश की तरह पंचमहाभूतो में है पव्रती महिलाएं जब जल में खड़ी होती है तो शीतल मंद बयार उनके शरीर से स्पर्श कर उनमें ताजगी भर्ती है पंचमहाभूतो के इस मिलन मिश्रण और समन्वय से किया जाने वाला कठिन व्रत आरोग्य प्रदान करता है कार्तिक माह में खेतों में होने वाली हर फसल तथा नारियल, केला, ईख साथ उपलब्ध सभी फल इस व्रत के प्रसाद हैं

छठ करने से कृष्ण के पौत्र शांब का ठीक हुआ था कुष्ठ छठ के संबंध में एक कथा लोक जीवन में काफी प्रचलित है कहते हैं कृष्ण के पुत्र शाम को कुछ हो गया राज वेदों के इलाज के बाद भी जब यह रोग ठीक नहीं हुआ तो किसी ज्ञानी ने उन्हें छठ व्रत करने का परामर्श दिया उन्होंने यह व्रत किया जिससे उनकी काया पहले की तरह कंचन हो गई ऐसा माना जाता है कि उन्होंने जहां यह व्रत किया था वह भूभाग ही आज का बिहार है छठ का व्रत का यह प्रभाव छठ गीतों में वक्त हुआ है- अंहरा के आंख दिह, कोढिया के काया ,हे छठी मैया दर्शन दीहू ना अपार… दूसरी कथा द्रोपदी से जुड़ी है जिनसे वनवास के दौरान यह व्रत कर पांडवों की जीत का वरदान मांगा था इसी तरह छठ के प्रभाव को व्यक्त करने वाली कई कथाए प्रचलित है