डेस्क: गुरु नानक देव जयंती यानी 19 नवंबर का दिन किसानों के लिए वरदान साबित रहा.. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों का तीनों कानून बिल वापस करने का फैसला लिया, शुक्रवार को अपने संबोधन की शुरूआत से ही पीएम मोदी ने किसानों पर बात की, आंदोलन कर रहे किसानों से प्रधानमंत्री ने अपील की कि आप घर लौट जाएं और खेती में जुट जाएं।
तो आइए सबसे पहले यह समझते हैं कि आखिर किसानों ने यह तीनों कृषि बिल का विरोध क्यों किया, जिसके चलते किसान दिल्ली, पंजाब जैसे विभिन्न बॉर्डर पर पिछले कई महीनों से आंदोलन कर रहे थे, आंदोलन में न जाने कितने किसानों की जान भी चली चली गई, किसानों को आतंकवादी तक घोषित कर दिया गया, और आज में नरेंद्र मोदी को किसान के सामने झुकना पड़ा,
तो आइए समझते हैं कि इस किसान आंदोलन की जड़ क्या है?
- किसानों को सबसे बड़ा डर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP- Minimum Support Price) खत्म होने का था, इस बिल के जरिए सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति (APMC-Agricultural produce market committee) यानी मंडी से बाहर भी कृषि कारोबार का रास्ता खोल दिया था,
- सरकार ने बिल में मंडियों को खत्म करने की बात कहीं पर भी नहीं लिखी थी, लेकिन उसका इंपैक्ट मंडियों को तबाह कर सकता है, इसका अंदाजा लगाकर किसान डरा हुआ था, इसीलिए, आढ़तियों को भी डर सता रहा है, इस मसले पर ही किसान और आढ़ती एक साथ थी, उनका मानना था, कि मंडियां बचेंगी तभी तो किसान उसमें एमएसपी पर अपनी उपज बेच पाएगा।
- बता दे की इस बिल से वन कंट्री टू मार्केट वाली नौबत पैदा होती नजर रही थी, क्योंकि मंडियों के अंदर टैक्स का भुगतान होगा और मंडियों के बाहर कोई टैक्स नहीं लगेगा, अभी मंडी से बाहर जिस एग्रीकल्चर ट्रेड की सरकार ने व्यवस्था की है, उसमें कारोबारी को कोई टैक्स नहीं देना होगा। जबकि मंडी के अंदर औसतन 6-7 फीसदी तक का मंडी टैक्स (Mandi Tax) लगता है।
- किसानों की ओर से यह तर्क दिया जा रहा था कि आढ़तिया या व्यापारी अपने 6-7 फीसदी टैक्स का नुकसान न करके मंडी से बाहर खरीद करेगा, जहां उसे कोई टैक्स नहीं देना है। इस फैसले से मंडी व्यवस्था हतोत्साहित होगी। मंडी समिति कमजोर होंगी तो किसान धीरे-धीर बिल्कुल बाजार के हवाले चला जाएगा, जहां, उसकी उपज का सरकार द्वारा तय रेट से अधिक भी मिल सकता है और कम भी