सुप्रीम कोर्ट ने लगाई केंद्र के फैसले पर मुहर: कोरोना काल में मरने वाले परिजनों को राज्य सरकार देंगी 50000 मुआवजा.. जानें- अहम बातें

न्यूज डेस्क: देश में 2019-21 तक कोरोना से जान गवाने वाले कई लोग सामने आए, एक वक़्त तो ऐसा भी आया जब लाशों को जलाने की जगह तक नहीं बची थी। लोगों ने जान तो गवाई ही पर परिजनों का दुःख समझने वाला कोई नहीं था। कोई समझता भी तो कैसे सभी एक ही परिस्तिथि से गुजर रहे थे, ऐसे में तब सरकार भी मेडिकल उपकरणों के अलावा और कोई सहायता नहीं प्रदान कर पा रही थी।

देश की हालात बद से बदतर हो रहे थे एक तरफ महामारी से मरने वाले लोगों की संख्या में बढ़ेगी तो दूसरी और आर्थिक तंगी, हालाकि, कुछ समय बीत जाने के बाद जब लोग वापस सामान्य जीवन शुरू कर रहे है तब सरकार ने देश में कोरोना से मरने वाले लोगों के परिजनों को 1 महीने के अंदर 50,000 रुपये का मुआवजा देने का फैसला किया है । इसमें उन परिवारों को भी शामिल किया गया है, जो इस महामारी से पीड़ित हैं और पॉजिटिव होने के एक महीने के अंदर आत्महत्या कर ली है। सरकार के इस फैसले पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी मोहर लगा दी है।

जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने जारी किए गाईडलाइन: दिशा-निर्देशों के अनुसार, जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण इस संबंध में मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ राज्य प्राधिकरण द्वारा जारी एक फॉर्म प्राप्त होने पर राशि का वितरण करेगा। साथ ही, शिकायतों के निवारण के लिए जिला स्तर पर एक समिति भी बनाई जाएगी। डीएम यह सुनिश्चित करेगा कि अनुग्रह भुगतान के दावे, सत्यापन, मंजूरी और अंतिम संवितरण की प्रक्रिया एक मजबूत लेकिन सरल और लोगों के अनुकूल प्रक्रिया के माध्यम से होगी। सभी दावों को आवश्यक जमा करने के 30 दिनों के भीतर निपटाया जाएगा।

एक PIL दर्ज होने पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश: शीर्ष अदालत ने 30 जून को प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को निर्देश दिया था कि वह कोविड-19 से मरने वालों के परिजनों के लिए अनुग्रह राशि के भुगतान के लिए छह सप्ताह की अवधि के भीतर उचित दिशा-निर्देश तैयार करे। शीर्ष अदालत ने 16 अगस्त को इस उद्देश्य के लिए चार और सप्ताह का समय दिया था। शीर्ष अदालत का आदेश उन जनहित याचिकाओं पर आया, जो अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल और रीपक कंसल द्वारा दायर की गई थीं, जिसमें कोविड पीड़ितों के परिवारों को 4 लाख रुपये की अनुग्रह राशि के भुगतान के लिए अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई थी।