सुप्रीम कोर्ट का फीस माफी पर आया फैसला, निजी स्कूलों को कम से कम 15 फीसदी की कटौती का दिया आदेश

न्यूज डेस्क : साल 2020 में कोरोना के पदार्पण के बाद लगे देशव्यापी लॉकडाउन के कारण सभी शिक्षण संस्थान पूर्णरूपेण ठप हो गए थे। कई महीनों तक शिक्षण संस्थान बंद रहने के बाद धीरे-धीरे अनलॉक भी हुए। बावजूद इसके बंदी के समय में स्कूल और छात्र के अभिभावकों के बीच फीस लेन-देन का जो मामला अटका हुआ था। वह अभी तक नहीं सुलझ पाया है।

बताते चलें कि अभिभावकों का कहना है कि जब बच्चे स्कूल ही नहीं गए तो प्राइवेट स्कूल वाले फीस किस चीज की मांग रहे हैं। ऐसे में स्कूल बालों को चाहिए या तो फीस माफी कर दे या कम ले। दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूल संस्थान की दलील है कि स्कूल के तरफ से लॉकडाउन में भी रेगुलर ऑनलाइन क्लास करवाई गई, और शिक्षकों के वेतन भी देने हैं इस कारण से फीस तो पूरा का पूरा देना ही होगा। इसी को लेकर चला आ रहा गतिरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस दौरान कई जगह से ऐसी भी खबरें आई जहां पर छात्रों के द्वारा फीस नहीं देने के कारण स्कूल प्रबंधन या तो बच्चों को परीक्षा से वंचित रखने की बात कर रहा था या उनके रिजल्ट रोकने की बात पर अडिग था।

देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूलों को वार्षिक फीस में कम से कम 15 फीसदी की कटौती करने का आदेश दे दिया है। कोर्ट ने कहा है कि सत्र 2019-20 के लिए स्कूल नियम के अनुसार अपनी पूरी फीस ले सकते हैं। लेकिन शैक्षणिक सत्र 2020-21 के लिए उन्हें अपनी फीस कम से कम 15 फीसदी तक कम करनी होगी। स्कूल चाहें तो इससे ज्यादा का छूट भी दे सकते हैं। सर्वोच्य न्यायालय ने कहा है कि अगर कोई स्टूडेंट तय समय सीमा के अंदर फीस जमा नहीं कर पाता है, तो स्कूल उसे ऑनलाइन या ऑफलाइन कोई भी क्लास करने से रोक नहीं सकते। और न ही ऐसे स्टूडेंट्स के रिजल्ट्स रोके जाएंगे।

हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएएम खानविलकर और जस्टिस दनेश माहेश्वरी की बेंच राजस्थान प्राइवेट स्कूल्स मैनेजमेंट की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। राजस्थान निजी स्कूल प्रबंधन ने राजस्थान हाईकोर्ट के 18 दिसंबर 2020 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसमें हाई कोर्ट ने महामारी के दौरान अभिभावकों की परेशानियों के मद्देनजर राज्य के सीबीएसई स्कूल्स को 30 फीसदी तथा राजस्थान बोर्ड स्कूल्स को 40 फीसदी फीस घटाने का आदेश दिया था। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है।