मात्र 500 साल पहले से ही एक जनवरी को आता है नववर्ष , ईसाइयों का भी नहीं है नव वर्ष जनवरी

न्यूज डेस्क / धर्म कर्म : साल 2021 की शुरुआत और दुनिया भर में नए साल का धूम है। कुछ हिंदूवादी लोग इस नववर्ष का बहिष्कार इसलिए करते हैं क्योंकि हिन्दू कैलेंडर का यह नववर्ष नहीं है, परंतु यह नववर्ष ईसाइयों का भी नहीं है। जी हां सुनने में आपको यह बड़ा आश्चर्यचकित कर देने वाला लगता होगा , कि 1 जनवरी जिसे हम नव वर्ष के रूप में जानते हैं या जिसे कुछ दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी लोग ईसाई नववर्ष के रूप में कहते हैं जोकि सच्चाई में ईसाइयों का नववर्ष है ही नही।

ये है तथ्य , एक बार पढिये और समझिए इसको समझने के लिए हमें पहले वर्ष की गणना या इसकी परिकल्पना को समझना होगा कि आखिर 12 महीने का ही 1 वर्ष क्यों होता है। भारत के प्राचीन शास्त्रों ,खगोलविद,ज्योतिष शास्त्रों के जानकार ज्योतिषाचार्य आचार्य अविनाश शास्त्री का कहना है कि चाहे भारतीय वर्ष हो, इसाई वर्ष,नेपाली वर्ष हो या या इस्लामिक हिजरी हो सभी वर्षों में 12 महीने की ही परिकल्पना है, आखिर यह 12 महीने की कल्पना क्यों है ? यह 12 महीना 12 राशियों का द्योतक है,भारत में प्रमुख तौर पर प्राचीन काल से दो प्रकार के महीने को प्रमुख रूप से मानते हैं एक सौर मास और दूसरा चंद्रमा मास। सूरज की गति प्रतिदिन 1 अंश है यानी कि जब सूर्य 30 अंश का हो जाता है तो वह अपने राशि बदलता है और इस प्रकार से जब वह 360 दिन में 12 राशियों का एक चक्र पूरा कर लेता है तो 12 सौर मास का पूरा एक सौर वर्ष हो जाता है।

ठीक उसी प्रकार चंद्रमा एक राशि पर लगभग ढाई दिन तक रहते हैं और ढाई दिन के बाद वह दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं इस प्रकार जब हुआ है 12 राशियों में एक चक्र पूरा कर लेता है तो उसे लगभग 30 दिन लगते हैं और वह एक चंद्रमास पूरा करता है जिस दिन चंद्रमास पूरा होता है उस दिन पृथ्वी से चंद्रमा पूर्ण रूप में गोलाकार दिखती है जिसे हम पूर्णमासी के रूप में जानते हैं समझते हैं ठीक इसी चंद्रमास का जब 12 चक्र पूरा हो जाता है यानी कि चंद्रमा जब किसी राशि को 12 बार गमन कर लेती है तो वह 1 चंद्र वर्ष हो जाता है। अब यह तो प्रमाण तथ्य या विचार भारतीयों के पास है भारत के प्राचीन ज्योतिष शास्त्र के पास है भारत के प्रत्येक हिंदी मास का नाम भी नक्षत्रों के ही आधार पर है. जिस मास में पूर्ण होने के दिन अर्थात पूर्णमासी के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहती है वह महीना उस नक्षत्र के नाम से जाना जाता है जैसे चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में जब पूर्ण होती है तो वह मांस चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास होता है ठीक उसके बाद अगले पूर्णमासी के दिन चंद्रमा पूर्ण रूप से विशाखा नक्षत्र में होती है. इसलिए चेत्र के बाद वैशाख का महीना होता है और इसी प्रकार क्रम से जेष्ठा नक्षत्र के नाम से ज्येष्ठ,श्रवण से श्रावण, भाद्रपद से भाद्रपद ,अश्विनी से आश्विन, कृतिका से कार्तिक,मार्गशीर्ष पूर्णिमा से मृगशिरा नक्षत्र को पुष्य नक्षत्र में पौष का पूर्णमासी मघा नक्षत्र में माघ महीने की पूर्णमासी और फाल्गुनी नक्षत्र में फाल्गुन मास की पूर्णिमासी होती है।

