प्रथम शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है बेगूसराय लखनपुर दुर्गा माता का मंदिर।

बेगूसराय । बेगूसराय जिला का प्रथम शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध है ,लखनपुर वाली दुर्गा माता का भव्य मंदिर। यहां पर पूजा अर्चना लगभग साढे 300 वर्षों से अनवरत जारी है ।यह लखनपुर दुर्गा मंदिर भगवानपुर प्रखंड अंतर्गत में आता है ।जो बेगूसराय जिला मुख्यालय से मंदिर की दूरी 32 किलोमीटर है, और भगवानपुर प्रखंड से 6 किलोमीटर तथा तेघड़ा एनएच 32 सड़क से 8 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में मंदिर अवस्थित है ।

भगवानपुर प्रखंड से दुर्गा मंदिर पहुंचने का रास्ता बस ही गांव होते हुए चुरामन चक ,पाली, सतराजे पुर गांव के बाद लखनपुर दुर्गा मंदिर पश्चिम उत्तर की दिशा में है ।तेघड़ा के रास्ते से मंदिर तक पहुंचने का रास्ता दनियालपुर गांव से रसलपुर ,तेयार ,छत्री टोल, अतरुआ,समस्तीपुर गांव के बाद लखनपुर दुर्गा मंदिर आ जाता है ।

दुर्गा पूजा में लखनपुर दुर्गा मंदिर में अपने सपरिवार के साथ दर्शन करने के लिए सूबे बिहार के लोगों यहाँ दर्शन करने के लिए आते हैं, इसके अलावे बंगाल से झारखंड और उत्तर प्रदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु लोग यहां पर पहुंचते हैं। इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही भक्तों की सारी मनोकामनाएं दुर्गा मैया पूरी करती है।

बेगूसराय जिला का प्रथम शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध है ,लखनपुर वाली दुर्गा माता का भव्य मंदिर। यहां पर पूजा अर्चना लगभग साढे 300 वर्षों से अनवरत जारी है ।यह लखनपुर दुर्गा मंदिर भगवानपुर प्रखंड अंतर्गत में आता है ।

जो बेगूसराय जिला मुख्यालय से मंदिर की दूरी 32 किलोमीटर है, और भगवानपुर प्रखंड से 6 किलोमीटर तथा तेघड़ा एनएच 32 सड़क से 8 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में मंदिर अवस्थित है । भगवानपुर प्रखंड से दुर्गा मंदिर पहुंचने का रास्ता बस ही गांव होते हुए चुरामन चक ,पाली, सतराजे पुर गांव के बाद लखनपुर दुर्गा मंदिर पश्चिम उत्तर की दिशा में है ।

तेघड़ा के रास्ते से मंदिर तक पहुंचने का रास्ता दनियालपुर गांव से रसलपुर ,तेयार ,छत्री टोल, अतरुआ,समस्तीपुर गांव के बाद लखनपुर दुर्गा मंदिर आ जाता है ।दुर्गा पूजा में लखनपुर दुर्गा मंदिर में अपने सपरिवार के साथ दर्शन करने के लिए सूबे बिहार के लोगों यहाँ दर्शन करने के लिए आते हैं, इसके अलावे बंगाल से झारखंड और उत्तर प्रदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु लोग यहां पर पहुंचते हैं। इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही भक्तों की सारी मनोकामनाएं दुर्गा मैया पूरी करती है।

लखनपुर गांव के 75 वर्षीय दुर्गा मंदिर के पास के एक बुजुर्ग श्यामनंदन साह ने पूछने पर बताते हैं कि इस मंदिर में पूजा अर्चना बड़े ही नियम निष्ठा पूर्वक ढंग से की जाती है । पूजा का विधि विधान बंगाली अध्यात्म के अनुसार होता है ।यह लखनपुर दुर्गा माता का मंदिर बलान नदी के तट पर अवस्थित है ।

इस दुर्गा मंदिर को पुष्प लता घोष चैरिटेबल ट्रस्ट के अधिनस्थ है। इस मंदिर का सौंदर्यीकरण विमल कुमार घोष ने करोड़ों रुपए खर्च करके किया है ।मंदिर में पूजा की शुरुआत आश्विन प्रथम पक्ष के नवमी तिथि के जिउतिया पर्व के उपरांत प्रथम कलश के स्थापन कर पाठ करने के बाद एक छागल की बलि दी जाती है ।उसी दिन से पूजा की शुरुआत हो जाती है।

