न डीजल.. न बिजली..अब हाइड्रोजन से चलेगी भारतीय रेलवे की ट्रेनें…जानिए, क्या है तैयारी

न्यूज डेस्क : भारतीय अर्थव्यवस्था को सही ढंग से चलाने और उसे अवतार देने में हमेशा से ही भारतीय रेलवे का अहम योगदान रहा है। भारतीय रेलवे सिर्फ यात्रियों को सुविधाएं ही नहीं देती है, बल्कि रोजगार के भी सबसे अधिक मौके उत्पन्न करने का एक महत्वपूर्ण जरिया भी है। अगर हम बात करें भर्ती रेलवे के सिस्टम को बदलने की तो लगातार रेलवे पिछले कई सालों से अपने सिस्टम को अधिक से अधिक सुधारने की कोशिश कर रहा है। जिसमे की रेलवे स्टेशनों का प्राइवेटाइजेशन, स्टेशनों को आधुनिकीकरण जैसे कुछ कदम काफी अहम साबित हुए हैं। इसी बीच रेलवे की ओर से खबर आ रही है कि अब रेलवे ट्रैक पर डीजल, बिजली चलित इंजन नहीं बल्कि हाइड्रोजन चलित इंजन का विस्तार होगा। जिससे बिजली के साथ-साथ डीजल के भी काफी बचत होगी,और ग्रीन ट्रांसपोर्ट सिस्टम हरित परिवहन व्यवस्था के क्षेत्र में भी रेलवे को बड़ी कामयाबी हासिल होगी।

पहली हाइड्रोजन ट्रेन हरियाणा के सोनीपत-जींद सेक्शन पर चलाई जाएगी: रेलवे की ओर से जानकारी के मुताबिक, देश की यह पहली हाइड्रोजन फ्यूल इंजन होगी। एवं विश्व में इस तकनीकि का उपयोग करने वाला भारत तीसरा ऐसा देश बन जाएगा। इस रेलवे तकनीकि को सबसे पहले हरियाणा के जींद और सोनीपत के बीच 89 किमी ट्रैक पर चलने वाली डेमू ट्रेनों में विकसित किया जाएगा। रेलवे के ADG पीआरओ राजीव जैन के अनुसार, इन ट्रेनों में हाइड्रोजन फ्यूल सेल आधारित प्रोद्यौगिकी फिट करने के लिए निविदाएं आमंत्रित करने का फैसला किया गया है, जो 21 सितंबर से 5 अक्टूबर के बीच दाखिल की जा सकेगी। निविदा पूर्व बैठक 17 अगस्त को होगी। वहीं रेलवे एनर्जी मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड के CEO एसके सक्सेना ने कहा की हम ट्रेनों से डीजल जनरेटर को हटा देंगे। और एक हाइड्रोजन ईंधन सेल स्थापित करेंगे। यह नई तकनीक इनपुट डीजल से हाइड्रोजन ईंधन में बदल जाएगा। यह ईंधन का सबसे स्वच्छ रूप होगा। अगर, हाइड्रोजन सौर से उत्पन्न होता है तो इसे हरित ऊर्जा कहा जाएगा।

ऐसे काम करेगी यह तकनीक: रेलवे के अधिकारियों की माने तो यह ट्रायल सफल रहा तो डीजल इंजन को हाइड्रो इंजन में बदला जाएगा। हाइड्रोजन फ्यूल ग्रीन एनर्जी में सबसे अच्छा है। पानी को सोलर एनर्जी से विद्युत अपघटन कर के एनर्जी को पैदा किया जाएगा।

भारतीय रेलवे को सालाना 2.3 करोड़ रुपए की बचत होगी: रेलवे की ओर से बताया गया है कि डीजल से चलने वाली डेमू को हाइड्रोजन सेल तकनीक में बदलने से सालाना 2.3 करोड़ रुपये बचेंगे। यही नहीं, बल्कि हर साल 11.12 किलो टन कार्बन फुटप्रिंट (NO2) और 0.72 किलो टन पर्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन भी रुकेगा। रेलवे की ओर से इस योजना को महत्वाकांक्षी बताई जा रही है। इस सेक्शन में प्रोजेक्ट सफल होने के बाद देश की अन्य रूट्स पर भी इसे अपनाया जाएगा।