महज ₹500 लेकर आए मुंबई और शुरू किया सफर, खड़ा कर दिया विश्व का सबसे बड़ा एंपायर

डेस्क : मुकेश अम्बानी का इस वक्त भारत के सबसे अमीर उद्योगपतियों की गिनती में नाम आता है। मुकेश अंबानी के पिता जी धीरूभाई अंबानी 1960 तक रिलायंस इंडस्ट्री की नींव रख चुके थे। आपको बता दें कि धीरूभाई अंबानी का जीवन बेहद ही संघर्ष पूर्ण बीता है। किसी ने सही कहा है कि कामयाबी की राह में कांटे चुभते रहेंगे लेकिन कांटे की चुभन आपके सपने के आगे फीकी पड़ जानी चाहिए तभी आपके कदमों में कामयाबी होगी।

धीरूभाई अंबानी के नक्शे कदम पर चल कर ही आज उनके बेटे मुकेश अंबानी एक सफल बिजनेसमैन है। आपको बता दें की 28 दिसंबर 1932 में उनका जन्म हुआ था और उनका पूरा नाम धीरजलाल हीराचंद अंबानी था। वह सिर्फ दसवीं तक ही पढ़े हैं उनके पिताजी गांव में एक शिक्षक थे लेकिन उससे उनका घर नहीं चलता था। इस वजह से उनको छोटे मोटे काम करने पड़ते थे। इन सब कार्यों से कुछ ख़ास बात बनी नहीं और वह अपना गाँव छोड़ यमन चले गए। वहाँ पर उनको पेट्रोल पंप पर नौकरी मिल गई और उनको महीने में 300 रूपए मिलते थे।

यह नौकरी उन्होंने 1949 में शुरू की थी इसके बाद वह 1954 में भारत वापस आ गए थे और उन्होंने अपना मन बना लिया था कि वह अपना कुछ व्यवसाय करेंगे वह 500 रूपए लेकर मुंबई चले गए। हालांकि, उस नौकरी में उनको मैनेजर का पद भी मिला था, लेकिन उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। वह शुरू से ही व्यवसाय की अच्छी खासी समझ रखते थे जिसके चलते उनको यह खबर लगी कि भारत में पॉलिस्टर की मांग बेहद ही ज्यादा है। इसके बाद बाहर के देशों में भारतीय मसालों की भी ज्यादा डिमांड है और उन्होंने तय कर लिया कि अब उन्हें यही कार्य करना है। इसी के चलते रिलायंस कॉमर्स कॉरपोरेशन की नींव रखी गई।

जैसे ही रिलायंस कॉमर्स कारपोरेशन की शुरुआत हुई तो भारत से मसाले विदेशों में भेजे जाने लगे और पॉलिस्टर भी भारत में बिकने लगा। सन 2000 में वह सबसे अमीर व्यक्ति बन गए। 6 जुलाई 2002 को उनका देहांत हो गया उनका देहांत सिर की नस फटने की वजह से हुआ था। धीरूभाई अंबानी का शुरू से ही कहना था कि जो लोग 10 घंटे से ऊपर कार्य करते हैं वह झूठ बोलते हैं क्योंकि अगर ऐसा होता तो वह आदमी बेहद ही धीरे काम करता है। उन्होंने कभी 10 घंटे से ऊपर काम नहीं किया वह एक साधारण इंसान थे वह पार्टी करना पसंद नहीं करते थे और विदेश में भी घूमना उनको पसंद नहीं था वह अपना निजी वक्त अपने परिवार को देते थे और विदेश यात्रा अपने अधिकारियों को सौंप देते थे जब बेहद ही खास जरूरत होती थी तो ही वह बाहर जाना पसंद करते थे।