कैसे बनेगा श्रद्धा का डेथ सर्टिफिकेट, जारी करने की जिम्मेदारी किसकी? सामने हैं कई चुनौतियां

Desk : किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका डेथ सर्टिफिकेट यानी मृत्यु प्रमाण पत्र, बनाना अनिवार्य होता है। ये एक ऐसा दस्तावेज है जो मृत्यु के बाद व्यक्ति के परिजनों के काम आता है। हालाँकि यदि किसी की मृत्यु असमान्य है यानि उसकी हत्या हुई है तो ऐसे में मृत्यु प्रमाण पत्र का होना बेहद ज़रूरी है।सामान्य मौत या मर्डर हो तो उतनी परेशानी नहीं होती। पर यदि लाश को कई टुकड़ों में काट दिया जाये और शरीर का पूरा हिस्सा न मिले तो कैसे बनेगा डेथ सर्टिफिकेट? कुछ ऐसे ही सवाल श्रद्धा वॉकर मर्डर कांड में खड़े हो रहे हैं।

जिस क्रूरता से आफताब ने श्रद्धा वॉकर का मर्डर किया है उसके बाद उसके शरीर को जानना या पहचानना भी मुश्किल हो गया है। किसी भी व्यक्ति का मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने के लिए उसके मृत शरीर का या उसके मृत पाए जाना अनिवार्य होता है। जिसके बाद डॉक्टर जाँच कर मृत घोषित करते हैं और फिर पोस्टमार्टम और आगे की प्रक्रिया होती है। जिसके बाद ऐसा कहा जा सकता है कि श्रद्धा का केस काफी गंभीर है। उसकी हत्या कर पहले तो उसके शरीर को कई टुकड़ों में काटा गया जिसके बाद उन टुकड़ों को कई जगहों पर फेंक दिया गया।

अब ऐसे में बात ये है की किसी को भी मृत घोषित करने के लिए उसके मृत शरीर का होना ज़रूरी होता है। जिसके बाद ही उस व्यक्ति को मृत करार देकर उसका प्रमाण पत्र बनाया जाता है। अब बात ये हैं की श्रद्धा की पहचान जाहिर करने और आफताब को गुनहगार साबित करने के लिए डेथ सर्टिफिकेट होना बेहद आवश्यक है। तो ये कैसे होगा आपको बताते हैं

ऐसा कहते हैं नियम : जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 के अनुसार जो नियम निर्धारित किये गए हैं, उसमें बताया गया है कि हर मनुष्य के जन्म और मृत्यु को पंजीकृत करना अनिवार्य होता है। मृत्यु चाहे जिस भी कारन से हुई हो, ऐसे में आम तौर पर एक निकाय है जो सभी जानकारियां हासिल करने में मदद करता है। पर तब स्थिति चुनौतीपूर्ण हो जाती है, जब मृतक का शरीर पर्याप्त नहीं होता है या केवल कंकाल अवशेष मिलते है। तो मृत्यु दर्ज करना और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करना बहुत चुनौतीपूर्ण हो जाता है. परिजनों और जांच एजेंसी के लिए यह संकट वाले हालात हो जाते हैं।

कहां फंसेगा कानूनी पेंच? संपत्ति आदि के लिए मृत्यु के बाद मृत्यु प्रमाणपत्र अहम दस्तावेज होता है। वहीं अदालत में हत्या साबित करने के लिए भी मौत की तारीख जरूरी होती है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या जांच एजेंसियां ​​किसी तारीख का अनुमान लगाएंगी या इसके बजाय केस दर्ज करने की तारीख नोट करेंगी? दोनों ही मामलों में विवाद पैदा होगा। साथ ही यह केस को भी कमजोर करेगा। यदि रिपोर्टिंग की तारीख ली जाती है, तो यह तर्क दिया जा सकता है कि यह गलत है। अनुमान के मामले में, उत्तराधिकार की कार्यवाही सीमा से परे हो सकती है।

जांच एजेंसी की सबसे बड़ी चुनौती : हर स्वस्थ्य इंसान के शरीर में करीब 206 हड्डियां होती हैं। पर इस मर्डर काण्ड में श्रद्धा के शरीर के कुछ हिस्से ही पुलिस को मिले हैं। पुलिस के सामने बरामद किए गए हर टुकड़े और हर टुकड़े की पहचान करना बेहद मुश्किल हो गया है। मृतक की पहचान सुनिश्चित करने के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग के माध्यम से उनका मिलान करना सबसे बड़ी समस्या होगी। यदि यह मेल नहीं खाता है तो अभियोजन पक्ष का पूरा मामला निष्प्रभावी हो जाएगा और कहीं न कहीं इसका फायदा आफ़ताब को मिलेगा।

जरुरी है समन्वय : इस बारे में यदि एक्सपर्ट्स की राय लें तो यह जांच अधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह फॉरेंसिक(ऑटोप्सी) सर्जन और एफएसएल के साथ कोऑर्डिनेट करे, तो अगर ऐसा संभव हुआ तो मौत का कारण, समय और स्थान जानने के लिए उनके साथ कोऑर्डिनेशन करे। तो अगर जानकरी मिल जाए तो जांच अधिकारी संबंधित जन्म और मृत्यु पंजीकरण कार्यालय से मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए परिवार या निकट संबंधियों की सहायता कर सकता है।