कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी जल्द होंगे कांग्रेस में शामिल, रणिनीतिकार पीके का है अहम रॉल

न्यूज डेस्क : राजनीति को हमेशा से न सिर्फ लोकतंत्र का एक मुख्य स्तंभ माना जाता रहा है साथ ही सामाजिक सेवा और सामाजिक संतुलन बनाए रखने का ज़रिया। पर वही राजनीति अब एक पेशा बनती जा रही है जिसमें सेवा की भावना कम और स्वयं इक्छा की भावना ज्यादा आ गई है। ऐसा राजनीति के वर्तमान परिपेक्ष्य को देखते और समझते हुए साफ तौर पर आंका जा सकता है। सुर्खियों में छाए रहने की जो इच्छा राजनेताओं में बसती जा रही है इसके लिए वो कुछ भी करने से गुरेज नहीं करते हैं। इसी क्रम में दल बदल करना तो बेहद ही आम बात है। फ़िलहाल इसी दलबदल से चर्चा में आज कल कम्युनिस्ट नेता और जे एन यू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी है।

2 अक्टूबर को कन्हैया और मेवानी होंगे कांग्रेस में शामिल – सूत्र इन दोनों युवा नेता कहे जाने वाले कि पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस से बढ़ती नजदीकियां एक संदेश बाहर ला रही थी कि जल्द ही दोनों अपनी डूबती राजनीतिक हस्ती को एक सही दिशा देने के उद्देश्य से कांग्रेस पार्टी का हाथ थामेंगे। राजनीतिक पार्टियों को नेतृत्व कर मार्गदशी के रूप में कार्य करने वाले प्रशांत किशोर की भी सलाह व सहयोग मिलते रहना इस बात की पुष्टि कर ही देता है कि कन्हैया व मेवानी अब सम्भवतः कांग्रेस में शामिल होंगे । हालांकि अब काफी हद तक इस बात की पुष्टि की जा चुकी है कि कांग्रेस पार्टी के अध्य्क्ष व मार्गदर्शक रहे महात्मा गांधी के जन्म दिवस के अवसर अर्थात 2 अक्टूबर को दोनों नेता कांग्रेस का दामन थाम लेंगे।

मेवानी को दिया जा सकता है राज्य पार्टी प्रेसिडेंट का कार्यभार जिग्नेश मेवानी को लेकर चर्चाएं है कि उन्हें कार्यरत स्टेट पार्टी प्रेसिडेंट का पदभार दिया जाएगा जो कि पहले हार्दिक पटेल को दिया गया था। वही 2019 के लोकसभा चुनाव से खुली राजनीति में अपना पदार्पण करने वाले कन्हैया कुमार जिन्होंने सी पी आई पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर अपने गृह जिला बेगूसराय से ही उम्मदवारी दी थी पर बी जे पी के गिरिराज सिंह से हार का सामना करना पड़ा था। ऐसी भी बाते है कि कन्हैया कुमार न सिर्फ खुद बल्कि कुछ अन्य भी वामपंथी नेताओ को कांग्रेस में जोड़ने का काम करने वाले हैं। इस तोड़ जोड़ की राजनीति करके कन्हैया कुमार कही न कही अपनी राजनीति की सीढ़ियां मजबूत करने की कोशिश में है। कांग्रेस पार्टी कहीं न कहीं ये संदेश दे रही है कि कांग्रेस पार्टी को अब अपनी जमीनी कार्यकर्ताओ पर उतना भरोसा नहीं रह गया है तभी नए चेहरों पर भरोसा कर रही है। ये साथ तात्कालिक होगा या लंबे वक्त के लिए ये अंदाज लगाना भी मुश्किल है क्योंकि राजनीतिक रिश्ते अक्सर क्षण भंगुर होते है। जब सत्ता में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है तब नेताओं की प्राथमिकताएं भी खुद ब खुद बदलने लगती हैं।