डेस्क : माँ दुर्गा के नवम रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है। नवरात्रि के नवम दिवस पर इन्ही की पूजा आराधना की जाती है। सभी प्रकार की सिद्धियों की दात्री होने की वजह से इस रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है। माँ दुर्गा जगत के कल्याण के लिए नौ रूपों में प्रकट हुई थी इसी रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री। माँ प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण जगत की रिद्धि सिद्दी अपने उपासकों को प्रदान करती है।
देवी सिध्दिदात्री का यह रूप अत्यंत ही सुंदर व सौम्य है। इस रूप में माँ की चार भुजाएं हैं। दायीं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है। वहीं बाई तरफ की भुजा में शंख व कमल का फूल है। माँ का आसान कमल है जिस पर वो विराजमान रहती हैं। तथा इनकी सवारी सिंह है।
भगवान शिव भी करते है माँ सिद्धिदात्री की आराधना
पुराण के अनुसार भगवान शिव ने माँ की कृपा से ही सिद्धियों को प्राप्त किया था व इन्हीं के द्वारा भगवान शिव को अर्धनारीश्वर रूप प्राप्त हुआ था। मार्कण्डेय पुराण में आठ सिद्धियों का उल्लेख है जिसे भगवान शिव ने देवी सिद्धिदात्री की कृपा से प्राप्त किया था। ये सिद्धियां अणिमा, महिमा,लघिमा,प्राप्ति, प्रकाम्य,इसीतत्व और वशित्व है। हमारे शास्त्रों में अठारह सिद्धियों का वर्णन है। जिसकी स्वामिनी माता सिद्धिदात्री है। इनकी पूजा से उपासकों को सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
सिद्धिदात्री की आराधना के अगले दिन अर्थात नवरात्रि के अगले दिन 10 वी तिथि को रावण पर राम जी की विजय के रूप में मनाया जाता है। दसवीं तिथि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाने वाला त्यौहार दसहरा अर्थात विजयादशमी मनाया जाता है। इस दिन रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद का पुतला दहन कई जगहों पर किया जाता है।
इस अंतिम स्वरूप की आराधना के साथ ही नवरात्रि का त्यौहार समाप्त हो जाता है। माँ सिद्धिदात्री की उपासना करने वाले उपासकों का मन शांत व स्थिर रहता है तथा उसे सिद्धियों की प्राप्ति होती है।