उसके बाद आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को एक विशेष पूजा होती है ।उसके बाद षष्ठी तिथि को गंध अधिवास में मूर्ति का जागरण किया जाता है ,तथा सप्तमी तिथि को मंदिर में मूर्ति को प्रवेश कराया जाता है ।उसी रात्रि में फिर एक छागल की बली एवं अखंड दीप को जलाया जाता है ।जो दशमी तिथि तक चलते रहता है।

मां के मूर्ति के सामने मंदिर में एक छागल को रखकर मां को डिम्मा दिया जाता है ।डिम्मा देने के बाद उस छागल के आंख की रोशनी समाप्त हो जाती है। जिसे ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है। उसके बाद दूसरे दिन कालरात्रि की पूजा होती है। फिर एक छागल की बलि पड़ता है ।

अष्टमी को महागौरी की पूजा होती है तथा नवमी तिथि के रात्रि में मां दुर्गा के हाथ में पांच अड़हुल फूल के कली को रखा जाता है ।जब मां अति प्रसन्न हो जाती है तो वह अड़हुल का फूल उनके हाथ में खिलकर फिर नीचे गिरता है तब से छागल की बलि पड़ना शुरू हो जाता है और वह विजयादशमी के दिन शाम के 4 से 5 बजे तक अनवरत चलते रहता है ।

विजयादशमी के दिन बलि पड़ना बंद होने के बाद मां के प्रतिमा का विसर्जन करने के लिए पूरे गाजे-बाजे के साथ नाव पर प्रतिमा को चढ़ा कर उसे बलान नदी में 24 घंटे तक जल विहार कराया जाता है ।बगरस गांव से लेकर रुदौली गांव तक उन्हें पानी में घुमाया जाता है।

तिमा को घुमाने के बाद प्रतिमा का विसर्जन लखनपुर दुर्गा मंदिर के सामने पून: लौटकर बलान नदी में कर दिया जाता है। इस मंदिर का इतिहास बड़ा पुराना है ।बंगाल से मां के पिंडा को उठाकर प्रत्येक 3 डेघ पर एक छागल की बलि देते हुए लखनपुर गांव तक बेगम सराय के एक व्यक्ति वैद्यनाथ प्रसाद सिंह के पूर्वज बंगाल से मां के पेंडा को लेकर यहाँ पर पहुँचे थे और लखनपुर आते आते छागल की बलि देना बंद हो जाने के बाद दुर्गा मां ने उसे स्वपन में बोली कि अब यहां से हम आगे नहीं बढ़ेंगे।

इस मंदिर का एक अलग पुराना इतिहास यह भी है कि जब इस दुर्गा मंदिर में सप्तमी के तिथि को मां के मंदिर में आँख में डिम्मा दिया जा रहा था तो उसे छुपकर देखने के लिए मंदिर में एक किंगवदन्ती नामक लड़की प्रवेश कर गयी थी।

जिसे दुर्गा माँ अपने मुँह से निगल गयी जब माँ के मुह में लड़की के साड़ी का छोटा सा कोर दिखाई पड़ा तो मंदिर में पूजा कर रहे ब्राह्मणों ने काफी मैया को अनुनय विनय एवं प्रार्थना करने के बाद उसे बाहर निकाल देने की बातें कहीं ।उसके बाद दुर्गा माता ने अपने मुंह से उसे बाहर निकाल दी। इसलिए इस मंदिर में मां की एक असीम कृपा विराजमान है।

यह लखनपुर दुर्गा मंदिर बलान नदी के किनारे बसा हुआ है ।

इस नदी के ऊपर एक चचरी का पुल जो बना हुआ है ।वह पुल बनवारीपुर गांव को भी जोड़ता है। अगर इस बार मेला के दिन लोगो के आवागमन को बंद नहीं किया गया तो एक बड़ी हादसा हो सकती है ।इसके लिए जिला प्रशासन के अधिकारी को पहले सतर्क होना पड़ेगा ।चुँकि मेला देखने के लिए इस चचरी पुल के रास्ते अधिक लोगों का दबाव होने के बाद यह बाँस के चचरी का बना हुआ पुल टूटखर कभी भी बलान नदी के नीचे में गिर सकता है।