KK Goswami : बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में यूपी-बिहार के तमाम कलाकार अपनी पहचान बनाने में सफल रहे हैं. इनमें से एक है कृष्णकांत उर्फ KK गोस्वामी भी हैं. KK (KK Goswami) गोस्वामी बिहार के टॉप 10 अभिनेताओं में से आते हैं. जिन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. ये अभिनेता की मेहनत और टैलेंट ही है, जो वो हिंदी सिनेमा में अपनी खास पहचान भी बना चुके हैं.
TOP 10 एक्टर बने के के गोस्वामी : भारतीय सिनेमा में बिहार के कलाकारों के योगदान को कभी भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है. बिहार के कलाकारों ने हिंदी सिनेमा और टीवी इंडस्ट्री में अपना अहम योगदान दिया है. KK गोस्वामी (KK Goswami) इन्हीं सितारों में से एक हैं.
बिहार के मुजफ्फरपुर से आने वाले के के गोस्वामी को एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में सर्वश्रेष्ठ कैरेक्टर आर्टिस्ट के रूप में भी जाना जाता है. धारावाहिक विक्रांत गबराल के गबरु का भला कौन भुला सकता है, जिसमें उन्होंने एक बोने का किरदार निभाया था. जरा आप उस दौर को भी याद करिए, जब टीवी घर-घर में पहुंच रही थी और ज्यादातर लोग दूरदर्शन के जरिए टीवी का भी आनंद लेते थे. उस दौर में सबसे चर्चित धारावाहिक ‘शक्तिमान’ को भी याद करिए, जिसमें के के गोस्वामी ने ‘खली बली’ की भूमिका भी निभाई थी, जो उस धारावाहिक की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी भी थी. इसके अलावा वो कई सुपरहीरो पर धारावाहिक ‘जूनियर जी’, ‘शाका लाका बूम बूम’, ‘अजूबा का अजूबा’ में बदाम बूटा के किरदार में भी नजर आ चुके हैं.
भोजपुरी फिल्मों में भी बनाई है पहचान : के के गोस्वामी ‘गुटर गू’ जैसी हिंदी फिल्मों में भी अपने अभिनय का जलवा दिखा चुके हैं. हिंदी फिल्मों के साथ ही उन्होंने भोजपुरी सिनेमा में भी अपनी शानदार उपस्थिति अब तक दर्ज कराई. साथ उन्होंने ये साबित कर दिया कि अभिनय किसी भाषा क्षेत्र कद काठी का मोहताज नहीं.
के के गोस्वामी वो कलाकार हैं और उनमें कला की असीम संभावनाएं है, जिसे उन्होंने हमेशा ही साबित किया. आज जब भी मुंबई में जब 10 बिहारी अभिनेताओं का नाम लिया जाता है, तो उसमें के के गोस्वामी को बड़े सम्मान से शामिल किया जाता है. बहुत कम लोग जानते हैं कि यह एक्टर ने ये मुकाम हासिल करने के लिये काफी मेहनत भी की है. एक समय पर वो पैसों की तंगी झेल रहे थे. यहां तक कि उन्होंने नौकरी के बदले वॉचमैन का डंडा भी खाया हुआ है. एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने जब बताया कि जब वो मुंबई आए, तो काफी समय तक वो हफ्तें में एक ही दिन खा कर गुजाराकर रहे थे. बाकी दिन उन्हें पानी पीकर ही गुजारा करना पड़ता था.