विश्व एड्स दिवस विशेष : जागरूकता ही बचाव, असुरक्षित यौन संबंधों की जानकारी लोगों को रखेगा एड्स से सुरक्षित

न्यूज डेस्क , बेगूसराय : हर साल एक दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना होता है। इसके तहत लोगों को एड्स के लक्षण, इससे बचाव, उपचार, कारण इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाती है और इसके लिए देश में कई सामाजिक संगठनों के द्वारा अभियान चलाया जाता हैं जिससे लाईलाज बीमारी से बचा जा सके और साथ ही एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद की जा सकें। अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी ने बताया कि एड्स एक लाईलाज बीमारी हैं। जिसके प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल विश्व एड्स दिवस एक दिसम्बर को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। एड्स दिवस को लेकर प्रति वर्ष अलग-अलग थीम तैयार किया जाता है। इस वर्ष का थीम ‘एंडिंग दी एचआईवी/ एड्स एपिडेमिक: रेसिलिएंस एंड इम्पैक्ट’ हैं।

जागरूकता ही एड्स से बचाव का है कारगर उपाय : भारत जैसे घने आबादी वाले देश में एड्स से ग्रसित मरीजों की संख्या का कारण यह होता है कि महिला या पुरुषों के द्वारा लापरवाही युक्त व्यवहार यानी सब कुछ जानते हुए भी या तो अंजान बनते हैं या फिर असुरक्षित यौन संबंधों को बढ़ावा देते हैं जो कि एड्स का एक महत्वपूर्ण कारण होता हैं। जरूरी नहीं कि सिर्फ असुरक्षित यौन संबंध बल्कि किसी भी संक्रमित रोग से ग्रसित होने के कारण भी ऐसा होता है और संक्रमण के कारण भी एड्स होने की संभावना बराबर बना रहता है, हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर आंकड़ों के मुताबिक, एड्स के मरीजों की संख्या में काफी कमी आई है। एड्स नियंत्रण समिति पटना के प्रयास से राज्य में एड्स संक्रमण पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा चुका है। हालांकि इसके लिए सभी को जागरूकत रहने की जरूरत हैं। एड्स एक लाईलाज बीमारी है क्योंकि इससे संबंधित जानकारी एवं शिक्षा ही इससे बचाव का सबसे ज्यादा कारगर माध्यम है। सभी गर्भवती महिलाओं को नियमित रूप से एड्स की जांच करानी चाहिए। जिसकी सुविधा जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल से लेकर प्रखण्ड स्तर तक के स्वास्थ्य केंद्रों में निःशुल्क उपलब्ध है।

असुरक्षित यौन संबंधों की जानकारी रखेगा सुरक्षित: आज कल के लोगों में खासकर युवा वर्गों में एड्स जैसी बीमारी फैलने का मुख्य कारण यौन शिक्षा का न होना है। असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित सूई का प्रयोग, संक्रमित रक्त आदि के प्रयोग के कारण होता है। वहीं एचआइवी संक्रमण से रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है, जिस कारण गर्भवती महिलाओं के नवजात शिशुओं को भी एचआइवी संक्रमण बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। क्योंकि जन्मजात शिशुओं के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को पूरी तरह खत्म कर देता है। जिससे पीड़ित अन्य घातक बीमारियों जैसे टीबी, कैंसर व अन्य संक्रामक बीमारियों से प्रभावित हो जाता है। एड्स पीड़ित महिला या पुरुष से पहले सरकारी अस्पताल के चिकित्सकों से चिकित्सीय सलाह लेना चाहिए।

एड्स से ग्रसित गर्भवती महिलाओं का रखा जाता हैं विशेष ध्यान: HIV से पीड़ित महिलाओं के 45 दिन वाले नवजात शिशुओं की जांच ICTC केंद्र के द्वारा EID/DBS की जांच कोलकाता स्थित केंद्रीय जांच घर से कराया जाता है। जिन बच्चों को एड्स जैसी बीमारी होती है, उन्हें ART केंद्र से जोड़ा जाता है और अस्पताल से ईलाज भी शुरू किया जाता है। एड्स से ग्रसित गर्भवती महिलाओं के प्रसव को लेकर अस्पताल प्रशासन हर तरह से तैयार रहता हैं। खासकर उन नवजात शिशुओं का ख्याल रखा जाता हैं और जन्म के तुरंत बाद माँ का गाढ़ा दूध नही पिलाया जाता हैं क्योंकि संक्रमण फैलने की संभावना रहती हैं लेकिन कुछ परिस्थितियों में ऐसा किया जाता हैं जिसको लेकर सर्तकता के साथ सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं।

साथी एप एवं हेल्पलाइन-1097 से ले सकते है जानकारी: एचआइवी एड्स के मरीजों या अन्य लोगों को जानकारी के लिए राज्य सरकार के द्वारा साथी एप व 1097 हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है क्योंकिं एड्स के संक्रमण के कारणों व बचाव के संबंध में जानकारी लिया जा सकता हैं। इसके साथ ही ‘हम साथी’ मोबाइल एप डाउनलोड कर एड्स से संबंधित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यह मोबाइल एप एड्स के प्रति जागरूकता लाने और बच्चों में मां के माध्यम से एड्स के संक्रमण को रोकने के लिए विभिन्न जानकारियां मुहैया कराता है।