गर्व! बिना आंख के खेती कर भर रहे हैं परिवार का पेट, प्रेरित करने वाली है ये कहानी..

डेस्क : अक्सर यह कहा जाता है कि जिनके हौसले बुलंद हो, वह अपनी कमियों पर रोना नहीं रोते हैं. परिस्थितियों से लड़कर वो हमेशा आगे बढ़ते हैं. झारखंड के लातेहार टाउन स्थित सालोडीह गांव के रहने वाले दिव्यांग छोटेलाल उरांव इस कहावत को वास्तव में चरितार्थ कर रहे हैं. छोटेलाल उरांव एकदम से नेत्रहीन होने के बावजूद एक सामान्य व्यक्ति की तरह ही अपने खेतों में खेती करते हैं और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. दरअसल, छोटेलाल उरांव सिर्फ 2.5 साल के थे तो एक बीमारी के कारण उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गयी थी. इनके माता-पिता काफी गरीब थे जिसके कारण छोटेलाल का किसी बड़े अस्पतालों में इलाज नहीं करा सके.

आंख से नहीं देख पाने के बावजूद बेहद मेहनती हैं छोटे लाल

2.5 साल की उम्र में ही छोटेलाल उरांव पूरी तरह नेत्रहीन हो गए हैं. छोटेलाल की आंखों की रोशनी जाने के बाद से उनके माता-पिता काफी परेशान थे. इसका आलम यह था कि गरीबी के कारण नेत्रहीन छोटेलाल को किसी ब्लाइंड स्कूल में भी नहीं भेज सके. हालांकि, छोटेलाल जैसे-जैसे बड़े होते गए, वैसे-वैसे ही वो परिस्थितियों से समझौता करने के बदले लड़कर जीवन में आगे बढ़ने का निश्चय भी किया. छोटेलाल अक्सर कहते हैं कि बचपन में ही उनकी आंखों की रोशनी चली गई. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपने जीवन को बेहद सामान्य तरीके से चलाने का प्रयास किया.

खेती करने के साथ-साथ साइकिल भी चलाते हैं

गौरतलब है छोटेलाल जी आज दिव्यांग होने के बाबजूद भी साइकिल चला लेते हैं. वहीं छोटेलाल के पिता एतवा उरांव अक्सर कहते हैं कि गरीबी के कारण छोटेलाल का किसी बड़े अस्पताल में इलाज भी नहीं करा पाए. इससे उसकी आंखों की रोशनी भी चली गई, लेकिन नेत्रहीन होने के बावजूद छोटेलाल खेती से लेकर खाना बनाने तक का काम आसानी से भी कर लेता है. मालूम हो कि इस दिव्यांगता को पीछे छोड़ते हुए छोटेलाल उरांव ने सबसे पहले अपने पिता के साथ मिलकर खेती करना भी शुरू किया. धीरे-धीरे से छोटेलाल खेतों में फसल लगाने, पटवन करने के साथ-साथ फसल काटने की विधि भी सीखी और अब छोटी से जमीन पर खेती कर छोटेलाल अपने माता-पिता का भरण पोषण करना भी शुरू कर दिया.