सामने आया मुगलों के हरम का काला सच, एक बार जो औरत अंदर आती तो उसकी अर्थी ही बाहर जाती

शाही महल का एक शानदार लेकिन छिपा हुआ हिस्सा जहां रंगीन रोशनी से नहाया कमरा, खूबसूरत परदे टंगे हुए, दीवान पर बिछी मखमली चादर, चारों तरफ़ फैली इत्र की खुशबू, आस पास श्रृंगार की हुईं शाही महिलाएं, अब इन्हें दासी समझिए या रखैल भी। इनमें हर उम्र की महिलाएं होती थी कुछ कमसिन युवतियां भी। बादशाह के दाखिल होते ही ये उनकी सेवा में कई लग जाती हैं। बादशाह कपड़े उतार हल्के होते तो कोई पैर दबा रहा, कोई बदन। कहीं जाम बनाई जाती है। वहां रानी भी मौजूद होती हैं, लेकिन ये बादशाह की मर्जी है कि वो किसके साथ रात बिताएं। रानी इस पर उफ्फ तक नहीं कर सकतीं।

हरम एक अरबी भाषा का शब्द है और इसका मतलब है- छिपी हुई जगह। इस शब्द का इस्तेमाल मुगलों के समय में महिलाओं के कक्ष के लिए होने लगा। अपनी किताब आईन-ए-अकबरी में लेखक अबुल फजल ने इसके लिए स्बीस्थान-ए-इकबाल शब्द का प्रयोग किया है। उन्होंने इस किताब में मुगलों के हरम के बारे में काफी कुछ लिखा है।

प्राणनाथ चोपड़ा सम आसपैक्ट आफ सोशल लाइफ डयूरिंग द मुगल एज में लिखते हैं कि हरम शाही महिलाओं के रहने का एक अलग स्थान होता था। एक छोटे शहर जैसा मुगलों के हरम हुआ करते थे। जहां हर वर्ग, क्षेत्र, धर्म, संस्कृति की महिलाएं रहती थीं। न केवल बादशाह के रिश्तेदार, बल्कि उनकी हर जरूरत का खयाल रखने वाली हर तरह की महिलाएं और यहां उनके लिए पर्दा भी जरूरी था।

आईन-ए-अकबरी के मुताबिक, हरम की पहली महिला मुगल काल के दौरान सामान्यतः बादशाह की मां ही होती थी। बाबरनामा और हुमायुंनामा में इसके कई उदाहरण हैं। जब बादशाह की मां कई अवसरों पर मौजूद होती थीं। मां के अलावा सौतेली मां और धाय यानी उपमाता या दाई मां भी रहती थीं। इनके बाद रानी और फिर दासियां।

हरम अस्तित्व में मुगल बादशाह बाबर से लेकर बहादुरशाह जफर तक रहे। लेकिन अकबर के समय से इसका सही रूप देखा जाता है। यह व्यव्स्था जहांगीर के समय अपने चरम पर थी और औरंगजेब के समय यानी मुगल शासन के पतनकाल में हरम का अस्तित्व ही खत्म होने लगा था। हरम उसके बाद रंगरलियों का अड्डा बन गया था। मुगल काल में कई शहरों में हरम थे जिनमें मुख्य शाही हरम आगरा, फतेहपुर सिकरी,दिल्ली और लाहौर में होते थे। जहां बादशाह का अधिक समय गुजरता था।

कोई बाहरी हरम में प्रवेश नहीं कर सकता था। इसके लिए वहां पहरेदार भी लगे होते। गुस्ताखी करनेवालों को फांसी तक की सजा दे दी जाती थी वो भी हरम के अंदर ही। महिलाओं के हाथ में ही हरम के अंदर की सुरक्षा थी, जबकि बाहर की सुरक्षा बादशाह के वफादार सिपाहियों के जिम्मे।वहां सुरक्षा में कुछ हिजड़े भी जरूर होते थे।

जो महिला एक बार यहां आ जाती उसके बाद यहां से उसकी अर्थी ही उठती थी। यहां रसद की आपूर्ति रानी और दासियों की जरूरत के सामान… सबकुछ उपलब्ध कराने के लिए कर्मचारी नियुक्त होते थे। अबुल फजल ने आईन-ए-अकबरी में लिखा है कि 5 हजार से भी ज्यादा महिलाएं अकबर के हरम में थीं और इनमें से सैकड़ों के साथ बादशाह के शारीरिक संबंध हुए थे। हालांकि इतनी कड़ी व्यवस्था होती थी कि कोई जानकारी बाहर नहीं आती थी। वहीं दासियों को भी इन कड़े नियमों का पालन करना होता था।