डेस्क : इस वक्त देश भर में मन्दिर – मस्जिद लो लेकर माहौल अलग होता हुआ नजर आ रहा है। ज्ञानवापी मस्जिद के फव्वारे के सर्वे के बाद से काशी का यह मस्जिद लगातार चर्चा में है। हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह एक फव्वारा है। इसे लेकर लगातार कई तरह के दावे किए जा रहे हैं जिसमें एक पक्ष इसे किसी वैज्ञानिक कारणों से लगाया गया था फव्वारा बता रहा है तो वहीं दूसरा पक्ष इसे फव्वारा मानने को तैयार नहीं।
ऐसे में लोगों का मानना है कि यदि यह फव्वारा है तो इसके लगाए जाने के पीछे का क्या कारण है। आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण – नई बाबरी मस्जिद का निर्माण करने वाले आर्किटेक प्रोफ़ेसर एसएम अख़्तर ने अपने दिए किसी निजी चैनल को इंटरव्यू में बताया था कि इस्लाम के मुताबिक़, नमाज या कुरान पढ़ने के पहले ख़ुद को साफ़ करने के लिए कहा जाता है। फिर दौर के हिसाब से मस्जिदों में पानी जमा करने का तरीका भी काफी बदल गया है। पहले पानी को तालाब में जमा किया जाता था लेकिन फिर पानी सड़ने की समस्या आने लगी और फ़िर फव्वारा लगाया जाने लगा। पानी को साफ़ रखने के लिए रीसाइकल किया जाने लगा और फव्वारा लगाया जाने लगा। इसके लिए पहले ग्रेविटी, मैकेनिक आदि का उपयोग करते हुए वाटर ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल किया जाता था और इसी कांसेप्ट को मस्जिद में लाया गया।
उन्होंने कहा कि पुराने ज़माने में पानी स्टोर करने के लिए तालाब आदि का इस्तेमाल किया जाता था। कई जगह फव्वारे आदि का इस्तेमाल होता था। अब किसी मस्जिद में फव्वारे है या नहीं इसके पीछे कई कारण हैं, जिसमें रिसोर्स भी है। हालांकि समय के साथ जब नल आदि लगने लगे तो पानी इकठा होना बंद हो गया और मशीनों ने ये जगह ले ली। फिर ये समस्या खत्म हो गई। वाटर मैनेजमेंट सिस्टम में भी बदलाव आ गया है। जबकि ऐसा नहीं है कि यह मुगल काल से चला आ रहा है इसके पहले भी इस तरह के साइंस का कई जगह इस्तेमाल हुआ है।