मार्च महीने से दिसम्बर तक साल की है अवधारणा लेकिन दूसरी तरफ ईसाइयों के द्वारा प्रचलित वैश्विक स्तर पर जिस महीने को जाना जाता है वह किसी नक्षत्र या खगोलीय राशि तारों के आधार पर नहीं है। महीने का नाम कुछ देवी देवता या वहां के राजाओं के नाम पर महीने का नाम रखा गया जैसे मार्च का महीना मार्स यानी मंगल देवता के नाम पर,मई महीने का नाम माईमां जो रोम की देवी मानी जाती है। उनके नाम पर मई का महीना आया स्वर्ग की रानी जिसे रोमन लोग जूनो नाम से जानते हैं उसके नाम पर जून का महीना आया लेकिन इन सबों के अलग अगर आप सितंबर अक्टूबर-नवंबर दिसंबर इन महीनों के नामों को देखें तो यह मूल रूप से लैटिन शब्द सप्तम ऑक्टो,नोवा जैसा शब्द से बना है। अब गौर करने वाला तथ्य यह है की ऑक्टा शब्द से अक्टूबर का महीना बना और नवासे नवंबर का महीना बना डेसा शब्द से ही दिसंबर।

प्राचीन रोमन संस्कृति में जो कैलेंडर का उपयोग होता था उसमें मार्च महीने को पहला महीना माना गया था यह सिर्फ भारतीयों के द्वारा या ज्योतिषियों के द्वारा रोमनओ को ईसाईयों को गलत करने का कोई वक्तव्य नहीं बल्कि इसके पीछे भी तथ्य है भारतीय ज्ञान विज्ञान गणित परंपरा पूरे दुनिया के सबसे प्राचीन संस्कृत सुव्यवस्थित परंपरा थी भूगर्भ से लेकर के अंतरिक्ष तक का ज्ञान भारतीयों के पास आदि काल से ही रहा है अब आप भारत के पारंपरिक वर्ष आरंभ की बात करें तो हम देखते हैं कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष प्रतिपदा यानी कि वर्ष के आरंभ की बात आती है जो प्रायः ईसाई कैलेंडर के अनुसार मार्च का महीना होता है अब अगर मार्च से हम नवे महीने की गिनती करें तो वह नवंबर होता है लेटिन में नोवा शब्द का मतलब 9 होता है, ऑक्टा का मतलब आठ होता है और डेशा का मतलब 10 होता है यानी मार्च से नवंबर नवंबर 8 मा अक्टूबर एवं दसवां महीना दिसंबर होता है अर्थात प्राचीन काल में रोमन साम्राज्य जो ईसाइयों की प्राचीन संस्कृति थी जिस जिस साम्राज्य से ही पूरी दुनिया में ईसाइयों का विस्तार हुआ है रोमन साम्राज्य फैला वही आज से 2021 वर्ष पूर्व जनवरी को पहला महीना नहीं मानता था और 1 जनवरी को नववर्ष नहीं मनाता था उनके यहां भी अपने तरह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी कि मार्च का महीना नव वर्ष होता था।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल को पृथ्वी पुत्र भूमि सूत,कुमार,धरनिगर्भ इत्यादि नामों से व्यक्त किया गया है और मार्च शब्द अंग्रेजी के मार्स बना है जिसका अर्थ मंगल होता है यानी कि प्राचीन रोमन लोग भी इस बात को मानते थे कि इस पृथ्वी का मालिक मंगल ग्रह है प्राचीन भारतीय सूर्य उपासक एवं सूरज की गणना के आधार पर उदय अस्त के ही आधार पर दिन की परिकल्पना की है इस्लाम में चंद्रमा के उदय अस्त एवं चंद्र दर्शन के आधार पर पंचांग निर्माण किया तो रोमन लोगों ने भी भारतीय खगोलीय ज्योतिष शास्त्र का अनुसरण करते हुए मंगल को प्रथम एवं प्रधान ग्रह मानकर के मार्च महीने को अपना वर्ष का पहला महीना माना। अतः हमें ऐसा मानना चाहिए कि यह 1 जनवरी वाला नया साल 1/2हजार साल पुराना ही है इससे पूर्व एशियाई लोग तो नहीं ही रोमन लोग भी 1 जनवरी को नववर्ष नहीं बनाते थे।

ये लेखक के अपने विचार है आपके पास अगर कोई तार्किक तथ्य हो तो भेजे अन्यथा सत्य स्वीकार करें।
आचार्य अविनाश शास्त्री
ज्योतिषाचार्य