देश भर में किसान आंदोलन में जान फूंकने की कोशिश शुरु, जानिये वो कौन सा नियम है जिसको लेकर जारी है गतिरोध

न्यूज डेस्क : विगत वर्ष से देश में शुरू हुआ किसान आंदोलन की धार कुंद होती दिख रही है। बहरहाल 26 मई 2020 में शुरू हुए इस किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर देश भर में इसके समर्थक तत्वों के द्वारा काला दिवस मनाया गया। जो कि आंदोलन में नई जान फूंकने की कवायद मानी जा सकती है। 26 मई 2021 को किसान आंदोलन का एक वर्ष पूरा हो गया। विगत वर्ष किसान आंदोलन की शुरुआत तब हुई जब पंजाब, हरियाणा, यू.पी. से किसानों का जत्था दिल्ली बॉर्डर अपनी मांगों के लिए पहुँच गया।

गर्मी की तपिश से लेकर ठंड की ठिठुरन को सहने के बाद भी कोई सार्थक उपाय नहीं निकला। हालांकि कोरोना की वजह से आंदोलन फ़िलहाल धीमा पड़ गया है पर संयुक्त किसान मोर्चा के नेता दर्शन पाल सिंह ने 26 मई को काला झंडा दिवस घोषित करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार कृषि क़ानूनों को लेकर किसानों के साथ दोबारा संवाद शुरू करे वर्ना आंदोलन की शुरुआत फिर से कर दी जाएगी। कोरोना की वजह से कहीं पर मार्च नहीं निकाले जाएंगे पर आंदोलन किया जाएगा।

क्या है कृषि कानून औऱ इसके विरोध की वज़ह सितंबर 2020 में महामहिम राष्ट्रपति ने किसानों से संबंधित तीन नए कृषि विधेयकों को मंजूरी दे दी। जिसके बाद से प्रदशन काफी उग्र हो गए। इस विधेयक के मुख्य प्रावधानों को समझे।

कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य अधिनियम

  • इस कानून में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान है जहाँ किसानों और व्यापारियों को मंडी से बाहर फसल बेचने की आज़ादी होगी। इसमें राज्य के अंदर और दो राज्य के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई है। मार्केटिंग और परिवहन पर कम खर्च करने की बात कही गई है।

कृषक : क़ीमत आश्वाशन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम

  • इस अधिनियम में कृषि करारों पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रावधान है। ये अधिनियम कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, थोक विक्रेता, बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्त करता है। तकनीकी सहायता और फसल बीमा की सुविधा उप्लब्ध करवाई जाएगी।

आवश्यक वस्तु अधिनियम

  • इस अधिनियम में अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज,आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है। एक समूह का मानना है कि अधिनियम के प्रावधान से किसानों को सही मूल्य मिलेगा क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी।

क्या है किसानों के विरोध की वजह किसान संगठन का आरोप है की नए कानून से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट के हाथ में चला जायेगा और इसका नुकसान किसानो को होगा। कहना है जब बाजार में अच्छे दाम मिल जाये तो बाहर क्यो जाते। जिन उत्पादों पर एम एस पी नहीं मिलती वो मजबूरन कम दाम पर बेचना पड़ता है।। इस बात का डर भी है कि कहीं सरकार एम एस पी को ख़त्म न कर दे।

वहीं केंद सरकार का कहना है कि राजनीति पार्टिया अपने फायदे के लिए इस कानून का दुष्प्रचार कर रहीं है। ये किसानों के हित के लिए है न कि नुकसान के लिए। बिचौलिए जो किसानों का हिट खा जाते उनसे बचने के लिए इस कानून का आना ज़रूरी था। केंद्र सरकार के कई मंत्री भी इस कानून का समर्थन तथा तारीफ कर रहे हैं जबकि कई विपक्षी मंत्री इसका विरोध। कोरोना की वजह से धीमी पड़ी इस विरोध को फिर से शुरू करने की बात फिलहाल की जा रही है।